ग्लोबलाईजेशन और लिब्रलाईजेशन के नाम पर भारतीय बाजार विदेशियों के नियंत्रण में
भूमण्डलीकरण(ग्लोबलाईजेशन)और लिब्रलाईजेशन के नाम प्रतियोगिता हुई है या एकाधिकार स्थापित हुआ है भारतीय बाजार में ?
ऐसे ही एक दूसरा उदाहरण मैं आपको देना चाहता हूँ कि ढेर सारी Cosmetics की कंपनियाँ भारतीय बाजार में आई हैं अमेरिका की, उसमें से सबसे बड़ी कंपनी है Revlon अमेरिका की Cosmetics की सबसे बड़ी कंपनी है उसे हमारे बाजार में खुली छूट मिली है तो क्या प्रतियोगिता थी जब Revlon भारत में आया तो Hindustan lever भी था बाजार में जो आधा स्वदेशी आधा विदेशी मानता था अब तो उनकी Majority हो गई है बाजार में, हमारे देश में सबसे बड़ा प्रतियोगी था बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये तो वो Lakme, TATA घराने का और Lakme का बाजार का जो नियंत्रण था उसकी कल्पना हम कर नहीं सकते अब तो चला गया, एक जमाने में भारतीय बाजार में 80% अपना अधिकार रखता था।
तो बाजार में आपने विदेशियों को आने की खुली छूट दी और झूठ ये बोला सारे देश के लोगों के साथ कि हम प्रतियोगिता करवाना चाहते हैं बाजार में, और वो प्रतियोगिता करते-करते एक दिन हमने समाचार पत्र में सवेरे ही सवेरे पढ़ा कि Lakme भी चला गया विदेशी कंपनी के कब्जे में, Hindustan lever ने उसको भी Takeover कर लिया। तो फिर प्रश्न मन में यही आता है कि जब Hindustan lever बाजार में था, Revlon बाजार में था और हमारे देश का Lakme था तब प्रतियोगिता अधिक थी या अब प्रतियोगिता अधिक है जब Lakme पूरी तरह से विदेशी हो गया। ठीक यही प्रयास हुआ Asian paints के साथ, ये प्रयास लेकिन सफल नहीं हो पाया। ICI Company ने Asian paints को Takeover करने का पूरा प्रयास किया उसमें वो सफल नहीं हो पाये उसमें एक भारतीय Holder में थोड़ी भारतीयता पैदा हो गई तो उन्होंने मना कर दिया कि नहीं बेचूँगा, ऐसे यधपि कम लोग मिलते हैं इस देश में। तो प्रयास उनका असफल हो गया Otherwise इस देश की Private sector की सबसे बड़ी जो घरेलू कंपनी जो Paint बनाती है । Asian paints वो चली गई ICI के नियंत्रण में, तो प्रतियोगिता हो कहाँ रही है बाजार में तो एकाधिकार होता चला जा रहा है हम देख रहे हैं हमारी आँखों के सामने एकाधिकार हो रहा है। प्रतियोगिता देने वाला कभी टामको हुआ करता था बाजार में तो वो टामको चला गया Hindustan lever के पेट में तो प्रतियोगिता देने वाले जो 36 बड़े Empire इस देश में थे वो तो जा चुके हैं पिछले 7 वर्षो में विदेशी कंपनियों के पेट में, प्रतियोगिता हुई है या एकाधिकार स्थापित हुआ है बाजार में ?
और मैं एक सूचना के लिये आपको कह दूँ कि विदेशी कंपनियाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कभी भी प्रतियोगिता में विश्वास नहीं रखती है ये आप जान लीजिये, हमेशा Cartelization में विश्वास रखते हैं वो Cartel बनाते हैं और ये जो चक्कर हमारे देश में चल रहा है प्रतियोगिता के नाम पर नियंत्रित करने का पूरी अर्थ-व्यवस्था को, बाजार में एकाधिकार का ये चक्कर अमेरिका में भी चल रहा है अमेरिका की बड़ी-बड़ी कंपनियाँ आपस में Merge कर रही हैं। IBM और ICL दोनो के Merge होने की तैयारी चल रही है। इस समय Boeing और General Motors आपस में Merge करने को तैयार बैठे हैं, राजयोन कार्पोरेशन और जनरल इलेक्ट्रानिक्स Merge करना चाहते हैं तो सारी की सारी अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था में हम देख रहे हैं कि सिवाय Cartelization के कुछ हो नहीं रहा है।
वहाँ क्या हो रहा है जो भी कंपनी बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकती है या तो अपने मे मिला लो या बाजार से उसको बाहर कर दो। "Either Co-operate or Corrupt" यही Principle है । लोकतंत्र का वही Principle बाजार में है, बहुराष्ट्रीय के माध्यम से या तो भारतीय कंपनियों को Takeover कर लो या तो उनको बाजार से बाहर कर दो किसी भी तरीके से, तो प्रतियोगिता हुई कहाँ है पिछले 7 वर्ष में इस बाजार में ? और फिर आपको दूसरी बात ये कहना चाहता हूँ कि प्रतियोगिता किसके बीच हो सकती है? प्रतियोगिता शब्द की Defination है यदि उसको हम समझने का प्रयास करें तो जो 19-20 का पार्टनर हो तो उसमें प्रतियोगिता हुआ करती है लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि एक तरफ वेन जानसन खड़ा है दूसरी ओर एक टाँग वाला कोई नवजवान खड़ा है और कहो कि 100 मीटर स्पीड दौड़ो वहाँ प्रतियोगिता नहीं हुआ करती कभी, मैं आपको कहना ये चाहता हूँ कि एक तरफ तो दुनिया के 60-70-75 देशों में व्यापार करने वाले बहुराष्ट्रीय हैं जिनका एक-एक वर्ष का Turnover भारत सरकार के राष्ट्रीय बजट से की गई है से कई-कई गुना अधिक है और दूसरी तरफ हमारे देश केSmall scale उधोग हैं जो 50 हजार में, 10 हजार में, 1 लाख में, 1 करोड़ में, 2 करोड़ में काम करती हैं।
1 करोड़ 2 करोड़ में काम करने वाला व्यकित 500 करोड़ वाले के व्यापार करने वाले के साथ प्रतियोगिता करेगा या उसके पेट में समा जायेगा कैसे संभव है ? ये तो आप प्रतियोगिता शब्द का अपमान कर रहे हैं ये कहकर कि हमारे Small scale को उनके साथ प्रतियोगिता करना चाहिये कभी संभव नहीं हो सकता है। संभव हो सकता है हमारे देश के जो Joint सार्वजनिक क्षेत्र हैं वो कर सकते हैं प्रतियोगिता बहुराष्ट्रीय के साथ उनमें वो शकित है और हमारे देश के जो सार्वजनिक क्षेत्र बहुराष्ट्रीय के साथ प्रतियोगिता करने की शकित रखते हैं उनकी ये क्षमता है उन्हीं सार्वजनिक क्षेत्र को जानबूझकर भारतीय बाजार से बाहर करने की चाल चली जा रही है।
मैं आपको दावे के साथ कहता हूँ कि अमेरिका की एण्ड्रोन कंपनी को यदि कोई टक्कर दे सकता है तो वो BHEL दे सकता है BHEL में वो शकित है कि वो एण्ड्रोन को टक्कर दे सके और BHELवालों का ये दावा है कि हमसे आप बिजली तैयार करवाओ तो हम 1 रुपये 70 पैसे प्रति यूनिट बिजली देने को तैयार हैं, लेकिन BHEL का आप प्रपोज़ल नहीं लेंगे एण्ड्रोन का लेंगे क्योंकि वह 4.5 रुपये प्रति यूनिट बिजली देने वाला है। और आप कहोगे कि BHEL प्रतियोगिता करे एण्ड्रोन के साथ ये कैसे संभव है। छोड़ दो ना बाजार में यदि आप ये विश्वास करते हो कि प्रतियोगिता होना चाहिये बाजार में, तो आपने Tender आमंत्रित क्यों नहीं किये भारत के सार्वजनिक क्षेत्र से? क्यों आपने एण्ड्रोन के साथ सनिध होने दिया? इस देश में हो जाने देते जिसका सबसे कम बिजली बिल निकलता उसको प्रोजेक्ट दे दिया जाता वो तो हुआ नहीं इस देश में, प्रतियोगिता हो कहाँ रही है इस देश में ? प्रतियोगिता के नाम पर आपके बाजार में एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास हो रहा है और हमको जितनी विलम्ब से समझ में आयेगा उतनी ही हानि हो चुकी होगी इस देश कि अब तक 36 बड़े Empire जा चुके हैं विदेशियों के नियंत्रण में और अगले 2-3 वर्ष यही चलता रहा तो बचे-खुचे जो हैं वो भी चले जायेंगे विदेशियों के कब्जे में ।
No comments:
Post a Comment