भारत के साथ विश्वभर मे छाने वाली तेजी और मंदी के मुल कारणो का आर्थीक विश्लेषण करने वाले भारत के “अर्थशास्त्री” आज तक उसके कारण को लेकर सहमत नही हुए । निदान के लिये अनेक तर्क पेश किये गये पर मंदी के मुलभूत लक्षणो से एक भी मेल नही खाता । कहने का मतलब यह है के मंदी के निवारण हेतु लिया गया हर एक कदम बॅकफायर हो जाता है और परीणामवश और भयंकर मंदी को ले आता है । औरों की बात तो मै नही बता सकता पर भारत के (पढे-लीखे) अर्थशास्त्री सही कारण का पता लगा ले उसकी संभावना भी बहुत कम है --- इस लिये क्योंकी अगर गहराई मे जाओ तो उसका मुल अर्थशास्त्र मे नही है – लेकीन विज्ञान मे है (आश्चर्य) !! विविध औधोगीक क्षेत्रों को बुस्ट देने के लिये हमेशा कीसी नये वैज्ञानिक आविश्कार के टॉनीक की आवश्यकता होती है जिससे उधोगों मे उसका प्रोडक्शन जारी रहे और नये रोजगार की संभावनायें बढ जाये ।
विज्ञान और टॅक्नोलोजी के क्षेत्र मे होने वाले आविश्कारों के टॉनिक ने अर्थतंत्र को किस हद तक बुस्ट देके मंदी को टाल दीया और तेजी को टीकाये रखा इसके कुछ कीस्से मै यहा देना चाहुंगा ।
I. स्कॉटलॅन्ड के जेम्स वॉट ने स्टिम यंत्र की खोज की उसके बाद होर्सपावर्ड के बदले स्टिम पावर्ड मशिनरी ने पुरबहार क्रांती ला दी । वॉट की खोज को स्प्रिंग बोर्ड की तरह उपयोग कर के रॉबर्ट फल्ट ने स्टिमर बनायी । ज्योर्ज स्टिफनसन ने 1814 मे स्टिम ईन्जन से रेल्वे को दौडते कीया । 1884 मे चार्ल्स पार्स ने स्टिम टर्बाईन बना के बिजली को पैदा कर दीखाया जिस वजह से थॉमस एडीसन ने पांच वर्ष पहले बनाये बल्ब को घर घर मे प्रकाशित कर दीया । वाष्पयंत्र की एकमात्र खोज ने न जाने कितनी दीशायें बदल डाली और दुनिया भर के अर्थतंत्र उसकी वजह से सद्धर हो गये । पत्थरयुग मे जीने वाले युरोपी नागरीकों का जिवन सुधार के उसे नये स्तर पर लाया !!
II. जर्मनी के कार्ल बॅन्ज ने 1885 की हुई मोटरकार की खोज भी आर्थिक रूप से व्यापक असर पैदा करने वाली थी । मध्यम आकार की मोटर बनाने के लिये लगभग 810 कि.ग्रा. स्टिल, 170 कि.ग्रा. लोखंड, 110 कि.ग्रा. प्लास्टिक, 100 कि.ग्रा. एल्युमिनियम और 60 कि.ग्रा. रब्बर की आवश्यकता होती है । हाईवे से ले कर पेट्रोलपंप तक की अनेक सुविधायें चाहिये । मोटरकार का उत्पादन 6 दर्जन उधोगों को इसा फला के अमेरीका के अर्थतंत्र के लिये तो मोटर उधोग रीढ की हड्डी समान साबित हुआ ।
III. इलेक्ट्रोनिक ट्रांझिस्टर्स का उदाहरण तो कभी नही भुला जा सकता – विलीयम शॉक्ली और उसके दो साथीयों ने 1947 मे प्रथम ट्रांझिस्टर की खोज की तब जमाना काच के तकलादी और तोस्तान वाल्व का था । इस वाल्व को रॅडीयो जैसे बहुत कम साधनों मे इस्तेमाल किया जा सकता था । 1959 मे जॅक कॉल्बी ने ट्रांझीस्टर को सुक्ष्म रूप दे कर चिप मे जड दीया और intel कंपनी ने उस के आधार पर माईक्रोप्रोसेसर बनाया और परीणामवश कम्प्युटर, सॅटेलाईट, कॉम्पेक्ड डिस्क, मोबाईल फोन जैसे अनगीनत आविश्कार शक्य हुए और एक ट्रांझीस्टर की खोज ने कम से कम 12000 उधोगों को नया जन्म या तो बुस्टर डॉज दीया ।
IV. विकसीत देशों के अर्थतंत्र को प्लास्टिक (1911), टॅलीव्हिजन (1928), जॅट ईंजीन (1930) नायलॉन (1937), झेरोग्राफी (1938), हॅलीकॉप्टर (1339), लॅसर (1959) इत्यादी खोजों ने भी वर्षों तक अपना प्रभाव दीखा के पश्चिमी उधोगों को बुस्टर डोज दीया है ।
ःःःः अमेरीका जैसे विकसीत देश क्या करते है ःःःः
अमेरीका और अन्य विकसीत देश अक्सर हमें मुर्ख बनाते है । हावर्ड और कॅम्ब्रीझ जैसी युनिवर्सिटी मे उटपटांग अर्थशास्त्र पढा के असली कारण को दबा देते है और वहा से पढ के जो कोई बाहर आता है उस गधे का अत्याधिक प्रचार करते है जब की इन देशो का असल काम क्या है?
हमारे जैसे विकासशिल देशों के बुद्धी धन को अपनी ओर खिंचना और इन देशों के औधोगीक यंत्रणा को कठपुतली सरकार की बॅडीयों मे जकड देना यही इन अमेरीका जैसे विकसीत देशों का काम है । (विदेशो की निती ही यही है के हम स्वावलंबी ना हो । Parasites की तरह जियें) भारत देश की सरकारों ने हमारे स्वप्नदष्टा औधोगीक साहसीकों को MRTP, मोनोपोली एक्ट, लीमीटेशन एक्ट जैसे कई विचीत्र कानुनों मे जकड के रखा और उन पर कमिशन ठोक कर केस भी चलाया? (हम गरीब क्यु रहे इस बारे मे मै जल्द ही एक पोस्ट डालने वाला हु) आखर मे 21 जून 1991 को यह सब कानुन को रद्दी की टोकरी मे डाल दीया गया और हमारे उधोगों को स्वतंत्रता दी गयी ।
अब बात है हमारे किमती बुद्धी धन की तो मै कुछ उदाहरण देना चाहता हु कैसे हमारे बुध्धीशाली लोगों को अमेरीका ने खिंच कर अपनी तरफ कर लिया और उनकी खोजों को अपने देश मे पॅटंट करवा कर अरबों डॉलर छापे ।
I. पुणे के विनोद धाम – जिन्होंने सबसे पहली इंटेल पॅन्टीयम माईक्रोप्रोसेसर कंप्युटर चिप की खोज (अमेरीका मे रह कर) कर के कंप्युटर क्षेत्र मे क्रांती ला दी । आज कितने लोग इन को जानते है ?
II. अवतार सैनी – इन्टेल की पॅन्टीयम चिप को डीझाइन करने वाले इस व्यक्ति को Father of Pentium कहा जाता है ।
III. व. अ. शिवा अय्यादुराई – मेसेच्युसेट्ट्स इन्स्टीट्युट ओफ टॅक्नोलोजी के इस प्रोफेसर ने Email की खोज कर के जगत के आम नागरीकों को एक दुसरे के संपर्क मे ला दीया ।
IV. विवेक गुन्दोत्रा – गुगल और जिमेईल की इंजीनियरींग के वाईस प्रेसिडंट ।
V. अभिषेक महालानोबीस – इस ब्रिलीयंट सायंटीस्ट ने अमेरीका के डीफेन्स के लिये नये मिसाईल – एन्टी मिसाईल डीफेन्स सिस्टम, Phased Array Radar and Airborne Early Warning System, फाईटर जेट की कई नयी सुधार टॅक्नोलोजी का आविश्कार किया । अमेरीकन डीफेन्स के डायरॅक्टर जनरल किम जॉवी ने एक बार कहा था के मैने अपनी पुरी कारकिर्दी मे अभीषेक के जैसा Brilliant Scientist नही देखा !!!
VI. सबीर भाटीया – जिन्होने हॉटमेईल की खोज की ।
VII. अजय भट्ट – Intel के क्लायंट प्लेटफोर्म आर्किटॅक्त ने USB की खोज मे सहयोग दीया ।
VIII. स्वपन चट्टोपाध्याय – इस भौतीक वैज्ञानीक ने Particle Accelerator की खोज की ।
IX. नरीदंर सिंह कंपानी – “Father of Fibre Optics” शायद ही कोई न जानता होगा और इनकी खोज ने पुरी दुनिया बदल दी ।
X. चन्द्रकुमार पटेल – कार्बन डायोक्साईड लेजर की खोज कर के उससे कटींग टुल बनाया और कई इन्डस्ट्रीझ मे क्रांती ला दी । इस टुल ने मेडीकल सर्जरी को भी कहा से कहा पहुचा दीया ।
XI. मणीलाल भौमीक – Excimer Laser Technology की खोज के प्रणेता और उसके विकास मे महत्वपुर्ण भुमीका ।
XII. रंगास्वामी श्रीनिवासन् – हॉल ओफ फॅम के इस खोजकर्ता ने ओपरेशन्स और सर्जरी मे लेझर को पहली बार आजमाया और कामयाब रहे । बाद मे संशोधन कर के इसका विकास किया ।
XIII. येल्लप्रागौडा सुब्बाराओ – फ्रोलीक एसीड और Methotrexate की खोज कर के क्रांती लायी ।
मै एसे 7000 नाम गिना सकता हु जिन्होने अमेरीका और अन्य पश्चीमी देशों के अर्थतंत्र को जिंदा रखा । जर्मनि के वर्नर ब्राउन ने रॉकेट का निर्मांण करके हिटलर को मदद की और उसी के रॉकॅट की वजह से लाखों निर्दोष लोगों की जान गयी और अरबों डॉलर का नुकसान हुआ । यह एक गंभीर युध्धापराध (War Crime) था लेकीन अमेरीका ने उसे बंदी बना के उस पर अन्य युध्ध अपराधी (War Criminals) की तरह काम लेने के बजाय उस के सारे गुनाह माफ कर दीये और शर्त रखी के वह अमेरीका का नागरीक बन जाये और उसके लिये काम करे ।
अमेरीका और पश्चिमी देश हमारे बुध्धीधन को आकर्षक पॅकेजीस दे कर अपनी ओर खिंचती है और बदले मे बने माल को हमे ही बेच कर हमसे पैसा कमाती है और इस तरह उनका कारोबार चलता है ।
ःःःः भारत को क्या करना चाहिये? ःःःः
अगर सरकार के भरोसे रहे तो हमारे देश की प्रगती तो हो के रही ।
तांजोर रामचंद्र अनंतरमण, डॉ. विक्रम साराभाई, डॉ.होमी भाभा, डॉ. व्हि. एस. अरुणाचलम्, डॉ. वसंत गोवारीकर, डॉ. सतिश धवन, सिरकुमार बॅनर्जि, सुरेश कुमार भाटिया, अमिताभ भट्टाचार्य, डॉ. दीलीप भवालकर, डॉ. विवेक बोरकर, डॉ. प्रकाश ब्रम्ह, डॉ. क्षितीश रंजन चक्रवर्ती, कमनियों चट्टोपाध्याय, सुरेश दत्ता रॉय, अशोक झुनझुनवाला, जयेष्ठराज बालचंद्र जोशी, डॉ. क्रिश्नास्वामी कस्तुरीरंगन, देवांग विपीन खख्खर, भास्कर कुलकर्णी, राजेन्द्र कुमार, श्रीकांत लेले, राज महिन्द्रा, रघुनाथ अनंत म्हासेलकर, मनोहर लाल मुंजाल, रुद्रम नरसिंहा, बल राज निजहवन, अनंता पै, शंकर पाल, सुरेद्र प्रसाद, गगन प्रताप, वैद्येश्वरण राजारामन, अय्यंगरी सांबाशिवा राव, गुन्दाबाथुला व्यंकटेश्वरा राव, पच्चा रामाचंद्रा राव, पौल रत्नास्वामी, शेखरीपुरम शेषाद्री, होमी सेठना, अनुराग शर्मा, मनमोहन शर्मा, दीग्विजय सिंह, सुहास सुखात्मे, जि. सुरेन्द्रराजन, मन मोहन सुरी, गोविंद स्वरूप, राजेन्द्रपाल वाधवा, दिपांकर बॅनर्जि
यह लिस्ट उन निष्काम कर्मयोगीयोम की है जिन्होने वैभवी जिवन का सपना नही देखा और विदेशी ऑफरों को ठुकरा दी, इन स्वप्नद्रष्टा महानुभावों ने एक उज्ज्वल भारत का सपना देखा और अत्यंत सादगी मे रह कर सामने बहते प्रवाह मे तैरने जैसा काम करके कयी क्षेत्रों मे योगदान दे कर गुमनामी मे चले गये । यह वह स्वप्नद्रष्टा है जिन्होने अपने नाम का मोह नही रखा और काम से मतलब रखा – आज उनके नाम गुगल पर ढुंढने पर भी नही मिलेंगे । लेकीन इनके पुरूषार्थ और योगदान की कहानी की तुलना नामुमकीन है । एक एसे ही महानुभाव का नाम मै भुल गया - डॉ. अब्दुल कलाम इनकी सादगी और योगदान आज बच्चा बच्चा जानता है । यह महानुभाव नासा मे 3 साल रहे तब अमेरीका ने उन को आकर्षक पॅकेज और अन्य कई सुविधायें ऑफर की पर उन्होने सब ठुकरा के भारत आये और थुम्बा के एक चर्च के छोटे से कमरे मे रॉकेट बनाना शुरू किया?
इतनी लंबी पोस्ट पढने के अंत मे बुध्धीशाली नागरीकों से मुझे ज्यादा कुछ कहना उचित नही लग रहा । याद रहे मातृभुमी से अधिक प्रिय और कोई हो ही नही सकता । धर्मांधता, वाद-विवाद, तुष्टीकरण , कौमवाद, आरक्षण, अंधभक्ति, पक्षभक्ति, क्षेत्रभक्ति इन सब से परे रहे बिना हम एक उज्ज्वल राष्ट्र का सिर्फ सपना ही देख सकते है । उसे साकार कभी नही कर सकते ।
विज्ञान और टॅक्नोलोजी के क्षेत्र मे होने वाले आविश्कारों के टॉनिक ने अर्थतंत्र को किस हद तक बुस्ट देके मंदी को टाल दीया और तेजी को टीकाये रखा इसके कुछ कीस्से मै यहा देना चाहुंगा ।
I. स्कॉटलॅन्ड के जेम्स वॉट ने स्टिम यंत्र की खोज की उसके बाद होर्सपावर्ड के बदले स्टिम पावर्ड मशिनरी ने पुरबहार क्रांती ला दी । वॉट की खोज को स्प्रिंग बोर्ड की तरह उपयोग कर के रॉबर्ट फल्ट ने स्टिमर बनायी । ज्योर्ज स्टिफनसन ने 1814 मे स्टिम ईन्जन से रेल्वे को दौडते कीया । 1884 मे चार्ल्स पार्स ने स्टिम टर्बाईन बना के बिजली को पैदा कर दीखाया जिस वजह से थॉमस एडीसन ने पांच वर्ष पहले बनाये बल्ब को घर घर मे प्रकाशित कर दीया । वाष्पयंत्र की एकमात्र खोज ने न जाने कितनी दीशायें बदल डाली और दुनिया भर के अर्थतंत्र उसकी वजह से सद्धर हो गये । पत्थरयुग मे जीने वाले युरोपी नागरीकों का जिवन सुधार के उसे नये स्तर पर लाया !!
II. जर्मनी के कार्ल बॅन्ज ने 1885 की हुई मोटरकार की खोज भी आर्थिक रूप से व्यापक असर पैदा करने वाली थी । मध्यम आकार की मोटर बनाने के लिये लगभग 810 कि.ग्रा. स्टिल, 170 कि.ग्रा. लोखंड, 110 कि.ग्रा. प्लास्टिक, 100 कि.ग्रा. एल्युमिनियम और 60 कि.ग्रा. रब्बर की आवश्यकता होती है । हाईवे से ले कर पेट्रोलपंप तक की अनेक सुविधायें चाहिये । मोटरकार का उत्पादन 6 दर्जन उधोगों को इसा फला के अमेरीका के अर्थतंत्र के लिये तो मोटर उधोग रीढ की हड्डी समान साबित हुआ ।
III. इलेक्ट्रोनिक ट्रांझिस्टर्स का उदाहरण तो कभी नही भुला जा सकता – विलीयम शॉक्ली और उसके दो साथीयों ने 1947 मे प्रथम ट्रांझिस्टर की खोज की तब जमाना काच के तकलादी और तोस्तान वाल्व का था । इस वाल्व को रॅडीयो जैसे बहुत कम साधनों मे इस्तेमाल किया जा सकता था । 1959 मे जॅक कॉल्बी ने ट्रांझीस्टर को सुक्ष्म रूप दे कर चिप मे जड दीया और intel कंपनी ने उस के आधार पर माईक्रोप्रोसेसर बनाया और परीणामवश कम्प्युटर, सॅटेलाईट, कॉम्पेक्ड डिस्क, मोबाईल फोन जैसे अनगीनत आविश्कार शक्य हुए और एक ट्रांझीस्टर की खोज ने कम से कम 12000 उधोगों को नया जन्म या तो बुस्टर डॉज दीया ।
IV. विकसीत देशों के अर्थतंत्र को प्लास्टिक (1911), टॅलीव्हिजन (1928), जॅट ईंजीन (1930) नायलॉन (1937), झेरोग्राफी (1938), हॅलीकॉप्टर (1339), लॅसर (1959) इत्यादी खोजों ने भी वर्षों तक अपना प्रभाव दीखा के पश्चिमी उधोगों को बुस्टर डोज दीया है ।
ःःःः अमेरीका जैसे विकसीत देश क्या करते है ःःःः
अमेरीका और अन्य विकसीत देश अक्सर हमें मुर्ख बनाते है । हावर्ड और कॅम्ब्रीझ जैसी युनिवर्सिटी मे उटपटांग अर्थशास्त्र पढा के असली कारण को दबा देते है और वहा से पढ के जो कोई बाहर आता है उस गधे का अत्याधिक प्रचार करते है जब की इन देशो का असल काम क्या है?
हमारे जैसे विकासशिल देशों के बुद्धी धन को अपनी ओर खिंचना और इन देशों के औधोगीक यंत्रणा को कठपुतली सरकार की बॅडीयों मे जकड देना यही इन अमेरीका जैसे विकसीत देशों का काम है । (विदेशो की निती ही यही है के हम स्वावलंबी ना हो । Parasites की तरह जियें) भारत देश की सरकारों ने हमारे स्वप्नदष्टा औधोगीक साहसीकों को MRTP, मोनोपोली एक्ट, लीमीटेशन एक्ट जैसे कई विचीत्र कानुनों मे जकड के रखा और उन पर कमिशन ठोक कर केस भी चलाया? (हम गरीब क्यु रहे इस बारे मे मै जल्द ही एक पोस्ट डालने वाला हु) आखर मे 21 जून 1991 को यह सब कानुन को रद्दी की टोकरी मे डाल दीया गया और हमारे उधोगों को स्वतंत्रता दी गयी ।
अब बात है हमारे किमती बुद्धी धन की तो मै कुछ उदाहरण देना चाहता हु कैसे हमारे बुध्धीशाली लोगों को अमेरीका ने खिंच कर अपनी तरफ कर लिया और उनकी खोजों को अपने देश मे पॅटंट करवा कर अरबों डॉलर छापे ।
I. पुणे के विनोद धाम – जिन्होंने सबसे पहली इंटेल पॅन्टीयम माईक्रोप्रोसेसर कंप्युटर चिप की खोज (अमेरीका मे रह कर) कर के कंप्युटर क्षेत्र मे क्रांती ला दी । आज कितने लोग इन को जानते है ?
II. अवतार सैनी – इन्टेल की पॅन्टीयम चिप को डीझाइन करने वाले इस व्यक्ति को Father of Pentium कहा जाता है ।
III. व. अ. शिवा अय्यादुराई – मेसेच्युसेट्ट्स इन्स्टीट्युट ओफ टॅक्नोलोजी के इस प्रोफेसर ने Email की खोज कर के जगत के आम नागरीकों को एक दुसरे के संपर्क मे ला दीया ।
IV. विवेक गुन्दोत्रा – गुगल और जिमेईल की इंजीनियरींग के वाईस प्रेसिडंट ।
V. अभिषेक महालानोबीस – इस ब्रिलीयंट सायंटीस्ट ने अमेरीका के डीफेन्स के लिये नये मिसाईल – एन्टी मिसाईल डीफेन्स सिस्टम, Phased Array Radar and Airborne Early Warning System, फाईटर जेट की कई नयी सुधार टॅक्नोलोजी का आविश्कार किया । अमेरीकन डीफेन्स के डायरॅक्टर जनरल किम जॉवी ने एक बार कहा था के मैने अपनी पुरी कारकिर्दी मे अभीषेक के जैसा Brilliant Scientist नही देखा !!!
VI. सबीर भाटीया – जिन्होने हॉटमेईल की खोज की ।
VII. अजय भट्ट – Intel के क्लायंट प्लेटफोर्म आर्किटॅक्त ने USB की खोज मे सहयोग दीया ।
VIII. स्वपन चट्टोपाध्याय – इस भौतीक वैज्ञानीक ने Particle Accelerator की खोज की ।
IX. नरीदंर सिंह कंपानी – “Father of Fibre Optics” शायद ही कोई न जानता होगा और इनकी खोज ने पुरी दुनिया बदल दी ।
X. चन्द्रकुमार पटेल – कार्बन डायोक्साईड लेजर की खोज कर के उससे कटींग टुल बनाया और कई इन्डस्ट्रीझ मे क्रांती ला दी । इस टुल ने मेडीकल सर्जरी को भी कहा से कहा पहुचा दीया ।
XI. मणीलाल भौमीक – Excimer Laser Technology की खोज के प्रणेता और उसके विकास मे महत्वपुर्ण भुमीका ।
XII. रंगास्वामी श्रीनिवासन् – हॉल ओफ फॅम के इस खोजकर्ता ने ओपरेशन्स और सर्जरी मे लेझर को पहली बार आजमाया और कामयाब रहे । बाद मे संशोधन कर के इसका विकास किया ।
XIII. येल्लप्रागौडा सुब्बाराओ – फ्रोलीक एसीड और Methotrexate की खोज कर के क्रांती लायी ।
मै एसे 7000 नाम गिना सकता हु जिन्होने अमेरीका और अन्य पश्चीमी देशों के अर्थतंत्र को जिंदा रखा । जर्मनि के वर्नर ब्राउन ने रॉकेट का निर्मांण करके हिटलर को मदद की और उसी के रॉकॅट की वजह से लाखों निर्दोष लोगों की जान गयी और अरबों डॉलर का नुकसान हुआ । यह एक गंभीर युध्धापराध (War Crime) था लेकीन अमेरीका ने उसे बंदी बना के उस पर अन्य युध्ध अपराधी (War Criminals) की तरह काम लेने के बजाय उस के सारे गुनाह माफ कर दीये और शर्त रखी के वह अमेरीका का नागरीक बन जाये और उसके लिये काम करे ।
अमेरीका और पश्चिमी देश हमारे बुध्धीधन को आकर्षक पॅकेजीस दे कर अपनी ओर खिंचती है और बदले मे बने माल को हमे ही बेच कर हमसे पैसा कमाती है और इस तरह उनका कारोबार चलता है ।
ःःःः भारत को क्या करना चाहिये? ःःःः
अगर सरकार के भरोसे रहे तो हमारे देश की प्रगती तो हो के रही ।
तांजोर रामचंद्र अनंतरमण, डॉ. विक्रम साराभाई, डॉ.होमी भाभा, डॉ. व्हि. एस. अरुणाचलम्, डॉ. वसंत गोवारीकर, डॉ. सतिश धवन, सिरकुमार बॅनर्जि, सुरेश कुमार भाटिया, अमिताभ भट्टाचार्य, डॉ. दीलीप भवालकर, डॉ. विवेक बोरकर, डॉ. प्रकाश ब्रम्ह, डॉ. क्षितीश रंजन चक्रवर्ती, कमनियों चट्टोपाध्याय, सुरेश दत्ता रॉय, अशोक झुनझुनवाला, जयेष्ठराज बालचंद्र जोशी, डॉ. क्रिश्नास्वामी कस्तुरीरंगन, देवांग विपीन खख्खर, भास्कर कुलकर्णी, राजेन्द्र कुमार, श्रीकांत लेले, राज महिन्द्रा, रघुनाथ अनंत म्हासेलकर, मनोहर लाल मुंजाल, रुद्रम नरसिंहा, बल राज निजहवन, अनंता पै, शंकर पाल, सुरेद्र प्रसाद, गगन प्रताप, वैद्येश्वरण राजारामन, अय्यंगरी सांबाशिवा राव, गुन्दाबाथुला व्यंकटेश्वरा राव, पच्चा रामाचंद्रा राव, पौल रत्नास्वामी, शेखरीपुरम शेषाद्री, होमी सेठना, अनुराग शर्मा, मनमोहन शर्मा, दीग्विजय सिंह, सुहास सुखात्मे, जि. सुरेन्द्रराजन, मन मोहन सुरी, गोविंद स्वरूप, राजेन्द्रपाल वाधवा, दिपांकर बॅनर्जि
यह लिस्ट उन निष्काम कर्मयोगीयोम की है जिन्होने वैभवी जिवन का सपना नही देखा और विदेशी ऑफरों को ठुकरा दी, इन स्वप्नद्रष्टा महानुभावों ने एक उज्ज्वल भारत का सपना देखा और अत्यंत सादगी मे रह कर सामने बहते प्रवाह मे तैरने जैसा काम करके कयी क्षेत्रों मे योगदान दे कर गुमनामी मे चले गये । यह वह स्वप्नद्रष्टा है जिन्होने अपने नाम का मोह नही रखा और काम से मतलब रखा – आज उनके नाम गुगल पर ढुंढने पर भी नही मिलेंगे । लेकीन इनके पुरूषार्थ और योगदान की कहानी की तुलना नामुमकीन है । एक एसे ही महानुभाव का नाम मै भुल गया - डॉ. अब्दुल कलाम इनकी सादगी और योगदान आज बच्चा बच्चा जानता है । यह महानुभाव नासा मे 3 साल रहे तब अमेरीका ने उन को आकर्षक पॅकेज और अन्य कई सुविधायें ऑफर की पर उन्होने सब ठुकरा के भारत आये और थुम्बा के एक चर्च के छोटे से कमरे मे रॉकेट बनाना शुरू किया?
इतनी लंबी पोस्ट पढने के अंत मे बुध्धीशाली नागरीकों से मुझे ज्यादा कुछ कहना उचित नही लग रहा । याद रहे मातृभुमी से अधिक प्रिय और कोई हो ही नही सकता । धर्मांधता, वाद-विवाद, तुष्टीकरण , कौमवाद, आरक्षण, अंधभक्ति, पक्षभक्ति, क्षेत्रभक्ति इन सब से परे रहे बिना हम एक उज्ज्वल राष्ट्र का सिर्फ सपना ही देख सकते है । उसे साकार कभी नही कर सकते ।
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