Sunday, August 24, 2014

क़ुतुब मीनार का सच!

जानिए क़ुतुब मीनार का सच! शेयर होना चाहिए, पैसे थोङी ना लगेँगे भई!!

1191A.D.
में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया, तराइन के मैदान में पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध में गौरी बुरी तरह पराजित हुआ, 1192 में गौरी ने दुबारा आक्रमण में
पृथ्वीराज को हरा दिया ,कुतुबुद्दीन, गौरी का सेनापति था!
1206
में गौरी ने कुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्त किया और जब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई तब वह गद्दी पर बैठा!
अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लग गए!

1210 A.D.
लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गयी! अब इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार, कुवैतुल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा नामक
मस्जिद भी बनवाई ??

अब कुछ प्रश्न .......
अब कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिन कब ??
क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 मीनार का निर्माण करा सकता था ? 
जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त
करने में बिताये और 1210 में भी मरने के पहले भी वह लाहौर में था ??
शायद नहीं कुछ ने लिखा कि इसे 1193 AD में बनाना शुरू किया! यह भी कि कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल बनायीं
उसके ऊपर तीन मंजिलें उसके परवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई और उसके ऊपर कि शेष मंजिलें बाद में बनी|

यदि 1193 में कुतुबुद्दीन ने मीनार बनवाना शुरू किया होता तो उसका
नाम बादशाह गौरी के नाम पर "गौरी मीनार "या ऐसा ही कुछ होता कि सेनापति कुतुबुद्दीन के नाम पर क़ुतुब मीनार उसने लिखवाया कि उस परिसर में बने 27 मंदिरों को गिरा कर उनके मलबे से मीनार
बनवाई ,अब क्या किसी भवन के मलबे से कोई क़ुतुब मीनार जैसा उत्कृष्ट कलापूर्ण भवन बनाया जा सकता है जिसका हर पत्थर स्थानानुसार अलग अलग नाप का पूर्व निर्धारित होता है ??

कुछ लोगो ने लिखा कि नमाज़ समय अजान देने के लिए यह मीनार बनी पर क्या उतनी ऊंचाई से किसी कि आवाज़ निचे तक भी सकती है ???

उपरोक्त सभी बातें झूठ का पुलिंदा लगती है इनमें कुछ भी तर्क की कसौटी पर सच्चा नहीं लगता सच तो यह है की जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है
वह महरौली कहा जाता है, महरौली वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था
जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक, और
खगोलशास्त्री थे उन्होंने इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों के अध्ययन के लिए २७ कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया था!
इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बाद भी कहीं कहीं दिख जाती हैं!
कुछ संस्कृत भाषा के अंश दीवारों और बीथिकाओं के स्तंभों पर उकेरे हुए मिल जायेंगे जो मिटाए गए होने के बावजूद पढ़े जा सकते हैं! मीनार , चारों ओर के निर्माण का ही भाग लगता है, अलग से बनवाया हुआ नहीं लगता,
इसमे मूल रूप में सात मंजिलें थीं! सातवीं मंजिल पर " ब्रम्हा जी की हाथ में
वेद लिए हुए "मूर्ति थी जो तोड़ डाली गयीं थी ,छठी मंजिल पर विष्णु जी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे
वो भी हटा दिए गए होंगे, अब केवल पाँच मंजिलें ही शेष है
इसका नाम विष्णु ध्वज /विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ प्रचलन में थे!

इन सब का सबसे बड़ा प्रमाण उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है जिस पर
खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख जिसे झुठलाया नहीं जा सकता, लिखा है कि यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है,सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य
(
राज्य काल 380-414 ईसवीं) द्वारा स्थापित किया गया था और यह लौह
स्तम्भ आज भी विज्ञानं के लिए आश्चर्य की बात है कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा |
उसी महान सम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्य भट्ट,खगोल शास्त्री
एवं भवन निर्माण विशेषज्ञ वराह मिहिर ,वैद्य राज ब्रम्हगुप्त आदि हुए!
ऐसे राजा के राज्य काल को जिसमे लौह स्तम्भ स्थापित हुआ
तो क्या जंगल में अकेला स्तम्भ बना होगा निश्चय ही आसपास अन्य
निर्माण हुए होंगे जिसमे एक भगवन विष्णु का मंदिर था उसी मंदिर के
पार्श्व में विशालस्तम्भ विष्णुध्वज जिसमे सत्ताईस झरोखे जो सत्ताईस नक्षत्रो खगोलीय अध्ययन के लिए बनाए गए निश्चय ही वराह मिहिर के निर्देशन में बनाये गए|

इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माण का श्रेय सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्य काल में खगोल शास्त्री वराहमिहिर को जाता है!


कुतुबुद्दीन ने सिर्फ इतना किया कि भगवान विष्णु के मंदिर को विध्वंस
किया उसे कुवातुल इस्लाम मस्जिद कह दिया ,विष्णु ध्वज(स्तम्भ) के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर अरबी के शब्द लिखा दिए और क़ुतुब मीनार बन गया...

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