Wednesday, August 27, 2014

सिर पर चोटी क्यो रखी जाती है??

सिर पर चोटी क्यो रखी जाती है?? और जाने
इसका वैज्ञानिक महत्व::
एक सुप्रीप साइंस जो इंसान के लिये सुविधाएं
जुटाने का ही नहीं, बल्कि उसे शक्तिमान बनाने
का कार्य करता है। ऐसा परम विज्ञान
जो व्यक्ति को प्रकृति के ऊपर नियंत्रण
करना सिखाता है। ऐसा विज्ञान
जो प्रकृति को अपने अधीन बनाकर
मनचाहा प्रयोग ले सकता है। इस अद्भुत विज्ञान
की प्रयोगशाला भी बड़ी विलक्षण होती है।
एक से बढ़कर एक आधुनिकतम मशीनों से सम्पंन
प्रयोगशालाएं दुनिया में बहुतेरी हैं, किन्तु
ऐसी सायद ही कोई हो जिसमें कोई यंत्र
ही नहीं यहां तक कि खुद
प्रयोगशाला भी आंखों से नजर नहीं आती। इसके
अदृश्य होने का कारण है- इसका निराकार स्वरूप।
असल में यह प्रयोगशाला इंसान के मन-मस्तिष्क में
अंदर होती है।
सुप्रीम सांइस- विश्व की प्राचीनतम
संस्कृति जो कि वैदिक संस्कृति के नाम से विश्य
विख्यात है। अध्यात्म के परम विज्ञान पर
टिकी यह विश्व की दुर्लभ संस्कृति है।
इसी की एक महत्वपूर्ण मान्यता के तहत परम्परा है
कि प्रत्येक स्त्री तथा पुरुष को अपने सिर पर
चोंटी यानि कि बालों का समूह अनिवार्य रूप
से रखना चाहिये।
सिर पर चोंटी रखने की परंपरा को इतना अधिक
महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य
को हिन्दुत्व की पहचान तक माना लिया गया।
योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब
आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च
किया गया तो, चोंटी के विषय में बड़े
ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने
आए।
चमत्कारी रिसीवर- असल में जिस स्थान पर
शिखा यानि कि चोंटी रखने की परंपरा है,
वहा पर सिर के बीचों-बीच
सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। तथा शरीर
विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है
कि सुषुम्रा नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में
बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
चोटी सुषुम्रा नाड़ी को हानिकारक
प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्माण्ड
से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक
विचारों को केच यानि कि ग्रहण भी करती है
क्यों रखी जाती है सिर पर शिखा?
सिर पर शिखा ब्राह्मणों की पहचान
मानी जाती है। लेकिन यह केवल कोई पहचान
मात्र नहीं है। जिस जगह शिखा (चोटी)
रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन
को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक
धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के
संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक
युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत:
है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।
आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप
से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन
इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। वास्तव में
शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर
होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है
कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र
होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं, मूलाधार चक्र
जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और
आखिरी है सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है।
इसका आकार गाय के खुर के बराबर
ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह
चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर
नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।
शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह
भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ
मिलता है।

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