हर शहर में सेंट थॉमस नाम से एक स्कूल है। हिंदुओं को लगता है कि अवश्य यह कोई सन्त रहा होगा। पुरानी कहानियों में इसे केरल के मालाबार तट पर आया बताया तो नई कहानी में इसे बनारस पहुंचा दिया गया। कहीं इसे ईसामसीह का भाई कहा गया तो कहीं इसे उसका शिष्य। सत्य यह है कि हिंदुओं को मूर्ख बनाने के लिए यह गप्प बनाई गई।
ईसा की तीसरी शताब्दी में लिखी गई एक गल्प पुस्तक Acts of Thomas में लिखा है कि जीसस क्राइस्ट का जुड़वा भाई थॉमस दासत्व में बेच दिया जाता है और वह अन्द्रोपोलिस नामक पश्चिम एशियाई नगर में आता है, राजा को धोखा देता है, सुन्दर लौण्डे के लिये शैतान से भिड़ जाता है तथा अन्त में एक लम्बी विधिक प्रक्रिया के पश्चात मृत्युदंड पाता है। उसकी मृत्यु के पश्चात पर्सिया, सीरिया आदि में उसके अनुयायी इसाई पैदा हो जाते हैं। जब उस क्षेत्र से उन सीरियाई ईसाइयों को भगा दिए जाते है तब चौथी सदी में वे लोग एक 'थॉमस काना' नामक व्यक्ति के नेतृत्व में दक्षिण भारत में शरण लेते हैं।
सदियाँ बीतती हैं तथा दक्षिण भारत के कुछ भागों पर पुर्तगाली अधिकार होता है। तब कृतघ्नता की सेमेटिक परम्परा का निर्वाह करते हुये उन ईसाईयों द्वारा झूठ का संचार आरम्भ होता है, जिसके दो उद्देश्य होते हैं: (1) पुर्तगालियों द्वारा मन्दिर ध्वंस एवं धार्मिक अत्याचारों को छिपाना तथा (2) लोगों को मसीही / ईसाई बनाना।
इस झूठ के तहत थॉमस के नाम का एक मालाबरी चर्च दिखा कर उसे 52 ई. में भारत आया बताया जाने लगता है। मालाबार से पूर्वी तट पर आकर तमिल क्षेत्र में घुसपैठ कर मइलापुर के प्रसिद्ध प्राचीन कपालीश्वर शिव मन्दिर को पुर्तगाली लोग तोड़ देते हैं तथा उसी स्थान पर चर्च बना कर तथा वहाँ थॉमस शहीद हुआ था ऐसा झूठ फैलाकर उसकी कब्र भी बना दी जाती है! और उसे मारने वाला किसे बताया जाता है? एक ब्राह्मण को!!!
जो थॉमस तीसरी सदी का गल्प है, जो दक्षिण भारत तक कभी नहीं आया, जो कहानी में भी सदियों पहले भारत के पश्चिमी सीमांत प्रदेश के पारसियों के सम्पर्क में आया बताया जाता है जिसकी पुष्टि स्वयं पोप वेनेडिक्ट करता है, वह सुदूर दक्षिण में ‘सदियों पश्चात’ एक ब्राह्मण द्वारा मारा जा कर मन्दिर के गर्भ गृह में शहीद होकर विराजमान हो जाता है!! और भारत की सेकुलर जमात के समस्त वामपंथी इतिहासकार उसे 52 ई. का भारतीय बताने लगते हैं!!! सदियों की दूरी के एक कल्पित एवं एक समनामधारी, दो थॉमसों मिलाकर तथा एक बना कर एक ऐसा लुभावना मिथक गढ़ा जाता है जो भारत की आत्मघाती सेकुलर शिक्षा तंत्र से निकले लोगों को पसन्द आए और जिस पर वे सहज ही विश्वास कर लें।
इस थॉमस मिथक को वास्तविकता बताकर इतना प्रचारित किया जाता है कि कपालीश्वर मन्दिर के ध्वंस की कोई बात ही नहीं करता, लेकिन थॉमस को शहीद बताकर इसाई सहानुभूति बटोर रहा है तथा दक्षिणी ब्राह्मण पर 'अत्याचारी’ का घृणित लेबल लगा दिया जाता है!! यह आज के तमिलनाडु का यथार्थ है। समूचा दक्षिण भारत इसाई मिशनरियों की चपेट में है।
यह ध्यान देने योग्य है कि ईसा, यीशु या जीसस भी एक काल्पनिक चरित्र है। उसके कश्मीर आने या वहाँ उसकी कब्र होने या पुनर्जीवन के पश्चात वहाँ उसका विवाह होने आदि आदि मिथ्या प्रचारों के पीछे भी इसाइयों का षडयंत्र है। यह वास्तविकता है कि काल्पनिक जीसस के काल्पनिक जन्मदिन (25 दिसम्बर - क्रिसमस) को ईसाईयों से अधिक हिंदू सेलिब्रेट करने लगे हैं। वे ‘बच्चे’ जो सेण्ट थॉमस, सेण्ट पॉल, सेण्ट जेवियर्स आदि स्कूलों में पढ़कर निकले है या पढ़ते हैं, वे क्रिसमस पर प्रसन्नता के मारे फूले नहीं समाते!
संत (?) थॉमस के मिथक और कपालीश्वर शिव मंदिर के विध्वंस की रोचक कहानी को जानने के लिए प्रस्तुत है...
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