अभिषेक का महत्त्व --
- सृष्टि की शुरुवात से यही जल चक्र में आ रहा है , जा रहा है| ये हम सभी स्कूल में वाटर साइकल में पढ़ चुके है|
- जो जल नदियों , नालों में बहता है , वहीँ समुन्दर में मिलता है , वही वाष्प बन कर बादल बनता है | वही बादल बरस कर नदियाँ बनते है| नदी , तालाब , कुँओं का यह जल विभिन्न कार्यों के लिए प्राणी उपयोग में लाते है | इसके साथ निहित भावनाओं से उस जल में सूक्ष्म परिवर्तन आते है जो कई बार अच्छे होते है , अधिकतर बुरे होते है , जिनका प्रभाव प्राण तत्व पर बुरा होता है|
- जल तत्व को शुद्ध करने के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने बहुत ही विचार पूर्वक अभिषेक का कार्य बनाया |
- अभिषेक की प्रक्रिया में हम शुद्ध भावना से बूँद बूँद जल या थोड़ा थोड़ा जल ईश्वरीय प्रतिमा पर डालते जाते है|
- इसके साथ समूह में मन्त्र और श्लोक बोले जाते है| इन मन्त्रों की ध्वनी का प्रभाव उस जल , या दूध या अन्य द्रवों पर होता है|
- उस द्रव्य में सूक्ष्म परिवर्तन आते है| मन्त्र शक्ति युक्त यह द्रव्य अत्यंत गुणकारी , प्रभावशाली और अमृत तत्व से युक्त हो जाता है|
- यहीं द्रव्य नदियों , तालाबों में मिल जाता है| जिस प्रकार विष की एक बूँद पुरे तालाब को विषैला कर सकती है , उसी प्रकार यह अमृत तत्व युक्त द्रव्य हमारे नदियों , तालाबों को शुद्ध करते जाता है|
- श्रावण मास में जब जल तत्व की वातावरण में प्रधानता होती है; समूह में अनेक स्थानों पर हज़ारों , लाखों श्रद्धालु , उच्च भावना से मंत्रोच्चार कर अभिषेक करते है ; तो जल तत्व एक व्यापक रूप में शुद्ध होता जाता है|
- वेद मंत्रों के साथ भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से साधक का स्वयं कल्याण तो होता ही है साथ ही वह समस्त संसार के कल्याण के लिए भी महाऔषधि तैयार कर लेता है।
- पर्यावरण के बारे में ऐसी अद्भुत सोच तो एक हिन्दू मनीषी ही रख सकता है|
- || ॐ शिवाय नमः ||
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