मटके और सुराही का पानी पीने में जो आनंद आता है, वह फ्रिज के ठंडे पानी में कहां ! इसके अलावा भी मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करने के कई फायदे हैं। मिट्टी के बर्तनों की खूबियों को हम सदियों से जानते रहे हैं। भौतिक सुख-सुविधाओं के इस दौर में देशी फ्रिज यानी मिट्टी के बर्तनों की मांग सदा से रही है। इसको पसंद करने वाले कम ही सही, पर हैं। ‘मटके ले लो...’ ‘सुराही ले लो...’ ‘देशी फ्रिज ले लो..’ की आवाजें गर्मियां आते ही सुनाई देने लगती हैं। हालांकि ग्रामीण इलाकों में तो देशी फ्रिज आज भी अपना वजूद कायम रखे हुए हैं। शहरों में भी इनकी छोटी-सी जगह बनी हुई है। धीरे-धीरे फिर लोग इनकी अहमियत को पहचानने लगे हैं। ऐसे घर शेष हैं, जिनमें आज भी कई तरह के मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल किए जाते हैं।
जड़े गहरी हैं :
मिट्टी के पात्रों का इतिहास हमारी मानव सभ्यता से जुड़ा है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में अनेक मिट्टी के बर्तन मिले थे। पहले के मिट्टी के पात्र भारी-भरकम हुआ करते थे, वहीं आज के बर्तन हल्के, गोल व कलात्मक आकार ले चुके हैं। पुराने समय से कुम्हार लोग मिट्टी के बर्तन बनाते आ रहे हैं। कुम्हार शब्द कुम्भकार का अपभ्रंश है। कुम्भ मटके को कहा जाता है, इसलिए कुम्हार का अर्थ हुआ-मटके बनाने वाला। किसी जमाने में मटकों की इतनी मांग रहती थी कि कुम्हार साल भर मटके बनाने के बावजूद लोगों की मांग पूरी नहीं कर पाते थे। पानी भरने के साथ-साथ हमारे पूर्वज भोजन पकाने और दही जमाने जैसे कार्यों में भी मिट्टी के पात्रों का इस्तेमाल करते थे। वे इन बर्तनों के गुणों से भी अच्छी तरह वाकिफ थे। चलिए जानते हैं कि इन बर्तनों के इस्तेमाल से क्या लाभ हैं ?
अनेक हैं लाभ ::
हमारे यहां सदियों से प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का इस्तेमाल होता आया है। दरअसल, मिट्टी में कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मिट्टी के बर्तनों में भोजन या पानी रखा जाए, तो उसमें मिट्टी के गुण आ जाते हैं। इसलिए मिट्टी के बर्तनों में रखा पानी व भोजन हमें स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। वैसे स्वाद के मुरीद भी मिट्टी के बर्तनों की अहमियत को भली भांति जानते हैं, तभी तो मटके या सुराही के पानी की ठंडक और सौंधापन, उन्हें फ्रिज के पानी से कहीं ज्यादा भाता है। मिट्टी की छोटी-सी मटकी में दही जमाया गया दही गाढ़ा और बेहद स्वादिष्ट होता है।
गर्भवती स्त्रियों को फ्रिज में रखे, बेहद ठंडे पानी को पीने की सलाह नहीं दी जाती। उनसे कहा जाता है कि वे घड़े या सुराही का पानी पिएं। इनमें रखा पानी न सिर्फ हमारी सेहत के हिसाब से ठंडा होता है, बल्कि उसमें सौंधापन भी बस जाता है, जो काफी भला मालूम होता है। इतनी सावधानी रखने को जरूर कहा जाता है कि सुराही और घड़े को साफ रखें, ढककर रखें तथा जिस बर्तन से पानी निकालें, वह साफ तरह से रखा जाता हो। मटकों और सुराही का इस्तेमाल करने के भी कुछ नियम होते हैं। इनके छोटे-छोटे असंख्य छिद्रों को हाथ लगाकर साफ नहीं किया जाता। ताजे बर्तन को पानी से भरकर, जांच लेने के बाद केवल साधारण तरीके से धोकर तुंरत इस्तेमाल किया जा सकता है। बाद में कभी धोना हो, तो स्क्रब आदि से भीतर की सतह को साफ कर लें। मटकों और सुराही के पानी को रोज बदलना चाहिए। लम्बे समय तक भरे रहने से छिद्र बंद हो जाते हैं। सफर पर जाते समय, गर्मियों में सुराही से बढ़िया कोई विकल्प नहीं। पूर्वी राज्यों में तो इनके लिए बाकायदा स्टैंड बनाए जाते हैं और रस्सी के कवर भी। स्टैंड पर झुलाकर, सुराही से पानी निकाला जाता है, छोटी स्टील की गिलसियों में। परम्परा का उम्दा सिलसिला हैं मटके और सुराहियां।
ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं मटकों और सुराहियों की पारखी होती हैं। वे देखकर ही बता देती हैं कि किस मटके या सुराही में पानी ज्यादा ठंडा रहेगा।
मिट्टी के बर्तनों में रखी खाद्य सामग्री जल्दी खराब नहीं होती, इसलिए ग्रामीण इलाकों में इन्हें फ्रिज की तरह इस्तेमाल किया जाता है। शायद इसी अवधारणा ने इन बर्तनों को देशी फ्रिज का नाम दिया होगा।
मटके के अंदर से हाथ से घिसकर न धोएं, इससे मटके के बारीक छिद्र बंद हो जाते हैं और जल अधिक ठंडा नहीं हो पाता।
No comments:
Post a Comment