लेखक श्री राजेश जी आर्य।
एक स्वतन्त्र विचारों वाली महिला...
बहुत तर्क करने वाली, स्वतन्त्र विचार रखने वाली या बुद्धिमती स्त्रियाँ प्रायः हमेशा समाज को अखरती रही हैं। उनसे कभी अपेक्षा नहीं रक्खी गई कि वो उन विषयों पर भी अपनी राय रखेंगी जिन पर राय रखने का अधिकार सिर्फ पुरुष ही समझता है।
ऐसा ही कुछ प्राचीन अलेक्जेंड्रिया शहर की प्रसिद्ध महिला हिपेशिया के साथ भी हुआ था, जो गणित, खगोल शास्त्र, दर्शन शास्त्र सहित कई विषयों की विद्वान् थी। वह प्रकांड विद्वान् थीओन की बेटी थी। वो अपने पिता की विरासत को और आगे ले जा रही थी। विभिन्न विषयों की नए तरीके से (पारंपरिक से भिन्न) व्याख्या करने वाली हिपेशिया रूढ़िवादी अवैज्ञानिक विचार रखने वाले कुछ कट्टर ईसाईयों की आँख की जल्द ही किरकिरी बन गई। उससे नफरत करने वाले लोगों ने उसके बारे में तमाम तरह के भ्रम फैला दिए। एक दिन मौका हाथ लगने पर उससे चिढने वाले लोगों ने उसे घेर कर मार डाला। यह हत्या उन मजहबी तत्वों ने बहुत ही वीभत्स तरह से की। इससे उनकी स्वतन्त्र चिंतक हिपेशिया के प्रति बेहिसाब नफरत का पता चलता है। उसके कपडे फाड़ कर शरीर की खाल खीच ली और जला दिया गया। ज्ञान की उपासक एक नारी जिसके पास केवल तर्क, ज्ञान और बुद्धि का अस्त्र था सबको इतना खटकने लगी कि उसकी हत्या करके ही उन कट्टरपंथियों को चैन मिला। हिपेशिया की गलती यह थी कि वह स्त्री होकर भी तमाम शास्त्रों की विवेचना कर रही थी। उनकी अलग तरह से व्याख्या कर रही थी। स्वतन्त्र विचारक थी। ज्ञान व प्रकाश की उपासक थी। तर्क व बुद्धि से कार्य करती थी। वो उन तमाम क्षेत्रों में दखल दे रही थी जिन पर तत्कालीन समाज में केवल पुरुष का वर्चस्व था।
शायद दुनिया में अधिकतर जगह ऐसा है कि ज्यादा तर्क-वितर्क करती स्त्री को उस तरह से सम्मान नहीं मिल पाता है जिस तरह पुरुष को मिलता है। ऐसा करने वाला पुरुष जहाँ सबकी नज़रों में महान बन जाता है, बुद्धिमान समझा जाता है, वहीं ऐसी स्त्री हठी और कुतर्की का दर्जा पाती है। कोई भी धर्म, मजहब, सम्प्रदाय, संस्था, राज्य और समाज कितना उदार है, इसे इस पैमाने पर मापा जा सकता है कि वहाँ महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार होता है। नारी को शक्ति के रूप में देखने वाली धरती और स्त्री-पुरुष में समानता का सन्देश देने वाले वैदिक-हिन्दू धर्म पर यह आरोप लगता रहा है कि यहाँ महिलाओं के साथ सही व्यवहार नहीं होता है। पश्चिमी सभ्यता के उदारवाद की दुहाई देते नहीं थकने वाले भारतीय समाज के कुछ तबके, हिन्दू जीवन-दर्शन और पुरातन भारतीय संस्कृति को इसी आधार पर हीन दृष्टि से देखते रहे हैं, लेकिन क्या ये सच है? क्या सच में ईसाईयत, इस्लाम आदि मजहबों में महिलाओं को वो जगह मिली है, जिससे हिन्दू समाज ने आपने आपको वंचित रखा है? इसके लिए कुछ घटनाओं को देखना जरूरी है, तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है।
ईसाई पंथ में महिलाओं के उभरने के बाद उनका क्या हश्र किया जाता है, उसका एक उदाहरण हमें हिपेशिया के रूप में देखने को मिलता है। हिपेशिया एक ऐसा नाम है जिसकी कहानी सुन कर आज अनेकों चर्च में ननों के साथ हो रहे निर्मम व्यवहार भी फ़िके लगने लगेंगे। गणित, दर्शन सहित कई विषयों में विद्वान रही हिपेशिया चौथी-पाँचवी सदी में पूर्वी रोमन साम्राज्य के मिस्र में एक जाना-पहचाना नाम था। उनके आधुनिक विचार और उनका ज्ञान ईसाईयत के स्वयंभू पंडितों को काटने दौड़ता था। फिर एक दिन ऐसा आया, जब ईसाई मजहबी क्रूरता अपनी सारी हदें पार कर गई। कुछ कट्टर ईसाइयों ने उसका अपहरण कर लिया। उसके बाद उसे अलेक्जेंड्रिया नगर के एक धार्मिक स्थल में ले जा कर वहाँ उन्होंने उसकी हत्या कर दी, ज्ञान का दीपक बुझा दिया। निर्ममता अपनी सारी हदें तब पार कर गई जब उसके शरीर को इतने टुकड़ों में काटा गया कि शायद उनका कोई रिश्तेदार भी उन्हें पहचान नहीं पाया होगा।
ये मॉब-लिंचिंग का सबसे भयावह दृश्य था। उसके क्षत-विक्षत शव को पूरे शहर में घुमाया गया और फिर एक ख़ास जगह पर ले जा कर उसमें आग लगा दी। वह दृश्य व घटनाक्रम इतना डरावना था, इतना भयावह था कि इसने बिना सोशल मीडिया वाले उस युग में भी मिस्र सहित पूरे रोमन साम्राज्य को हिला दिया था। कट्टर मजहबी भीड़ द्वारा हत्या का यह एक ऐसा जीवंत उदाहरण है जो आज-कल की लाशों पर आग जलाकर प्रोपेगंडा से अपना हाथ सेंकने वाले कथित एक्टिविस्ट्स की सारी पोल खोल देगा।
हिपेशिया के बलिदान की करुण कथा को विस्तार से जानने के लिए पढ़ें पूर्व ईसाई पादरी एम. एम. मेंगसरिअन की रचना...
◆ The Martyrdom of Hypatia
1. “Hypatia” by John Toland (1720)
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