Thursday, January 14, 2021

मै महेंद्र पाल आर्य।

मै महेंद्र पाल आर्य कोलकाता के असगर मिस्त्री लेन कोलकाता३९.पश्चिम बंगाल के राजधानी में इक पढ़े लिखे परिवार में जन्मा|परिवार के रीती रिवाज़ अनुसार पला बढ़ा.परिवारके लोग हर दिशा में काम करतेरहे| शिक्षा क्षेत्रमें मेरे फूफेरे भाई-डॉ.अबू ताहिर बोलपुर शांतिनिकेतन.में.अरबी.फारसी-विभाग अध्क्ष.रहे–अब्दुर रउफ कोलकाता के मेयर रहे|कई डॉ और वकील भी इस परिवार ने दिया-धार्मिक क्षेत्र में भी ठीक.यही गति विधि होने के कारण मुझे भी बचपन से इस्लामिक शिक्षा मिलती रही-जिसमे मै अपनी पढ़ाई कोलकाता और दिल्ली में पूरी कि |

दिल्ली में रहते मै अपने मित्र से मिलने ग्राम बरवाला जिला मेरठ{अब बागपत}में गया यहाँकि बड़ी मस्जिद खाली थी|मित्र ने सब से बात की.अब्दुल लतीफ़-हाजी फिज़ू –हाजी शफी-और जितने भी कमिटी के लोग थे १२० घर उस मस्जिद से जुड़े थे-लोगोंने मेंरी पढ़ने का तरीका बोलचाल व्यवहार कुशलता को पसंद किया-और इमामत करने कि बात पक्की करली|मै लगभग तीन साल तक इमामत की-आस पास के लोगोंमे मेरी चर्चा होने लगी|मै बंगाल का रहने वाला इतनी अच्छी जान कारी रखने वाला आलिम.को पा कर गांव के लोग बेहद पसंद करने लगे |बहुत ज़ल्द पुरे जिले में-और आसपास के जिलों में भी बात खूब फैली-लोगों में चर्चा थी बंगाली जादू जानता है-पर ऐसा कुछ भी नहीं था ज़ब्की मै ही इस काम का बिरोधी था-फिरभी लोग मुझसे तावीज़ आदि बनवाने आते थे-कुछ तो अपनी दवा लेने को आते थे अदि.कुल मिलाकर सब ठीक चलरहा था| उसी ग्राम का मास्टर कृष्ण पाल सिंह जो गुरुकुल इंद्र प्रस्थ में बिज्ञान के मास्टर थे-मेरी तारीफ अपने गुरुकुल में जाकर की.स्वामी शक्तिवेश जी संचालक थे-उनहोंने मुझे मिलनेको बुलावा भेजा |

मै समय निकाल कर उनसे मिलने गया-एक रात रुका भी गुरुकुल के सभी मास्टरों से आधिकारी और पढ़ने वालों से मिला=वह गुरुकुल लालकिला से कुछ कम नहीं=उन्ही लोगों के साथ खाया–वहां नमाज़ भी पढ़ी फिर ज़ब वहां से चलने लगा तो वहां के श्री मंत्री जी ने मुझे उर्दू वाली सत्यार्थ प्रकाश नामी किताब दी-उसे लेकर मै बरवाला के लिये रवाना होगया |उसे पलटने पर कुरान कि अयातें मिली खूब मोनोयोग से पढ़ा.सवालों.को देख कर माथा ठनका|अरे कुरान पर सवाल यह कैसे संभव हुवा?कारण बचपन से अबतक कि मेरी जो तालीम थी वह यही थी.कि कुरान पर सवाल करना?किसी कि बसकी बात नहीं ?मै तो हक्का बक्का रह गया| मै अपनी पुस्तक में खूब बिस्तार से लिखा हूँ–अस्तु- मैंने इसी किताब से कुछ सवाल उठा कर २५ ज़गहजिस में दारुल इफ्ताह–फतवा देनेका अधिकार-जहाँ –जहाँ-मदरसे में है भेज दिया|७ ज़गह से उत्तर मिला आप इस लायक ही नहीं–आप गुमराह.होगये–मुर्तित होगये–आदि ज़ब ज़वाब सही नहीं मिल पाया तो १९६३ को मैंने सत्य सनातन बैदिक धर्म स्वीकार किया |उसी बरवाला ग्राम के हाई स्कूल में कई मुस्लिम मास्टर भी थे-उसी ग्राम के जाने माने-मास्टर गुलाम रसूल साहब भी थे |सब के सामने हजारों कि भीड़ में मैंने सत्य सनातन बैदिक धर्म को स्वीकार किया-पुरे परिवार के साथ |

स्वामी शक्ति वेश जी ने परिवार का नाम करण किया-मेरा नाम मोलवी महबूब अली से पंडित महेन्द्र पाल-और बेटोंका–भी इसी प्रकार नाम बदला गया|अब मुझे स्वामी जीने जनता को संबोधित करने को कहा तो मै अपने पहले भाषण में कहा कि मै धर्म नहीं बदल रहा हूँ-धर्म मानव मात्र के लिये एक ही है धर्म बदलना.संभव नहीं |धर्म ईश्वर प्रदत्त होता है जो मानव मात्र केलिये है-जैसा सूरज अपना प्रकाश प्राणी मात्र को देता है-कारण यह ईश्वर आधीन है-तो धर्म भी ईश्वर आधीन होने से उससे अलग होना मुनासिब नहीं है.मै समाज.बदल.रहा हूँ| मुस्लिम समाज अंध बिश्वासिवों का समाज है ज़हा अल्लाह को पाने के लिये मोहम्मद का पाना ज़रूरी है| वा आतिउल्लाह व अतिउर्रसुल –अर्थ इतायत करो मेरी और मेरी रसूल कि-वेद में वह बात नहीं|

अगर कोई परमात्मा को पाना चाहता है?तो किसी भी बिचोलिया किज़रूरत नहीं-वह सीधा परमात्मा को पा सकता है|शर्त है कि वह परमात्मा को जान जाए-दुनिया के लोग उसे बिना जाने ही मानते हैं-कुरान का फरमान है ज़ालिकल किताबु ला राइ बफिः–अर्थ कोई शक कि गुन्जाईश नहीं इस किताब में|ذا لك الكتاب لا ريب فيه | मैंने कहा मै इन्सान हूँ हमारे पास अक़ल है हमे अक़ल से काम लेना है|अतःहमें देख कर मानना होगा |इस अंध बिश्वास से मै मुक्ति पाने के लिये वैदिक धर्म को अपनाया है|बाकी जिंदगी मै पढ़े लिखे लोगों के साथ गुजार.ना चाहता हूँ | सभी लोगों ने पुरे परिवार को आशीर्वाद दिया.एक सौहार्द पूर्ण वाता वरण में कार्य क्रर्म संपन्न हुआ–मास्टर कृष्ण पाल जी के घर पर प्रीती भोज कर हम सभी इन्द्रप्रस्थ गुरुकुल लौटे| मै आधिकारी बनकर रहने लगा-अर्याज़गत के सभी बड़े-बड़े-विद्वानों से मिलाने का काम स्वामी शक्तिवेश जीने अपने ऊपर लिया और उत्तर प्रदेश-दिल्ली–हरयाणा–चारो तरफ धुवां धार प्रचार चलती रही | मै अपना विषय तुलनात्मक अद्धायन ही पसंद किया|वेद और कुरान ही मेरा विषय है जिसको.आज.पूरी.दुनिया देख रही है और समझ रही है| जिसके वल पर अब तक मै इस्लाम जगत के कई जाने माने हस्तिओं से.जो लोग अपने को कुरान और हदीसों के जानकार मानते हैं-उन्ही लोगोंसे शाश्त्रार्थ कर चूका हूँ |

परमात्मा और अल्लाह के संदर्भ में ज़ब मैंने कहा कि दोनों एक नहीं है?तो अब्दुल्लाह तारिक झुनझला.गये.कि यह सही नहीं है?मेरे प्रमाण देने पर भी मानने को तैयार नहीं |तो इसे मै पुस्तक के रूप में दुनिया वालों को बताना उचित समझा |और पूर्व इमाम के कलम से वेद और कुरान कि समिक्षा लिखी-जो मेरे वैदिकज्ञान वेब साइट में देखा जा सकता है |जिस में अल्लाह के ९९ नाम बताया जाता है-और कुरान में वह.किस.किस.ज़गह आया है?उसका अर्थ सहित सह प्रमाण लिखा हूँ| और वेद में परमात्मा के आसंख नाम आया.है.वह किन किन मन्त्रों में आया है-उसको भी अर्थ सहित लिखा हूँ-भली भांति आप सभी जने उसको देख व पढ़ सकते है वहा से ले भी सकते हैं किसी प्रकार का कोई फ़ीस भरने कि ज़रूरत नहीं | वैदिक ज्ञान को मै इस लिये चुना-कि वेदों के नाम से लोग अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं-उन लोगों द्वारा हो रहा है जो वेदों का व तक नहीं जानते | और नाहक वेद में मोहम्मद का नाम बताने लगे-पर यह समझ नहीं.लोगों में?कि परमात्मा का दिया ज्ञान जो मनुष्य मात्र के लिया है-तो उसमे किसी व्यक्ति बिशेष का नाम होना ही दोष है?और यह दोष परमात्मा पर लगेगा-फिर उसका परमात्मा होना-सम्भव नहीं होगा |कुरान तथा बाइबिल में यही सब दोष है–तो लोगों ने सोचा कि वेद भी ठीक ऐसा ही होगा? इसी विचार ने वेदों पर आकक्षेप लगा ने कि हिम्मत कि है |वेद क्या है पहले हमें जानना पड़ेगा?उसे जाने बिना ही उस पर टिप्णी करना खतरा से खाली नही होगा|

बृहस्यते प्रथमं वाचो अग्रं यत्प्रेरत नामधेयं दधानाः|यदेषां श्रेषठं यदरि प्रमासीत्प्रेणा तदेषां निहितं गुहाबिः || अर्थ=जब् मनुष्य उत्पन्न हुए-और उन्होने चारों ओर परिदृश्यमान पदार्थों के नामकरण की तब परमगुरु विद्या निधान ने उनमे वाणी की प्रेरणा की-वही वाणी का प्रथम प्रकाश है |वह वाणी किनको मिली ?जो गर्भारम्भ से श्रेस्ट.एवं निर्दोष-होने के साथ प्रभु की कल्याणी वाणी के प्रचार के लिये उत्कट भावना रखते.थे| सर्व ब्यापक अन्तर्यामी प्रभु ने उनके हृदय में प्रेरणा की | यदेषां श्रेष्ठं यदरिप्रमासीत-का अर्थ- है जो ज्ञान श्रेस्ठ हो=सबसे उत्तम-निर्दोष-भ्रम-विप्रलिप्सा-आदि दोषों से शून्य-जिनके हृदय में परमात्मा ने प्रगट कराया | यह है वेद ज्ञान का आबिर्भाव |अब कुरान का नाजिल होने को देखें-यह तो सभी को मालूम है कि हजरत मोहम्मद- रसूले खोदा पर अल्लाह तयला ने कुरान नाजिल की है | ज़ब यह गारे हेरा में जा कर एकांत वास करते थे-तो ज़ेब्राइल नामी फ़रिश्ते हुजुर के पास आए –और उनका सीना चाक किया | यानि उनके दिल को निकला|यानि सर्ज़रिकी?बताया जाता है कि उनके दिलको निकाल कर एक तश्तरी में-A2 रखी गई | फिर उसे,ज़म.ज़म.के.पानी से धोयागाया आदि-एक बार हज़रत गारे हेरा अय्तेकाफ़{ध्यान}अबस्थित थे.और उसी वक़्त कि यह घटना है |جب وقت نبوت کا قریب آیا سینہ مبارک چاک کیا گیا یہ کام حضرت جبریل اور میکا ییل زمیں پر لٹا دی اور دل میرا آب زم زم سے طشت کیا دھو کر کوی چیز اس سے نکالی مجھ کو کچھ معلوم نہ ہوا پھر دل کو رکھ کر سینے کو درست کیا اور میرے ہاتھ پا ووں پکڑ کر لیتا دیا | جس طرح برتن سے کوی سا مان نکالا मै हिंदी में पहले लिख चूका हूँ –मै उपर बतायाहू वेद का आना कैसे हुवा?अब कुरान पर कई सवाल आ गया कि जो-फ़रिश्ता जिब्रील और मिकाईल-ने मोहम्मद साहब का दिल निकाला?कहा कि गारेहिरा नाम कि गुफा में? भाई लोगो ज़रा वीचार तो करो कि गुफा में यह काम होना कैसे सम्भोव्?क्या वह कोई नर्सिंग होम था? या कोई हॉस्पिटल?और उन फरिश्तों ने किस मेडिकल कॉलेज से सर्ज़री पढ़ी थी?इस्लाम का ज़वाब होगा अल्लह कि मर्ज़ी?इसी का नाम है अंध बिस्वास?जो मै पहले बताया हूँ कि मै इस्लाम के इन अंधानुकरण से निकल कर बैदिक रूपी सच्चे दीन को कुबूल किया हूँ |

वैदिक ज्ञान को छोड़ धरती पर जितने भी मत पंथ है सब में यही बात है अल्लाह कि मर्ज़ी वैदिक मान्यता में परमात्मा कि मर्ज़ी नहीं होती |इस भेद को हमें जानना होगा–जो मै वैदिक ज्ञान के माध्यम.से दुनिया वालों को बताना अपना कर्तब्य समझ कर इस कार्य को आरम्भ किया हूँ |आप लोगों को भी उचित है कि इस सत्य को समझ कर औरों तक बताना या पोहुचा देना | इस अंध बिस्वास को ज़रा और खोल दें तो हो सकता है सब कि दिमाग में बात सही सही लगने लगे ?अब तो अल्लाह ने कुरान जिब्रील के माध्यम से भेजा-और उन्हों ने हज़रत मोहम्मद साहब के दिलको धो कर लगा ने के बाद कहा पढ़ो=ज़वाब मिला मै पढ़ना नहीं जानता-जो कुरान के ५ आयत-एकरा बिसमे रबबीकल लज़ी खलक-१-खालाक़ल इंसाना मिनअलाकीन-२-एकरा वा रब्बुकल अक्रमु-३-ल्ल्ज़ी अल्लामा बिल कलामे-४-अल्लमल इंसाना मालम यलम-५=अर्थ==पढ़ साथ नाम परवर दीगार अपने के-जिसने पैदा.किया=पैदा किया आदमी को जमें हुयेलहू से=पढ़ और परवरदिगार तेरा बोहत कर्म करनेवाला है=जिसने सिखाया साथ कलमके =सिखाया आदमीको जो कुछ नहीं जनता था= إقرا باسم رابيك الذي خلق ٠ خلق الإنسان من علق أقرا وربك الاأكرامولزي المبالقلم علم الان سان ما لم يع لم

यह है वह ५ आयत=अर्थ मै उपर लिख चूका हूँ |अप इसपर वीचार करना है?कुरान के अनुसार तो ज़िबरील ने जो आयत मोहम्मद को पढ़ाया=क्या अल्लाह ने उसे पढ़ाकर भेज़ाथा? अगर नही तो जिब्रील को कहांसे मिली ?कि तुम्हे जा कर यह बोलना है? और अगर अल्लाह ने पढ़ाकर भेजा तो जिब्रील के सर्ज़री बिना अल्लाह ने कैसे पढ़ा दिया? ज़ब कि वही बात बताने के लिया मोहम्मद साहब का दिल निकल ना पढ़ा ?अब कुरान का कलामुल्लाह होना कैसे संभव हो सकता है ?दूसरी बात है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जिब्राएल ने अपनी तरफ से यह सारा काम किया हो? कुरान में अल्लाह ने जिब्रील को यही आयत पढ़ा कर भेजा यह चर्चा पूरी कुरान में कही नहीं ? इसी का नाम अंध बिस्वास है.हर दशा में कुरान सवालों के घेरे में है | कुरान के मानने वालों कि मान्यता है कि अल्लाह कि मर्ज़ी है|يمحو الله ما يشا أ و يثبت و عنده أ م الكتا ب अर्थ =मिटाता है अल्लाह और रखता है.जिस बात को चाहता है| यहाँ तो भाई अल्लाह कि मन मर्ज़ी है-जो.कि एक साधारण इन्सान भी नहीं कर सकता=अल्लाह की कैसे कैसे मर्ज़ी हैं देखें?जैसा दिल निकला गया उपर देखा आप लोगोंने|ठीक उसी प्रकार आदमके अन्दर रूह डाला अल्लाह ने=أد خل كر هاوأخ روج كر هان = أيها الرو ح أد خل في هذا الجسد अर्थ =ऐरुह आदम की कालिब के-अन्दर जा=ऐ.जानआदम दाखिल हो तन में नफरत से और निकल आंत से | अब सवाल है कि आदम में डालने के लिये अल्लाह को रूह मिली कहाँ ?रूह बनी किस चीज़ से?इसे बनानेवालेकौन इस प्रकार कुरान से अनेक सवाल है|जिसका ज़वाब इस्लाम के आलिमों से नहीं मिल पाया-और न हीं मिलना संभव है| बैदिक ज्ञान के द्वारा-मत.पंथों.की.बातोको-औरोंतक.पोहुंचाना.मै अपना.लक्ष.माना है |

मै यह कई दिनसे देख रहा हूँ की कुछ इस्लाम नामधारियों ने ज्यादा कुछ बड़बोला पण का कम कर रहे हैं और कुछ अप्धाब्द जैसा जाहिल अदि लिख रहे हैं मुझे |किन्तु यह नहीं समझते की जाहिल वही हिता है जो दिमाग से कम न ले | तो भाइयों को जानना था की इस्लाम में अकल पर दखल देना मना है ,तो जाहिल कौन हुवा ?

No comments:

Post a Comment