वर्ष 2003, कश्मीर शोपियां: - एक युवा कश्मीरी लड़का इफ्तिखार भट्ट, कंधे की लंबाई के बाल और पारंपरिक कश्मीरी परिधान फेरन पहने हुए खूंखार आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के पास उनके संगठन में सम्मिलित होने पहुंचा,
जब उससे पूछा गया कि वह भारतीय सेना से क्यों लड़ना चाहता है, तो उसने खालिस कश्मीरी में भारतीय सेना को भद्दी से भद्दी गालियां देते हुए एक पथराव के दौरान की गयी सैन्य कार्यवाही में हुए अपने भाई की मौत के लिए सेना को ज़िम्मेदार ठहराया।
उसकी कहानी सुनने और सेना के प्रति उसकी नफरत और उसके जुनून को देखते हुए उसे अपने काम का लड़का समझकर उसे सैन्य प्रशिक्षण हेतु पाकिस्तान ले जाया गया, जहां अन्य युवा जेहादियों की तुलना में इस युवा लड़के ने कहीं बढ़कर प्रदर्शन किया और उनसे कहीं अधिक मजहबी कट्टरता भी दिखाई, जिसे देखते हुए उसे नेतृत्व और वैचारिक प्रशिक्षण के लिए तुरंत ही चिह्नित कर लिया गया, और फिर कई स्तर के सैन्य वैचारिक और नेतृत्व प्रशिक्षण के बाद अंत में उसे LOC पार कर भारतीय सेना की चौकी पर हमला करने हेतु भेजा गया ।
उसकी क्षमताओं को देखते हुए एक अभूतपूर्व कदम उठाया गया और उसे अबू सबजार और अबू तोरा जैसे दशकों का अनुभव रखने वाले हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडरों का दायां हाथ नियुक्त किया गया , जिससे उसकी वास्तविक कॉम्बैट एक्शन स्किल्स और उसकी नेतृत्व क्षमताओं का भी विकास हो सके,
2004 में इफ्तिखार भट्ट ने अपने दोनों वरिष्ठ हिजबुल कमांडरों को आश्वस्त किया कि वह सेना की चौकी पर एक सफल हमला कर सकता है जिसमें भारतीय सेना को अधिकतम नुकसान होगा, फिर वह उन्हें उस स्थान पर ले गया जहां से वह भारतीय सेना पर हमला अंजाम देना चाहता था और उन्हें प्रभावित करते हुए उसने उन्हें सेना पर हमले की अपनी योजना की पूरी विस्तृत रणनीति बताई,
हिजबुल कमांडर अबू सबजार को इस बात पर संदेह हुआ कि बिना किसी असली कॉम्बैट अनुभव के यह युवा लड़का आखिर इतनी कुशलता, बारीकी व् सावधानीपूर्वक ऐसे जटिल सैन्य हमले की योजना कैसे बना सकता है.....
जिसके बाद उन्होंने उससे उसकी पृष्ठभूमि, उसके अतीत और उसकी कहानी के बारे में उससे सवाल पूछने शुरू कर दिये,
आपने वरिष्ठ कमांडरों में अपने प्रति अविश्वास को देख भड़कते हुए युवा लड़के ने उन्हें अपनी AK 47 दी और कहा कि यदि वे उसपर भरोसा नहीं करते हैं तो वे उसे तत्क्षण गोली मार सकते हैं, और कुछ कदम पीछे हटकर खड़ा हो गया,
इसके पहले हाथों में AK-47 पकड़े हिजबुल कमांडर किसी निष्कर्ष पर पहुंच पाते, उस युवा लड़के ने बिजली की तेजी से TT-30 9mm टोक्रेव पिस्टल निकाली और दोनों को गोली मार दी, 2-2 गोलियां छाती पर व् एक-एक सिर पर, भारतीय सेना के पैरा एसएफ ऑपरेटर का टिपिकल सिग्नेशर मूव, दोनो हिजबुल कमांडरों को यह पता तक नही चला कि उनके संग क्या हुआ, इसके बाद उस लड़के इफ्तिखार भट्ट ने सारे हथियार समेटे और उन्हें लेकर पास के आर्मी कैंप तक टहलते हुए चला गया, उस लड़के का वास्तविक नाम था मेजर मोहित शर्मा, 1 पैरा एसएफ, (मद्रास रेजिमेंट) भारतीय सेना।
भारतीय सेना का यह अधिकारी वर्ष 2009 में कश्मीर में एक कोर्डन व् सर्च ऑपरेशन में मातृभूमि पर अपना सर्वस्व बलिदान कर गया, और अपने सेकेंड इन कमांड से कहे उसके अंतिम शब्द थे "सुनिश्चित करो कि कोई भी बचके निकलने न पाय।"
कड़वा यथार्थ वास्तविक हीरो फिल्मों, टीवी सीरियलों,वेब सीरीज़ व् सिनेमा हॉल की स्क्रीन पर नहीं पाए जाते...
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