ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ ।
मुहम्मद बिन कासिम (७१२-७१५)
मुहम्मद बिन कासिम द्वारा भारत में
चलाये गये जिहाद और धर्मान्तरण का विवरण, एक मुस्लिम इतिहासकार
अल क्रूफी द्वारा अरबी के 'चच नामा' इतिहास प्रलेख
में लिखा गया है। इस प्रलेख का अंग्रेजी में अनुवाद
एलियट और डाउसन ने किया था।
सिन्ध में जिहाद
सिन्ध के कुछ किलों को जीत लेने के बाद बिन कासिम
ने ईराक के गर्वनर अपने चाचा हज्जाज को लिखा था-
'सिवस्तान और सीसाम के किले पहले ही जीत लिये
गये हैं। हजारों गैर-मुसलमानों का धर्मान्तरण कर दिया गया है
या फिर उनका वध कर दिया गया है। मूर्ति वाले
मन्दिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी गई हैं,
बना दी गई हैं।
(चच नामा अल कुफी : एलियट और डाउसन खण्ड १
पृष्ठ १६४)
जब बिन कासिम ने सिन्ध विजय की, उसने बहुत
से कैदियों को, विशेषकर हिन्दू महिला कैदियों को मुसलमानों के विलास के लिए अपने
देश भेज दिया।
राजा दाहिर की दो पुत्रियाँ- परिमल
देवी और सूरज देवी जिन्हें खलीफा के हरम
को सम्पन्न करने के लिए हज्जाज को भेजा गया था जो युद्ध के लूट के माल के पाँचवे भाग के रूप में
इस्लामी शाही खजाने के भाग के रूप में भेजा गया था।
चच नामा का विवरण इस प्रकार है- हज्जाज की बिन
कासिम को स्थाई आदेश थे कि हिन्दुओं के प्रति कोई
कृपा नहीं की जाए, उनकी गर्दनें काट दी जाएँ और
महिलाओं को और बच्चों को कैदी बना लिया जाए'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ १७३)
हज्जाज की ये शर्तें कुरान के आदेशों के अनुरूप ही थीं। इस विषय में
कुरान का आदेश है-' जब कभी तुम्हें मिलें,
मूर्ति पूजकों का वध कर दो। उन्हें
बन्दी बना लो, घेर लो, रोक लो, घात
के हर स्थान पर उनकी प्रतीक्षा करो' (सूरा ९ आयत
५) और 'उनमें से जिस किसी को तुम्हारा हाथ पकड़ ले
उन सब को अल्लाह ने तुम्हें लूट के माल के रूप
दिया है।'
(सूरा ३३ आयत ५८)
रेवार की विजय के बाद कासिम वहाँ तीन दिन रुका।
तब उसने छः हजार हिन्दुओं का कत्ल किया। उनके
अनुयायी, आश्रित, महिलायें और बच्चे सभी गिरफ्तार
कर लिये गये। जब कैदियों की गिनती की गई तो वे
तीस हजार निकले। जिनमें चालीस हिन्दू सरदारों की पुत्रियाँ थी उन्हें हज्जाज के पास भेज
दिया गया।
(वही पुस्तक पृष्ठ १७२-१७३)
कराची का शील भंग, लूट पाट एवम् विनाश
'कासिम की सेनायें जैसे ही देवालयपुर (कराची) के
किले में पहुँचीं, उन्होंने कत्लेआम, शील भंग, लूटपाट
का मदनोत्सव मनाया। यह सब तीन दिन तक चला।
सारा किला एक जेल खाना बन गया जहाँ शरण में आये
सभी 'काफिरों' - सैनिकों और नागरिकों - का कत्ल
और अंग भंग कर दिया गया। सभी काफिर महिलाओं
को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मुस्लिम
योद्धाओं के मध्य बाँट दिया गया। मुख्य मन्दिर
को मस्जिद बना दिया गया और उसी सुर्री पर
जहाँ भगवा ध्वज फहराता था, वहाँ इस्लाम
का हरा झंडा फहराने लगा। 'काफिरों' की तीस हजार
औरतों को बग़दाद भेज दिया गया।'
(अल-बिदौरी की फुतुह-उल-बुल्दनः अनु. एलियट और
डाउसन खण्ड १)
ब्राहम्नाबाद में कत्लेआम और लूट
'मुहम्मद बिन कासिम ने सभी काफिर (हिन्दू) सैनिकों का वध कर दिया और उनके अनुयायियों और
आश्रितों को बन्दी बना लिया। सभी बन्दियों को दास
बना दिया और प्रत्येक के मूल्य तय कर दिये गये। एक
लाख से भी अधिक 'काफिरों' को दास बनाया गया।'
(चचनामा अलकुफी : एलियट और डाउसन खण्ड १
पृष्ठ १७९)
सुबुक्तगीन (९७७-९९७)
काफिर हिन्दुओं को इस्लाम की रौशनी देने, और
अपवित्रता से पवित्र करने के लिए जयपाल
की राजधानी लम्घन नामक शहर, जो अपनी महान शक्ति और भरपूर दौलत के लिए विख्यात था, की ओर अग्रसर हुआ।
उसने उसे जीत लिया, और निकट के स्थानों, जिनमें
काफ़िर बसते थे, में आग लगी दी,
मूर्तिधारी मन्दिरों को ध्वंस कर दिया और उनमें
इस्लाम स्थापित कर दिया। वह आगे की ओर बढ़ा और
उसने दूसरे शहरों को जीता और नीच हिन्दुओं का वध
किया; मूर्ति पूजकों का विध्वंस किया और बचे हुओं को इस्लाम में दीक्षित किया।
हिन्दुओं को घायल करने और कत्ल करने के बाद लूटी हुई सम्पत्ति के मूल्य को गिनते
गिनते उसके हाथ ठण्डे पड़ गये। अपनी विजय
को पूरा कर वह लौटा और इस्लाम के लिए प्राप्त
विजयों के विवरण की उसने घोषणा की। हर किसी ने
विजय के परिणामों के प्रति सहमति दिखाई और
आनन्द मनाया और अल्लाह को धन्यवाद दिया।'
(तारीख-ई-यामिनीः महमूद का मंत्री अल-उत्बी अनु.
एलियट और डाउसन खण्ड २ पृष्ठ २२, और तारीख-
ई-सुबुक्त गीन स्वाजा बैहागी अनु. एलियट और
डाउसन खण्ड २)
गज़नी का महमूद (९७७-१०३०)
भारत के विरुद्ध सुल्तान महमूद के जिहाद का वर्णन
उसके प्रधानमंत्री अल-उत्बी द्वारा बड़ी सूक्ष्म
सूचनाओं के साथ भी किया गया है और बाद में एलियट
और डाउसन द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने
ग्रन्थ, 'दी स्टोरी ऑफ इण्डिया एज़ टोल्ड बाइ इट्स
ओन हिस्टोरियन्स, के खण्ड २ में उपलब्ध
कराया गया है।'
पुरुषपुर (पेशावर) में जिहाद
अल-उत्बी ने लिखा- ' अभी मध्याह भी नहीं हुआ
था कि मुसलमानों ने 'अल्लाह के शत्रु', हिन्दुओं के
विरुद्ध जिहाद किया और उनमें से पन्द्रह हजार को काट
कर कालीन की भाँति भूमि पर
बिछा दिया ताकि शिकारी जंगली जानवर और
पक्षी उन्हें अपने भोजन के रूप में खा सकें। अल्लाह ने
कृपा कर हमें लूट का इतना माल दिलाया है कि वह
गिनती की सभी सीमाओं से परे है यानि कि अनगिनत
है जिसमें पाँच लाख दास, सुन्दर पुरुष और महिलायें हैं।
यह 'महान' और 'शोभनीय' कार्य वृहस्पतिवार मुहर्रम
की आठवी ३९२ हिजरी (२७.११.१००१) को हुआ'
(अल-उत्बी-की तारीख-ई-यामिनी, एलियट और
डाउसन खण्ड पृष्ठ २७)
नन्दना की लूट
अल-उत्बी ने लिखा- 'जब सुल्तान ने हिन्द
को मूर्ति पूजा से मुक्त कर दिया था, और उनके स्थान
पर मस्जिदें खड़ी कर दी थीं, उसके बाद उसने उन
लोगों को, जिनके पास मूर्तियाँ थीं, दण्ड देने
का निश्चय किया। असंखय, असीमित व अतुल लूट के
माल और दासों के साथ सुल्तान लौटा। ये सब इतने
अधिक थे कि इनका मूल्य बहुत घट गया और वे बहुत
सस्ते हो गये; और अपने मूल निवास स्थान में इन
अति सम्माननीय व्यक्तियों को, अपमानित
किया गया कि वे मामूली दूकानदारों के दास बना दिये
गये। किन्तु यह अल्लाह की कृपा ही है उसका उपकार
ही है कि वह अपने पन्थ को सम्मान देता है और गैर-
मुसलमानों को अपमान देता है।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ३९)
थानेश्वर में (कत्लेआम) नरसंहार
अल-उत्बी लिपि बद्ध करता है- 'इस कारण से
थानेश्वर का सरदार अपने अविश्वास में-अल्लाह
की अस्वीकृति में-उद्धत था। अतः सुल्तान उसके
विरुद्ध अग्रसर हुआ ताकि वह इस्लाम
की वास्तविकता का माप दण्ड स्थापित कर सके और
मूर्ति पूजा का मूलोच्छेदन कर सके। गैर-
मुसलमानों (हिन्दु बौद्ध आदि) का रक्त इस प्रचुरता,अधिकता व बहुलता से बहा कि नदी के पानी का रंग
परिवर्तित हो गया कि और लोग उसे पी न सके।
यदि रात्रि न हुई होती और प्राण बचाकर भागने वाले
हिन्दुओं के भागने के चिह्न भी गायब न हो गये होते
तो न जाने कितने और शत्रुओं का वध हो गया होता। जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया केवल वही जीवित रह पाये।
अल्लाह की कृपा से विजय प्राप्त हुई जिसने
सर्वश्रेष्ठ पन्थ, इस्लाम, की सदैव के लिए
स्थापना की
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ४०-४१)
फरिश्ता के मतानुसार, 'मुहम्मद की सेना, गजनी में,
दो लाख बन्दी लाई थी जिसके कारण गजनी एक
भारतीय शहर की भाँति लगता था क्योंकि हर एक
सैनिक अपने साथ अनेकों हिन्दू दास व दासियाँ लाया था।
(फरिश्ता : एलियट और डाउसन - खण्ड I पृष्ठ २८)
सिरासवा में नर संहार
अल-उत्बी आगे लिखता है- 'सुल्तान ने अपने
सैनिकों को तुरन्त आक्रमण करने का आदेश दिया।
परिणामस्वरूप अनेकों गैर-मुसलमान बन्दी बना लिये
गये और मुसलमानों ने लूट के माल की तब तक कोई
चिन्ता नहीं की जब तक उन्होंने अविश्वासियों,
(हिन्दुओं) सूर्य व अग्नि के उपासकों का अनन्त वध
करके अपनी भूख पूरी तरह न बुझा ली। लूट का माल
खोजने के लिए अल्लाह के मित्रों ने पूरे तीन दिनों तक
वध किये हुए अविश्वासियों (हिन्दुओं) के
शवों की तलाशी ली...
बन्दी बनाये गये व्यक्तियों की संख्या का अनुमान इसी तथ्य से
लगाया जा सकता है कि प्रत्येक दास दो से लेकर दस
दिरहम तक में बिका था। बाद में इन्हें गजनी ले
जाया गया और बड़ी दूर-दूर के शहरों से व्यापारी इन्हें
खरीदने आये थे।...गोरे और काले, धनी और निर्धन,
दासता के एक समान बन्धन में, सभी को मिश्रित कर
दिया गया।' हिन्दू औरतों के विक्रय के लिए अलग से बाजार लगाये गये। सुन्दर औरतें अच्छे मूल्य में बिकीं।शेष का वध कर दिया गया।
(अल-उत्बी : एलियट और डाउसन - खण्ड ii पृष्ठ
४९-५०)
अल-बरूनी ने लिखा था- ' महमूद ने
भारती की सम्पन्नता को पूरी तरह विध्वंस कर दिया।
इतना आश्चर्यजनक शोषण व विध्वंस
किया था कि हिन्दू धूल के कणों की भाँति चारों ओर
बिखर गये थे। हिन्दुओं के शव और के कटे हुए अंग-प्रत्यंग नगरों के हर भाग में बिखर जाते थे।'
(अलबरूनी-तारीख-ई-हिन्द अनु. अल्बरुनीज़ इण्डिया,
बाई ऐडवर्ड सचाउ, लन्दन, १९१०)
सोमनाथ की लूट
'सुल्तान ने मन्दिर में विजयपूर्वक प्रवेश किया,
शिवलिंग को टुकड़े-टुकड़े कर तोड़ दिया, जितना हो सका उतनी सम्पत्ति को आधिपत्य में कर
लिया। वह सम्पत्ति अनुमानतः दो करोड़ दिरहम थी।
बाद में मन्दिर का पूर्ण विध्वंस कर, चूरा कर, भूमि में
मिला दिया, शिवलिंग के टुकड़ों को गजनी ले गया,
जिन्हें जामी मस्जिद की सीढ़ियों के लिए प्रयोग किया'
(तारीख-ई-जैम-उल-मासीर, दी स्ट्रगिल फौर ऐम्पायर-
भारतीय विद्या भवन पृष्ठ २०-२१)
मुहम्मद गौरी (११७३-१२०६)
हसन निज़ामी ने अपने ऐतिहासिक लेख, 'ताज-उल-
मासीर', में मुहम्मद गौरी के द्वारा भारत के विजय का विस्तृत वर्णन
किया है।
हसन निज़ामी ने लिखा ' कि इस्लाम के दायित्वों के निर्वाह के लिए
जैसा वीर पुरुष चाहिए वह, सुल्तानों के सुल्तान मुहम्मद गौरी के शासन में उपलब्ध हुआ; और उसे
अल्लाह ने उस समय के राजाओं और शहंशाहों में से
छांटा था, 'क्योंकि उसने अपने आपको इस्लाम के शत्रुओं
के सम्पूर्ण विनाश के लिए नियुक्त
किया था। उसने हिन्दुओं के हदयों के रक्त से भारत
भूमि को इतना भर दिया था, कि कयामत के दिन तक
यात्रियों को नाव में बैठकर उस गाढ़े खून की भरपूर
नदी को पार करना पड़ेगा। उसने जिस किले पर
आक्रमण किया उसे जीत लिया, मिट्टी में
मिला दिया और उस (किले) की नींव व
खम्मों को हाथियों के पैरों के नीचे रोंद कर भस्मसात
कर दिया; और मूर्ति पूजकों के सारे विश्व
को अपनी अच्छी धार वाली तलवार से काट कर नर्क
की अग्नि में झोंक दिया; मन्दिरों, मूर्तियों व
आकृतियों के स्थान पर मस्जिदें बना दी।'
(ताज-उल-मासीर : हसन निजामी, अनु. एलियट और
डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २०९)
अजमेर पर इस्लाम की बलात् स्थापना
हसन निजामी ने लिखा था- 'इस्लाम
की सेना पूरी तरह विजयी हुई और एक लाख हिन्दू
तेजी के साथ नरक की अग्नि में चले गये...इस विजय
के बाद इस्लाम की सेना आगे अजमेर की ओर चल
दी जहाँ हमें लूट में इतना माल व सम्पत्ति मिले
कि समुद्र के रहस्यमयी कोषागार और पहाड़ एकाकार
हो गये।
'जब तक सुल्तान अजमेर में रहा उसने
मन्दिरों का विध्वंस किया और उनके स्थानों पर
मस्जिदें बनवाईं।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ २१५)
देहली में मन्दिरों का ध्वंस
हसन निजामी ने आगे लिखा-' विजेता ने दिल्ली में
प्रवेश किया जो धन सम्पत्ति का केन्द्र है और
आशीर्वादों की नींव है। शहर और उसके आसपास के
क्षेत्रों को मन्दिरों और मूर्तियों से
तथा मूर्ति पूजकों से मुक्त
बना दिया यानि कि सभी का पूर्ण विध्वंस कर दिया।
एक अल्लाह के पूजकों (मुसलमानों) ने मन्दिरों के
स्थानों पर मस्जिदें खड़ी करवा दीं।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२२)
वाराणसी का विध्वंस
'उस स्थान से आगे शाही सेना बनारस की ओर
चली जो भारत की आत्मा है और यहाँ उन्होंने एक
हजार मन्दिरों का ध्वंस किया तथा उनकी नीवों के
स्थानों पर मस्जिदें बनवा दीं; इस्लामी पंथ के केन्द्र
की नींव रखी।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२३)
हिन्दुओं के सामूहिक वध के विषय में हसन
निजामी आगे लिखता है, ' तलवार की धार से हिन्दुओं
को नर्क की आग में झोंक दिया गया। उनके सिरों से
आसमान तक ऊंचे तीन बुर्ज बनाये गये, और उनके
शवों को जंगली पशुओं और पक्षियों के भोजन के लिए
छोड़ दिया गया।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २९८)
इस सम्बन्ध में मिन्हाज़-उज़-सिराज़ ने
लिखा था- 'दुर्गरक्षकों में से जो बुद्धिमान एवं कुशाग्र
बुद्धि के थे, उन्हें धर्मान्तरण कर मुसलमान
बना लिया किन्तु जो अपने पूर्व धर्म पर आरूढ़ रहे,
उन्हें वध कर दिया गया। '
(तबाकत-ई-नसीरी-मिन्हाज़, अनु. एलियट और
डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २२८)
गुजरात में गाज़ी लोग (११९७)
गुज़रात की विजय के विषय में हसन निजामी ने लिखा-
' अधिकांश हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया और
लगभग पचास हजार को तलवार द्वारा वध कर नर्क
भेज दिया गया, और कटे हुए शव इतने थे कि मैदान
और पहाड़ियाँ एकाकार हो गईं। बीस हजार से अधिक
हिन्दू, जिनमें अधिकांश महिलायें ही थीं, विजेताओं के
हाथ दास बन गये।
(वही पुस्तक पृष्ठ २३०)
देहली का पवित्रीकरण व इस्लामीकरण
'तब सुल्तान देहली वापिस लौटा उसे हिन्दुओं ने
अपनी हार के बाद पुनः जीत लिया था। उसके आगमन
के बाद मूर्ति युक्त मन्दिर का कोई अवशेष व नाम न
बचा। अविश्वास के अन्धकार के स्थान पर पंथ
(इस्लाम) का प्रकाश जगमगाने लगा।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २३८-३९)
इस्लामी शैतानों की सूची बहुत लम्बी होने के कारण प्रथम भाग में केवल इतना ही। अत्याचार एवं धर्मान्तरण की कथा को इससे अधिक संक्षिप्त नहीं किया जा सका।
मुहम्मद बिन कासिम (७१२-७१५)
मुहम्मद बिन कासिम द्वारा भारत में
चलाये गये जिहाद और धर्मान्तरण का विवरण, एक मुस्लिम इतिहासकार
अल क्रूफी द्वारा अरबी के 'चच नामा' इतिहास प्रलेख
में लिखा गया है। इस प्रलेख का अंग्रेजी में अनुवाद
एलियट और डाउसन ने किया था।
सिन्ध में जिहाद
सिन्ध के कुछ किलों को जीत लेने के बाद बिन कासिम
ने ईराक के गर्वनर अपने चाचा हज्जाज को लिखा था-
'सिवस्तान और सीसाम के किले पहले ही जीत लिये
गये हैं। हजारों गैर-मुसलमानों का धर्मान्तरण कर दिया गया है
या फिर उनका वध कर दिया गया है। मूर्ति वाले
मन्दिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी गई हैं,
बना दी गई हैं।
(चच नामा अल कुफी : एलियट और डाउसन खण्ड १
पृष्ठ १६४)
जब बिन कासिम ने सिन्ध विजय की, उसने बहुत
से कैदियों को, विशेषकर हिन्दू महिला कैदियों को मुसलमानों के विलास के लिए अपने
देश भेज दिया।
राजा दाहिर की दो पुत्रियाँ- परिमल
देवी और सूरज देवी जिन्हें खलीफा के हरम
को सम्पन्न करने के लिए हज्जाज को भेजा गया था जो युद्ध के लूट के माल के पाँचवे भाग के रूप में
इस्लामी शाही खजाने के भाग के रूप में भेजा गया था।
चच नामा का विवरण इस प्रकार है- हज्जाज की बिन
कासिम को स्थाई आदेश थे कि हिन्दुओं के प्रति कोई
कृपा नहीं की जाए, उनकी गर्दनें काट दी जाएँ और
महिलाओं को और बच्चों को कैदी बना लिया जाए'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ १७३)
हज्जाज की ये शर्तें कुरान के आदेशों के अनुरूप ही थीं। इस विषय में
कुरान का आदेश है-' जब कभी तुम्हें मिलें,
मूर्ति पूजकों का वध कर दो। उन्हें
बन्दी बना लो, घेर लो, रोक लो, घात
के हर स्थान पर उनकी प्रतीक्षा करो' (सूरा ९ आयत
५) और 'उनमें से जिस किसी को तुम्हारा हाथ पकड़ ले
उन सब को अल्लाह ने तुम्हें लूट के माल के रूप
दिया है।'
(सूरा ३३ आयत ५८)
रेवार की विजय के बाद कासिम वहाँ तीन दिन रुका।
तब उसने छः हजार हिन्दुओं का कत्ल किया। उनके
अनुयायी, आश्रित, महिलायें और बच्चे सभी गिरफ्तार
कर लिये गये। जब कैदियों की गिनती की गई तो वे
तीस हजार निकले। जिनमें चालीस हिन्दू सरदारों की पुत्रियाँ थी उन्हें हज्जाज के पास भेज
दिया गया।
(वही पुस्तक पृष्ठ १७२-१७३)
कराची का शील भंग, लूट पाट एवम् विनाश
'कासिम की सेनायें जैसे ही देवालयपुर (कराची) के
किले में पहुँचीं, उन्होंने कत्लेआम, शील भंग, लूटपाट
का मदनोत्सव मनाया। यह सब तीन दिन तक चला।
सारा किला एक जेल खाना बन गया जहाँ शरण में आये
सभी 'काफिरों' - सैनिकों और नागरिकों - का कत्ल
और अंग भंग कर दिया गया। सभी काफिर महिलाओं
को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मुस्लिम
योद्धाओं के मध्य बाँट दिया गया। मुख्य मन्दिर
को मस्जिद बना दिया गया और उसी सुर्री पर
जहाँ भगवा ध्वज फहराता था, वहाँ इस्लाम
का हरा झंडा फहराने लगा। 'काफिरों' की तीस हजार
औरतों को बग़दाद भेज दिया गया।'
(अल-बिदौरी की फुतुह-उल-बुल्दनः अनु. एलियट और
डाउसन खण्ड १)
ब्राहम्नाबाद में कत्लेआम और लूट
'मुहम्मद बिन कासिम ने सभी काफिर (हिन्दू) सैनिकों का वध कर दिया और उनके अनुयायियों और
आश्रितों को बन्दी बना लिया। सभी बन्दियों को दास
बना दिया और प्रत्येक के मूल्य तय कर दिये गये। एक
लाख से भी अधिक 'काफिरों' को दास बनाया गया।'
(चचनामा अलकुफी : एलियट और डाउसन खण्ड १
पृष्ठ १७९)
सुबुक्तगीन (९७७-९९७)
काफिर हिन्दुओं को इस्लाम की रौशनी देने, और
अपवित्रता से पवित्र करने के लिए जयपाल
की राजधानी लम्घन नामक शहर, जो अपनी महान शक्ति और भरपूर दौलत के लिए विख्यात था, की ओर अग्रसर हुआ।
उसने उसे जीत लिया, और निकट के स्थानों, जिनमें
काफ़िर बसते थे, में आग लगी दी,
मूर्तिधारी मन्दिरों को ध्वंस कर दिया और उनमें
इस्लाम स्थापित कर दिया। वह आगे की ओर बढ़ा और
उसने दूसरे शहरों को जीता और नीच हिन्दुओं का वध
किया; मूर्ति पूजकों का विध्वंस किया और बचे हुओं को इस्लाम में दीक्षित किया।
हिन्दुओं को घायल करने और कत्ल करने के बाद लूटी हुई सम्पत्ति के मूल्य को गिनते
गिनते उसके हाथ ठण्डे पड़ गये। अपनी विजय
को पूरा कर वह लौटा और इस्लाम के लिए प्राप्त
विजयों के विवरण की उसने घोषणा की। हर किसी ने
विजय के परिणामों के प्रति सहमति दिखाई और
आनन्द मनाया और अल्लाह को धन्यवाद दिया।'
(तारीख-ई-यामिनीः महमूद का मंत्री अल-उत्बी अनु.
एलियट और डाउसन खण्ड २ पृष्ठ २२, और तारीख-
ई-सुबुक्त गीन स्वाजा बैहागी अनु. एलियट और
डाउसन खण्ड २)
गज़नी का महमूद (९७७-१०३०)
भारत के विरुद्ध सुल्तान महमूद के जिहाद का वर्णन
उसके प्रधानमंत्री अल-उत्बी द्वारा बड़ी सूक्ष्म
सूचनाओं के साथ भी किया गया है और बाद में एलियट
और डाउसन द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने
ग्रन्थ, 'दी स्टोरी ऑफ इण्डिया एज़ टोल्ड बाइ इट्स
ओन हिस्टोरियन्स, के खण्ड २ में उपलब्ध
कराया गया है।'
पुरुषपुर (पेशावर) में जिहाद
अल-उत्बी ने लिखा- ' अभी मध्याह भी नहीं हुआ
था कि मुसलमानों ने 'अल्लाह के शत्रु', हिन्दुओं के
विरुद्ध जिहाद किया और उनमें से पन्द्रह हजार को काट
कर कालीन की भाँति भूमि पर
बिछा दिया ताकि शिकारी जंगली जानवर और
पक्षी उन्हें अपने भोजन के रूप में खा सकें। अल्लाह ने
कृपा कर हमें लूट का इतना माल दिलाया है कि वह
गिनती की सभी सीमाओं से परे है यानि कि अनगिनत
है जिसमें पाँच लाख दास, सुन्दर पुरुष और महिलायें हैं।
यह 'महान' और 'शोभनीय' कार्य वृहस्पतिवार मुहर्रम
की आठवी ३९२ हिजरी (२७.११.१००१) को हुआ'
(अल-उत्बी-की तारीख-ई-यामिनी, एलियट और
डाउसन खण्ड पृष्ठ २७)
नन्दना की लूट
अल-उत्बी ने लिखा- 'जब सुल्तान ने हिन्द
को मूर्ति पूजा से मुक्त कर दिया था, और उनके स्थान
पर मस्जिदें खड़ी कर दी थीं, उसके बाद उसने उन
लोगों को, जिनके पास मूर्तियाँ थीं, दण्ड देने
का निश्चय किया। असंखय, असीमित व अतुल लूट के
माल और दासों के साथ सुल्तान लौटा। ये सब इतने
अधिक थे कि इनका मूल्य बहुत घट गया और वे बहुत
सस्ते हो गये; और अपने मूल निवास स्थान में इन
अति सम्माननीय व्यक्तियों को, अपमानित
किया गया कि वे मामूली दूकानदारों के दास बना दिये
गये। किन्तु यह अल्लाह की कृपा ही है उसका उपकार
ही है कि वह अपने पन्थ को सम्मान देता है और गैर-
मुसलमानों को अपमान देता है।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ३९)
थानेश्वर में (कत्लेआम) नरसंहार
अल-उत्बी लिपि बद्ध करता है- 'इस कारण से
थानेश्वर का सरदार अपने अविश्वास में-अल्लाह
की अस्वीकृति में-उद्धत था। अतः सुल्तान उसके
विरुद्ध अग्रसर हुआ ताकि वह इस्लाम
की वास्तविकता का माप दण्ड स्थापित कर सके और
मूर्ति पूजा का मूलोच्छेदन कर सके। गैर-
मुसलमानों (हिन्दु बौद्ध आदि) का रक्त इस प्रचुरता,अधिकता व बहुलता से बहा कि नदी के पानी का रंग
परिवर्तित हो गया कि और लोग उसे पी न सके।
यदि रात्रि न हुई होती और प्राण बचाकर भागने वाले
हिन्दुओं के भागने के चिह्न भी गायब न हो गये होते
तो न जाने कितने और शत्रुओं का वध हो गया होता। जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया केवल वही जीवित रह पाये।
अल्लाह की कृपा से विजय प्राप्त हुई जिसने
सर्वश्रेष्ठ पन्थ, इस्लाम, की सदैव के लिए
स्थापना की
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ४०-४१)
फरिश्ता के मतानुसार, 'मुहम्मद की सेना, गजनी में,
दो लाख बन्दी लाई थी जिसके कारण गजनी एक
भारतीय शहर की भाँति लगता था क्योंकि हर एक
सैनिक अपने साथ अनेकों हिन्दू दास व दासियाँ लाया था।
(फरिश्ता : एलियट और डाउसन - खण्ड I पृष्ठ २८)
सिरासवा में नर संहार
अल-उत्बी आगे लिखता है- 'सुल्तान ने अपने
सैनिकों को तुरन्त आक्रमण करने का आदेश दिया।
परिणामस्वरूप अनेकों गैर-मुसलमान बन्दी बना लिये
गये और मुसलमानों ने लूट के माल की तब तक कोई
चिन्ता नहीं की जब तक उन्होंने अविश्वासियों,
(हिन्दुओं) सूर्य व अग्नि के उपासकों का अनन्त वध
करके अपनी भूख पूरी तरह न बुझा ली। लूट का माल
खोजने के लिए अल्लाह के मित्रों ने पूरे तीन दिनों तक
वध किये हुए अविश्वासियों (हिन्दुओं) के
शवों की तलाशी ली...
बन्दी बनाये गये व्यक्तियों की संख्या का अनुमान इसी तथ्य से
लगाया जा सकता है कि प्रत्येक दास दो से लेकर दस
दिरहम तक में बिका था। बाद में इन्हें गजनी ले
जाया गया और बड़ी दूर-दूर के शहरों से व्यापारी इन्हें
खरीदने आये थे।...गोरे और काले, धनी और निर्धन,
दासता के एक समान बन्धन में, सभी को मिश्रित कर
दिया गया।' हिन्दू औरतों के विक्रय के लिए अलग से बाजार लगाये गये। सुन्दर औरतें अच्छे मूल्य में बिकीं।शेष का वध कर दिया गया।
(अल-उत्बी : एलियट और डाउसन - खण्ड ii पृष्ठ
४९-५०)
अल-बरूनी ने लिखा था- ' महमूद ने
भारती की सम्पन्नता को पूरी तरह विध्वंस कर दिया।
इतना आश्चर्यजनक शोषण व विध्वंस
किया था कि हिन्दू धूल के कणों की भाँति चारों ओर
बिखर गये थे। हिन्दुओं के शव और के कटे हुए अंग-प्रत्यंग नगरों के हर भाग में बिखर जाते थे।'
(अलबरूनी-तारीख-ई-हिन्द अनु. अल्बरुनीज़ इण्डिया,
बाई ऐडवर्ड सचाउ, लन्दन, १९१०)
सोमनाथ की लूट
'सुल्तान ने मन्दिर में विजयपूर्वक प्रवेश किया,
शिवलिंग को टुकड़े-टुकड़े कर तोड़ दिया, जितना हो सका उतनी सम्पत्ति को आधिपत्य में कर
लिया। वह सम्पत्ति अनुमानतः दो करोड़ दिरहम थी।
बाद में मन्दिर का पूर्ण विध्वंस कर, चूरा कर, भूमि में
मिला दिया, शिवलिंग के टुकड़ों को गजनी ले गया,
जिन्हें जामी मस्जिद की सीढ़ियों के लिए प्रयोग किया'
(तारीख-ई-जैम-उल-मासीर, दी स्ट्रगिल फौर ऐम्पायर-
भारतीय विद्या भवन पृष्ठ २०-२१)
मुहम्मद गौरी (११७३-१२०६)
हसन निज़ामी ने अपने ऐतिहासिक लेख, 'ताज-उल-
मासीर', में मुहम्मद गौरी के द्वारा भारत के विजय का विस्तृत वर्णन
किया है।
हसन निज़ामी ने लिखा ' कि इस्लाम के दायित्वों के निर्वाह के लिए
जैसा वीर पुरुष चाहिए वह, सुल्तानों के सुल्तान मुहम्मद गौरी के शासन में उपलब्ध हुआ; और उसे
अल्लाह ने उस समय के राजाओं और शहंशाहों में से
छांटा था, 'क्योंकि उसने अपने आपको इस्लाम के शत्रुओं
के सम्पूर्ण विनाश के लिए नियुक्त
किया था। उसने हिन्दुओं के हदयों के रक्त से भारत
भूमि को इतना भर दिया था, कि कयामत के दिन तक
यात्रियों को नाव में बैठकर उस गाढ़े खून की भरपूर
नदी को पार करना पड़ेगा। उसने जिस किले पर
आक्रमण किया उसे जीत लिया, मिट्टी में
मिला दिया और उस (किले) की नींव व
खम्मों को हाथियों के पैरों के नीचे रोंद कर भस्मसात
कर दिया; और मूर्ति पूजकों के सारे विश्व
को अपनी अच्छी धार वाली तलवार से काट कर नर्क
की अग्नि में झोंक दिया; मन्दिरों, मूर्तियों व
आकृतियों के स्थान पर मस्जिदें बना दी।'
(ताज-उल-मासीर : हसन निजामी, अनु. एलियट और
डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २०९)
अजमेर पर इस्लाम की बलात् स्थापना
हसन निजामी ने लिखा था- 'इस्लाम
की सेना पूरी तरह विजयी हुई और एक लाख हिन्दू
तेजी के साथ नरक की अग्नि में चले गये...इस विजय
के बाद इस्लाम की सेना आगे अजमेर की ओर चल
दी जहाँ हमें लूट में इतना माल व सम्पत्ति मिले
कि समुद्र के रहस्यमयी कोषागार और पहाड़ एकाकार
हो गये।
'जब तक सुल्तान अजमेर में रहा उसने
मन्दिरों का विध्वंस किया और उनके स्थानों पर
मस्जिदें बनवाईं।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ २१५)
देहली में मन्दिरों का ध्वंस
हसन निजामी ने आगे लिखा-' विजेता ने दिल्ली में
प्रवेश किया जो धन सम्पत्ति का केन्द्र है और
आशीर्वादों की नींव है। शहर और उसके आसपास के
क्षेत्रों को मन्दिरों और मूर्तियों से
तथा मूर्ति पूजकों से मुक्त
बना दिया यानि कि सभी का पूर्ण विध्वंस कर दिया।
एक अल्लाह के पूजकों (मुसलमानों) ने मन्दिरों के
स्थानों पर मस्जिदें खड़ी करवा दीं।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२२)
वाराणसी का विध्वंस
'उस स्थान से आगे शाही सेना बनारस की ओर
चली जो भारत की आत्मा है और यहाँ उन्होंने एक
हजार मन्दिरों का ध्वंस किया तथा उनकी नीवों के
स्थानों पर मस्जिदें बनवा दीं; इस्लामी पंथ के केन्द्र
की नींव रखी।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२३)
हिन्दुओं के सामूहिक वध के विषय में हसन
निजामी आगे लिखता है, ' तलवार की धार से हिन्दुओं
को नर्क की आग में झोंक दिया गया। उनके सिरों से
आसमान तक ऊंचे तीन बुर्ज बनाये गये, और उनके
शवों को जंगली पशुओं और पक्षियों के भोजन के लिए
छोड़ दिया गया।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २९८)
इस सम्बन्ध में मिन्हाज़-उज़-सिराज़ ने
लिखा था- 'दुर्गरक्षकों में से जो बुद्धिमान एवं कुशाग्र
बुद्धि के थे, उन्हें धर्मान्तरण कर मुसलमान
बना लिया किन्तु जो अपने पूर्व धर्म पर आरूढ़ रहे,
उन्हें वध कर दिया गया। '
(तबाकत-ई-नसीरी-मिन्हाज़, अनु. एलियट और
डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २२८)
गुजरात में गाज़ी लोग (११९७)
गुज़रात की विजय के विषय में हसन निजामी ने लिखा-
' अधिकांश हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया और
लगभग पचास हजार को तलवार द्वारा वध कर नर्क
भेज दिया गया, और कटे हुए शव इतने थे कि मैदान
और पहाड़ियाँ एकाकार हो गईं। बीस हजार से अधिक
हिन्दू, जिनमें अधिकांश महिलायें ही थीं, विजेताओं के
हाथ दास बन गये।
(वही पुस्तक पृष्ठ २३०)
देहली का पवित्रीकरण व इस्लामीकरण
'तब सुल्तान देहली वापिस लौटा उसे हिन्दुओं ने
अपनी हार के बाद पुनः जीत लिया था। उसके आगमन
के बाद मूर्ति युक्त मन्दिर का कोई अवशेष व नाम न
बचा। अविश्वास के अन्धकार के स्थान पर पंथ
(इस्लाम) का प्रकाश जगमगाने लगा।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २३८-३९)
इस्लामी शैतानों की सूची बहुत लम्बी होने के कारण प्रथम भाग में केवल इतना ही। अत्याचार एवं धर्मान्तरण की कथा को इससे अधिक संक्षिप्त नहीं किया जा सका।
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