Wednesday, December 31, 2014

क्या सच मे 2015 आ गया ??

मित्रो सभी लोग देखा-देखी 2015 new year की बधाइयाँ दे रहे है !
अर्थात 2014 साल बीत गए 2015 शुरू हो गया ?
लेकिन 2014 साल किसके बीत गए ?
2014 साल पहले क्या था ? क्या इस धरती को बने सिर्फ 2014 साल बीते हैं ?
दरअसल 2014 साल पहले ईसाई धर्म की शुरुवात हुई थी और क्योंकि अंग्रेज़ो ने भारत को 250 साल गुलाम बनाया था इसीलिए आज ये उनही का कैलंडर हमारे देश चल रहा है !
जबकि हम हिन्दू (सनातनी ) तो जब से से धरती बनी है तब से है !
_______________________________
खैर आप आते है मुख्य बात पर !
क्या सच मे 2015 आ गया ??
2015 तो क्या भी तो 2014 भी नहीं आया !!
मित्रो आपने थोड़ा भी विज्ञान पढ़ा हो तो ये बात झट से आपके समझ मे आ जाएगी !! की 2015 आया ही नहीं बल्कि 2014 भी नहीं आया !!
आइए अब मुख्य बिन्दु पर आते हैं ! पहले ये जानना होगा कि एक वर्ष पूरा कब होता है ??? और क्यों होता है ???
एक वर्ष 365 दिन का क्यों होता है ??
और एक दिन 24 घंटे का ही क्यों होता है ??
तो पहले बात करते हैं 1 दिन 24 घंटे का क्यों होता है ?
तो मित्रो आपने पढ़ा होगा की हमारी जो धरती है ये अन्य ग्रहों की भांति सूर्य के चारों और घूम रही है !! और चारों और घूमते-घूमते अपने आप मे भी घूम रही है ! इस वाक्य को फिर समझे कि एक तो पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ गोल-गोल घूम रही है और चारों तरफ चक्र लगाते-लगाते अपने आप मे भी घूम रही है !! अर्थात आपने -आप मे घूमने के साथ साथ सूर्य के चारों और घूम रही है !
पृथ्वी अपने अक्ष(अपने आप ) मे घूमने में 24 घंटे का समय लेती है,ध्यान से समझे अपने आप मे घूमते हुये पृथ्वी का जो हिस्सा सूर्य की तरफ होता है वहाँ दिन होता है और दूसरी तरफ रात !!
जिसे हम एक दिनांक(एक दिन ) मान लेते हैं। तो इस तरह पृथ्वी के अपने आप मे एक चक्र पूरा होने पर एक दिन पूरा हो जाता है जो की 24 घंटे का होता है !!
अब बात करते एक साल 365 दिन का कैसे होता है ??
तो जैसा की हमने ऊपर बताया की अपने अक्ष पर घूमने के साथ-साथ पृथ्वी सूर्य के चारों और भी घूम रही है ! सूर्य के चारों ओर पूरा एक चक्कर लगाने में पृथ्वी 365 दिन 6 घंटे का समय लेती है।
अब 365 तो समझ आता है लेकिन अब जो 6 घंटे है इसका कुछ adjust करने का हिसाब किताब बनता नहीं तो इन एक साल को 365 दिन का ही मान लिया ! तब ये फैसला अब जो हर साल 6 घंटे बच जाते है तो चार साल बाद इन 6+6+6+6 =24 घंटे 24 घंटों का पूरा एक दिन बन जाता है, !
इसलिए हर चार साल बाद leap year आता है जब फरवरी महीने मे एक दिन बढ़ा कर जोड़ देते हैं ओर हर चार वर्ष बाद 29 फरवरी नामक दिनांक के दर्शन करते हैं।बस सभी समस्याओं की जड़ यह 29 फरवरी ही है। इसके कारण प्रत्येक चौथा वर्ष 366 दिन का हो जाता है।
यह कैसे संभव है? सोलर कलेंडर के हिसाब से तो एक वर्ष वह समय है, जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपना एक चक्कर पूरा करती है। चक्कर पूरा करने में 366 दिन नहीं अपितु 365 दिन 6 घंटे का समय लगता है। इस लिहाज से तो एक साल जिसे हम 365 दिन का मानते आये हैं, वह भी गलत है। परन्तु फिर भी, क्योंकि इन अतिरिक्त 6 घंटों को चार साल बाद एक दिनांक (दिन )के रूप में किसी वर्ष में शमिल नहीं किया जा सकता इसलिए प्रत्येक चौथे वर्ष ही इनके अस्तित्व को स्वीकारना पड़ता है।
फिर भी किसी प्रकार इन 6 घंटों को एडजस्ट करने के लिए प्रत्येक चार वर्ष बाद 29 फरवरी का जन्म होता है। अब यहाँ आप देखिये की हर साल हामारे पास 6 घंटे फालतू बच रहे थे !
तो 4 साल बाद 6+6+6+6 घंटे जोड़ 24 घंटे का एक दिन बनाकर leap year बना दिया ! साल का एक दिन बढ़ा दिया !
अब हर साल जो 6 घंटे बच रहे थे वो तो 4 साल बाद adjust कर दिये ! लेकिन हर चार साल बाद 1 पूरा दिन जो फालतू बन रहा है उसे कहाँ adjust करेंगे ??
अब अगर 4 साल बाद हमारे पास एक दिन फालतू बच रहा है
इसी प्रकार 100 साल बाद 25 दिन ज्यादा बच गए !
और इसी प्रकार 200 साल बाद 50 दिन ज्यादा बच !
400 साल बाद 100 दिन फालतू बच गए !
800 साल बाद 200 दिन फालतू !
1200 साल बाद 300 दिन फालतू
और 365 x 4 = 1460 वर्षों के बाद ( 365 दिन ) एक पूरा वर्ष भी तो बना देता है।
अब हर साल 6 घंटे जो फालतू बच जाते थे उसे हम हम प्रत्येक चार साल बाद 29 फरवरी के रूप में एक दिन बढ़ा कर एडजस्ट कर रहे थे। इस हिसाब से तो प्रत्येक 1460 वर्षों के बाद पूरा एक बर्ष फालतू बन जाता है l leap year मे एक दिन बढ़ाने की तरह 1460 साल बाद पूरा एक वर्ष बढ़ना चाहिए (adjust होना चाहिए ! अत: अभी 2015 नहीं, 2014 ही होना चाहिए।
क्योंकि ईस्वी संवत(ईसाइयो का जन्म ) मात्र 2015 वर्ष पुराना है, अत: अभी 2013 की सम्भावना नहीं है। क्योंकि इसके लिए 2920 वर्ष का समय लगेगा।
क्या झोलझाल है यह सब?
दरअसल सोलर कलेंडर के अनुसार दिनांक, माह व वर्ष केवल पृथ्वी व सूर्य की स्थिति पर निर्भर करते हैं। जबकि इस पूरे ब्रह्माण्ड में अन्य आकाशीय पिंडों को नाकारा नहीं जा सकता। इनका भी तो कोई रोल होना ही चाहिए हमारे कलेंडर में। इसीलिए विक्रम संवत में हमारे हिंदी माह पृथ्वी व सूर्य के साथ-साथ राहु, केतु, शनि, शुक्र, मंगल, बुध, ब्रहस्पति, चंद्रमा आदि के अस्तित्व को स्वीकार कर दिनांक निर्धारित करते हैं।पृथ्वी पर होने वाली भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार ही महीनों को निर्धारित किया जाता है न कि लकीर के फ़कीर की तरह जनवरी-फरवरी में फंसा जाता है।
आप अँग्रेजी की कोई भी डिक्शनरी उठाईए !!
Sept का अर्थ- सात
Oct, का अर्थ -आठ
Nov, का अर्थ -नौ
Dec का अर्थ - दस
होता है
किन्तु जब महीनो की बात आती है तो
Sept, को नौवाँ,
Oct, को दसवां
Nov को ग्यारहवा ,
Dec को बारवहाँ महीना माना जाता है !!
जबकि इन्हें क्रमश: सातवाँ, आठवा, नवां व दसवां महिना होना चाहिए था।
दरअसल ईस्वी संवत(ईसाईयों के जन्म ) के प्रारंभ में एक वर्ष में दस ही महीने हुआ करते थे। अत: September, Octuber, November व December क्रमश: सातवें, आठवे, नवें व दसवें महीने हुआ करते थे।
किन्तु अधूरे ज्ञान के आधार पर बना ईस्वीं संवत(ईसाई लोग ) जब इन दस महीनों से एक वर्ष पूरा न कर पाया तो आनन-फानन (जल्दी जल्दी में ) 31 दिन के जनवरी व 28 दिन के फरवरी का निर्माण किया गया व इन्हें वर्ष के प्रारम्भ में जोड़ दिया गया।
फिर वही अतिरिक्त 6 घंटों को 29 फ़रवरी के रूप में इस कैलंडर में शामिल किया गया। ओर फिर वही झोलझाल शुरू।
इसीलिए पिछले वर्ष भी मैंने लोगों से यही अनुरोध किया था कि 1 जनवरी को कम से कम मुझे तो न्यू ईयर विश न करें। तुम्हे अज्ञानी बन पश्चिम का अन्धानुकरण करना है तो करते रहो 31 दिसंबर की रात दारू, डिस्को व बाइक पार्टी। और क्या आपने कभी अपने पड़ोसी के बच्चे का जन्मदिन मनाया है ??? तो फिर ये ईसाई अँग्रेजी नव वर्ष क्यों ???
क्या इस दुनिया को बने हुए सिर्फ 2014 वर्ष हुए है ???
नहीं !ईसाई धर्म की शुरुवात 2014 वर्ष पहले हुई है !! जब हम हिन्दू ,भारतीय और हमारी संस्कृति उतनी ही पुरानी है जितनी ये धरती !!तो खैर !ईसाई धर्म की शुरुवात 2014 वर्ष पहले हुई है !!तब यह झमेला कैलंडर शुरू हुआ है !! और क्यों अंग्रेजों ने भारत पर 250 साल राज किया था और क्योंकि अंग्रेज़ो के जाने के बाद आजतक भारत मे सभी अँग्रेजी कानून वैसे के वैसे ही चल रहे है !! तो ये अँग्रेजी कैलंडर भी चल रहा है !! ये एक गुलामी का प्रतीक है इस देश मे !!
हम अपने सभी धार्मिक पवित्र कार्य विवाह की तारीक निकलवाना ,बच्चे का चोला , और यहाँ तक हमारे सारे त्योहार भारतीय हिन्दू कैलंडर के अनुसार मानाते है ! तभी तो ये त्योहार हर साल अँग्रेजी कैलंडर के अनुसार अलग अलग तारीक को आते है !! जब भारतीय कैलंडर के अनुसार उसी तारीक वही होती है वो बात अलग है ज़्यादातर लोगो को भारतीय कैलंडर देखना नहीं आता क्यों कि उनको पढ़ाया नहीं गया तो उनको समझ नहीं आता जबकि हमारा भारतीय ,हिन्दू कैलंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक scientific है !! फिर भी हम मानसिक रूप से अंग्रेज़ियत के गुलाम है ! और उनके पहरावे उनके त्योहार, हर चीज उनकी नकल करते हैं !!
हम उन लोगो की मजबूरी को फैशन और आधुनिकता समझ रहे है !! इस एक वाक्य को अगर
आपने पूर्ण रूप से समझना है कि कैसे हम उनकी मजबूरीयों को फैशन समझते है !!
उसके लिए यहाँ click करे और राजीव भाई का ये व्याख्यान जरूर जरूर सुने !!
नोट : गृहों की स्थिति के आधार पर हिंदी मास बने हैं, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि ज्योतिष विद्या को सर्वश्र मान ठाले बैठ जाएं। हमारी संस्कृति कर्म प्रधान है। सदी के सबसे बड़े हस्तरेखा शास्त्री पंडित भोमराज द्विवेदी ने भी कहा है कि कर्मों से हस्त रेखाएं तक बदल जाती हैं।

No comments:

Post a Comment