Friday, January 6, 2023

3 जनवरी 1705 सनातनी वीर मोतीराम मेहरा का बलिदान.

बाबा मोतीराम मेहरा जिनका वर्णन खालसा पंथ के ग्रंथों में है 
। इन्हें औरंगजेब की आज्ञा से सरहिन्द के किलेदार वजीर खान ने नृशंस तरीके से परिवार सहित जीवित कोल्हू में पीस दिया था। इनकी वीरता और बलिदान का उल्लेख संत लक्ष्मणदास बंदा बैरागी ने किया था। और इनकी स्मृति में एक गुरुद्वारा फतेहगढ़ में बना है। 

बाबा मोतीराम मेहरा के चाचा हिम्मत राय एक धर्मनिष्ठ सनातनी थे, जिन्होंने गुरु गोविन्द सिंह जी के आह्वान पर धर्मरक्षा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था, और गोविन्द सिंह के पंच प्यारों में से एक बनें। उनके चाचा हिम्मत राय का नाम बदलकर हिम्मत सिंह कर दिया गया। 

बाबा मोतीराम मेहरा के पूर्वज जगन्नाथ पुरी उड़ीसा के रहने वाले थे। समय के साथ पंजाब आये और सरहिन्द में नौकरी कर ली। बाबा मोतीराम जी के पिता हरिराम मुहम्मदियों के कारावास की रसोई घर के इंचार्ज थे। 

दिसम्बर 1704 के अंतिम सप्ताह गुरु गोविन्द सिंह के चारों पुत्र बलिदान हुये थे। वह 27 दिसंबर 1704 की तिथि थी जब यातनाएं देकर गोविन्द सिंह जी के छोटे दो पुत्रों को जीवित दीवार में चुनवाया गया था। और माता गूजरी को अमानवीय यातनायें दी गयी। वे भी बलिदान हुईं। 

बाबा मोतीराम का अपराध यह था कि दिसम्बर की बेहद कपकपा देने वाली रात पर जब दो दिन के भूखे बच्चों को दीवार पर पटका गया था, तब बाबा मोतीराम मेहरा जी ने गुरुपुत्रों और दादी को पीने के लिए दूध किसी तरह से पहुँचा दिया था। 

गुरुपुत्रों और माता गूजरी के बलिदान के दो दिन बाद सरहिन्द के किलेदार वजीर खान को यह पता चला कि सनातनी वीर मोतीराम ने रात में गोविन्द सिंह के पुत्रों को दूध पहुँचाया था। किलेदार के आदेश से इस्लामिक फौज पूरे परिवार को उठा लाई। माता, पत्नी, छह वर्ष की बेटी और मोतीराम को। जबकि पिता और दर्जनों लोगों को वहीं मार डाला गया। 

वजीर खान ने पूछा तो बाबा मोतीराम ने अपना अपराध न केवल स्वीकार किया अपितु गर्व भी व्यक्त किया। इससे क्षुब्ध होकर वजीर खान ने इस पूरे परिवार को जीवित कोल्हू में पीसने का आदेश दे दिया। वह तीन जनवरी 1705 की तिथि थी, जब इस परिवार को जीवित कोल्हू में पीसा गया था। 

हालांकि इस घटना की तिथियों को लेकर अलग-अलग विद्वानों की राय में मामूली अंतर आता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि बाबा मोतीराम मेहरा और उनके परिवार को 30 दिसम्बर 1704 को पकड़ा गया और एक जनवरी 1705 को कोल्हू में पीसा गया। जबकि कुछ का मानना है कि 30 दिसंबर को मुहम्मदी पिशाच वजीर खान को जानकारी मिली, 31 दिसम्बर को परिवार सहित पकड़ कर लाया गया। 1 जनवरी को पेशी हुई और तीन जनवरी 1705 को कोल्हू में परिवार सहित पीस दिया गया।

सनातन धर्म संस्कृति की मर्यादा व खालसा पंथ के बच्चों की रक्षा के लिए परिवार सहित स्वयं को बलिदान कर देने वाले बाबा मोतीराम मेहरा जी को राष्ट्रीय सनातन पार्टी कोटि-कोटि नमन करती हैं।

जो बोले सो अभय, सनातन धर्म की जय।

जय सनातन, जय भारत।

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