”मृत्यु-व्याधि-जरानाशी पीयूषं परमौषधम्।
ब्रह्मछर्यं महद्यत्नं सत्यमेब बदाम्यहम्।।
अर्थात: ये शोल्क् दिन के उजाले के जैसे सरल है फिरभी आप सभी के बोध्गम्य हेतु सरल हिंदी मे अनुबाद कर रहे है.... ये श्लोक विष्णु स्वरुप् श्री श्री श्री गुरु धन्वन्तरि ने अपने शिष्यो से कहे....
''जो ब्यक्ति आजन्म मृत्यु अबधि तक परम निष्ठा के सहित ब्रह्मअस्तित्व स्वरुप् ब्रह्मचर्य के पालन करते है उसे नहीं कोई -अकाल मृत्यु, व्याधि (रोग), ज़रा (अक्षमता) नहीं होता। उसके शरीर मैं ये ब्रह्मछर्य
पीयूष (अमृत) के तरह परम ओशद् के जैसा काम करता है, ये सत्य है ,मैं धन्वन्तरि यही दवा करता हूँ ।
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