ब्रिटेन के बर्मिंघम विश्वविद्यालय में कुरान की शायद सबसे पुरानी पांडुलिपि के अंश मिले हैं.यह पांडुलिपि 'हिजाज़ी लिपि' में लिखी गई है जो अरबी का एक पुराना रूप है.
पन्नों की रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक से जांच से पता चला कि कुरान के ये पन्ने कम से कम 1375 साल पुराने हैं.
शोधकर्ताओं ने साथ ही इस बात की संभावना जताई है कि जिस शख्स ने कुरान की ये पांडुलिपि लिखी होगी वह पैगंबर मोहम्मद से मिला हो. हाँ तो साथियो इन पन्नों में जो लिखा है जो इतने साल पुराने हैं इनको पढ़ने के बाद व बाकी विश्व इतिहास को देखते हुए मेरे ख्याल से
आदिकाल से मानव के मन मेँ जड़ और चेतन सभी पर शासन करने की इच्छा रही है। इस शासन करने की मानसिकता ने ही संसार मेँ विभिन्न प्रकार की विचारधाराओँ को जन्म दिया। विजेता को संसार की समस्त संस्कृतियोँ ने पूजा, सराहा और सिर माथे बिठाया।पराजितोँ की सर्वत्र निँदा की गई, किँतु भारतीय संस्कृति मेँ दूसरोँ के जय की अपेक्षा स्वयं के जय को अधिक महत्व दिया गया। संसार की एकमात्र यही संस्कृति जितेन्द्रिय होने को ही सबसे बड़ा आदर्श मानती है। इसके विपरीत इस्लाम जिसको हम अमन, मोहब्बत और भाईचारे का धर्म मानते है, खुल्लमखुल्ला रक्तपात, हिँसा और व्यभिचार की ही शिक्षा देता है। इसमेँ कोई दो राय नहीँ।
मैँ अपनी इस पोस्ट के माध्यम से देश के समस्त मुस्लिम बुद्धिजीवियोँ, मानवाधिकारवादियोँ और छद्म सेकुलर राजनेताओँ को ताल ठोँककर रमजान के इस तथाकथित मुकद्दस महीने मेँ दावती जेहाद का आमंत्रण देता हूँ कि वे इस मंच पर आयेँ और सिद्ध करेँ कि इस्लाम का भातृत्व सार्वभौम भातृत्व है, वह शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व मेँ आस्था रखता है और उसका अन्य धर्मोँ के अनुयायियोँ से कोई द्वेष नहीँ है. आतंकवाद और इस्लाम दो अलग अलग चीजे हैँ।मैँ विश्वास दिलाता हूँ कि जिस दिन भी यह सिद्ध हो गया मैँ फिर कभी कोई पोस्ट नहीँ लिखूँगा इस्लाम के खिलाफ । लेकिन मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि ऐसा कभी हो ही नही सकता, और हाँ, यही मेरे अंतरात्मा की आवाज है।
जो लोग कहते हैँ कि हिन्दु, मुस्लिम और ईसाई मेँ कोई अन्तर नहीँ उनके लिये अल्लाह का स्पष्ट आदेश है - और यहूद कहते हैँ उजैर अल्लाह के बेटे हैँ और ईसाई कहते हैँ कि मसीह अल्लाह के बेटे हैँ। यह उनके मुँह की बाते हैँ। उन्हीँ काफिरोँ जैसी बातेँ बनाने लगे, जो इनसे पहले के हैँ (हिन्दु, बौद्ध, जैन)। अल्लाह इनको गारत करे, किधर को भटके चले जा रहे हैँ? (सूरा तौबा 9, पारा 10, आयत 30 ) हुआ न स्पष्ट अंतर। इसके विपरीत हिन्दु कहता है ‘सर्वदेव नमस्कारं केशवं प्रति गच्छति’ अर्थात किसी भी देवता (अल्लाह, ईसा, मूसा, मार्क्स) को प्रणाम किया जाय, तो वह केवल केशव (विष्णु) को ही प्राप्त होगा, इनमेँ कोई अन्तर नहीँ। अब इन Non believers अर्थात इस्लाम को न मानने वाले काफिरोँ के साथ कैसा सलूक किया जाये इस बारे मेँ कुरआन का कहना है - जिन मुशरिक़ोँ के साथ तुम (मुसलमानोँ) ने अहद (सुलह) कर रखा था, अल्लाह और उसके पैगम्बर की तरफ से उनको जबाव है -
(सूरा तौबा 9, पारा 10, आयत 1 ) तो चार महीने (जिकाद, जिलहिज्ज, मुहर्रम और रज्जब) मुल्क मेँ चल फिर लो, और जाने रहो कि तुम अल्लाह को हरा नहीँ सकोगे और अल्लाह काफिरोँ को जिल्लत देता है। (2)और हज्जे अकबर (बड़े हज) के दिन अल्लाह और उसके पैगम्बर की तरफ से लोगो को मुनादी की जाती है कि अल्लाह और उसका पैगम्बर मुशरिकोँ (हिन्दु, सिक्ख, यहूदी, ईसाई, बौद्ध, जैन, कम्यूनिष्ट) से अलग है। ( 2) अर्थात अल्लाह और उसका पैगम्बर सिर्फ और सिर्फ मुसलमान है। हुआ न स्पष्ट अंतर - पर अगर तुम तौबा करो (अर्थात मुसलमान हो जाओ) तो यह तुम्हारे लिये भला है, और अगर मुख मोड़ो (दीन इस्लाम से) तो जान रखो कि तुम अल्लाह को हरा नहीँ सकोगे, और काफिरोँ को दुखदाई सजा (वर्ल्ड ट्रेड सेँटर, मुम्बई, बामियान आदि) की खुशखबरी सुना दो। (3) फिर जब अदब के महीने (जिकाद, जिलहिज्ज, मुहर्रम और रज्जब) बीत जायेँ तो उन मुशरिकोँ को जहाँ पाओ कत्ल करो, और उनको गिरफ्तार करो, उनको घेर लो, और हर घात की जगह उनकी ताक मे बैठो। फिर अगर वह लोग तौबा कर लेँ और नमाज कायम करेँ, और जकात दे तो उनका रास्ता छोड़ दो (क्योँकि तब वे मुसलमान हो जायेगेँ) बेशक अल्लाह माफ करने वाला बेहद मेहरबान है।स्पष्ट है कि अल्लाह किसी देश की सेना का मुखिया है, जो अपने सैनिकोँ (मुसलमानोँ) को अपने शत्रुओँ के विरुद्ध मार काट की शिक्षा देता है और तभी छोड़ता है, जब वे सेनापति के गुलाम बन जाते हैँ।
क्योँ गाँधी ने कुरआन नहीँ पढ़ी क्या? और इकबाल का क्या यही है, मजहब नहीँ सिखाता आपस मेँ बैर रखना। क्रमशः
मैं चाहता हूँ की इस पर एक स्वस्थ बहस की परम्परा प्रारम्भ हो और सत्य को सार्थक रूप से स्वीकार करने हेतु पत्रकारिता सन्नद्ध रहे| केवल सामाजिक सद्भाव बना रहे इस निमित्त मैंने पूर्व में लिखे गए सारे पोस्ट को डिलीट कर दिया था वजह हमारे अपने लोग जो स्वयं न कभी अपनी किताबें खोल कर देखी तो इन जेहादियों की कहाँ देखेंगे मैं इस्लाम के इस गैरजिम्मेदाराना सदृश्यता को सेकेंडो में ही धुल बना कर उडा दूंगा... इसमें कोई संशय नहीं हाँ, धैर्य बनाये रखे इस्लाम के दार्शनिक आधारों का भी चर्चा किया जायेगा|
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