Tuesday, May 18, 2021

रमजान का इस्लाम से क्या लेना देना?

वैसे रमज़ान का असली नाम रामदान ( ﺭﻣﻀﺎﻥ)है । यह अरबी शब्द रमीदा से बना है , जिसका अर्थ होता है , चिलचिलाती गर्मी या सूखापन ।

रामदान इस्लामिक कलेंडर का 9 वा महीना है । इस्लामिक विश्वास के अनुसार इस दिन क़ुरआन की पहली सूरह मुहम्मद पर अवतरित हुई ।

लेकिन एक सच यह भी है कि इस्लाम के 99% कर्मकांड यहुदियों , ईसाइयो, Sabeanism, Zoroastrianism, और paganism (मूर्तिपूजकों) से आये है ।

रमजान भी अरब के मूर्तिपूजकों का त्योहार था। यह एक सर्वविदित सत्य है कि इस्लाम ने अरब मूर्तिपूजकों से रमजान का कॉन्सेप्ट लिया । 
जैसा कि Sahih Bukhari 5:58:172 अत्यधिक स्पष्ट प्रमाण है ,

" हजरत आयशा फरमाती है कि अरब में अज्ञानता की अवधि में आशुरा का दिन था जिस दिन कुरैश के जनजाति उपवास करते थे । पैगंबर ने भी इस दिन उपवास रखा था। इस प्रकार जब वह मदीना चले गए, तो उन्होंने उस दिन पर उपवास किया और मुसलमानो को आदेश दिया कि वह (मुस्लिम) इस दिन पर उपवास करें। जब रमजान के उपवास को आज्ञा दी गई थी, तो लोगों के लिए आशुरा के दिन उपवास करना वैकल्पिक हो गया।

आशुरा (मुहर्रम का 10 वां) का उपवास कुरैश मूर्ति पूजको से आया हुआ था । इस्लाम मे रमजान उपवास सबियन परंपरा से भी बहोत बाद में आया था।

जैसा क़ुरआन में भी कई बार सबाइयो को वर्णित किया गया है जैसे [ अल बकरा 2:62], [ अल हज्ज 22:17] , [अल मईदा 5:69] ।

इस बात का प्रमाण खुद क़ुरआन ही है ,

क़ुरआन अल-बक़रा (Al-Baqarah):183 - ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ ।

उदाहरण स्वरूप यहुदियों से इस्लाम में गए कर्मकांड और प्रथाएं ________________________________

खतना (यहुदियों में बच्चे के पैदा होने के 8 दिन बाद इज़लाम में 7 दिन बाद) , दाढ़ी के बाल रखना , सुअर और कुत्तों से नफरत करना , विश्राम के दिन का concept , नमाज , रोजा , हज , किबले कि ओर झुकना , पूजा स्थल , एकेश्वरवाद , नबीवाद और पैग़म्बरवाद , एडम से अब्राहम तक पैगम्बर मानना , समूह में नमाज पढ़ना , पशु को हलाल करना (बलि प्रथा) , जकात देना , महिलाओं द्वारा सिर को ढकना , कपड़ो से मजहब का symbolize करना , अविवाहित स्त्रियों का अकेले न रहना , महिलाओं के गीत गाने पर प्रतिबंध , वुजू का concept , नीदा (बच्चे पैदा करने के बाद पति से अलग होने के दिनों की संख्या ), बच्चे के नामकरण के दिन , विवाह के समय मेहर की प्रथा , विवाह के होने की गवाही की प्रथा , गैर मजहब में विवाह की अनुमति की सख्त मनाही , दफन करते समय की नमाज , और कब्र की दिशा ।

मूर्तिपूजकों से इस्लाम गए कर्मकांड और प्रथाएं - 
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हज्जे अस्वद या संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला)
(काला जन्नती पत्थर शिवलिंग मक्केश्वर महादेव) चूमना , मजारों पर मत्थे पटकना , अल्लाह , मुहम्मद के नाम का लॉकेट पहनना , मजहब को numerology से जोड़कर 786 को लकी नम्बर मानना जैसे पौराणिक हिन्दू 108 आदि संख्याओं को लकी मानते है । हिंदू पूजा के दौरान बिना सिला हुआ वस्त्र या धोती पहनते हैं, उसी तरह हज के दौरान भी बिना सिला हुआ सफेद सूती कपड़ा ही पहना जाता है। जिस प्रकार हिंदुओं की मान्यता होती है कि गंगा का पानी शुद्ध होता है ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी अबे जम-जम के पानी को पाक मानते हैं। जिस तरह हिंदू गंगा स्नान के बाद इसके पानी को भरकर अपने घर लाते हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी मक्का के अबे जम-जम का पानी भर कर अपने घर ले जाते हैं। ये भी एक समानता है कि गंगा को मुस्लिम भी पाक मानते हैं और इसकी अराधना किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं।

एक प्रसिद्ध पौराणिक मान्यता के अनुसार काबा में “पवित्र गंगा” है। जिसका निर्माण रावण ने किया था, रावण शिव भक्त था वह शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के महात्म को समझता था और यह जानता था कि कि कभी शिव को गंगा से अलग नही किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है।
इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावड़ को एक शिवलिंग प्रदान किया जिसें लंका में स्थापित करने का कहा और बाद जब रावड़ आकाश मार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को शिवलिंग धरती पर रखना पड़ता है। वह दुबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं।

वेंकटेश पण्डित के अनुसर यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है। सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था। जिसका जिक्र श्रीमदभगवत पुराण में भी आता है ।

पहले राजा भोज ने मक्का में जाकर वहां स्थित प्रसिद्ध शिव लिंग मक्केश्वर महादेव का पूजन किया था, इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-

"नृपश्चैवमहादेवं मरुस्थल निवासिनं !
गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्विते :
चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव मनसा हरम !
इतिश्रुत्वा स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय तं!
गन्तव्यम भोज राजेन महाकालेश्वर स्थले !!"

ईसा के लगभग 60 वर्ष पूर्व रोमन इतिहास लेखक Diodorus Siculus लिखता है -
यहाँ इस देश में एक मन्दिर है, जो अरबों का अत्यन्त पूजनीय है।

Abraha 553 ईसा पूर्व अरेबिया के Aksumite राज्य का सैन्य प्रमुख लिखता है कि , अरब में मूर्तिपूजक रहते है ।

Sahih al-Bukhari, Vol 5 / 661 में भी साफ साफ वर्णित है कि इस्लाम से पहले अरब के लोग पत्थर पूजक थे ।

इतिहासकारो के अनुसार , पूरे अरब में 360 मन्दिर थे । (प्रमाण Hadith Bukhari 3:43:658 स्नेप शॉट दे दिया हु । )

इसके अतिरिक्त चंद्रमा देखकर उपवास तोड़ना भी पौराणिक हिन्दूओ की कम्पलीट नकल है । 
हज के दरम्यान सिर मुंडवाना , काबा के 7 anticlockwise चक्कर लगाना भी पैराणिक हिन्दुओ की नकल है ।

क़ुरआन में भी प्रमाण है अरबो के मूर्तिपूजक होने के ,

अन-नज्म (An-Najm):18 - निश्चय ही उसने अपने रब की बड़ी-बड़ी निशानियाँ देखीं

अन-नज्म (An-Najm):19 - तो क्या तुमने लात और उज़्ज़ा

अन-नज्म (An-Najm):20 - और तीसरी एक और (देवी) मनात पर विचार किया?

अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के कावा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है।

इस तरह कई इस्लामिक परम्पराए मूर्तिपूजकों से आई है । इसी तरह 5 बार नमाज पढ़ना इस्लाम में जोरथस्ट्रीयन्स की नकल है ।
साभार भाई श्री Vivek Arya

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