Friday, September 23, 2016

दुनीया में स्त्री और पुर्स के गुप्तांगो की खुल्म खुला पूजा कही नहीं होती लेकिन भारत में होती है ..शिव - लिंग

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने पूरे भारत वर्ष में 12 (द्वादश) शिव ज्योर्तिलिंगो की स्थापना की, जहां पर आदिकाल से शिव जी ने निवास किया या तपस्या की, उन स्थानों को उन्होंने चिन्हित कर विकसित किया था, वह स्थान निम्न हैं

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालमोकांरममलेश्वरम् ।
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारूकावने ।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्रयंम्बकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ।
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति



वेदों में शिव या शंकर के बारे मैं कोई प्रमाण नहीं है केवल रूद्र का वर्णन मिलता है
शिव की जागेश्वर में तपस्या-उद्धरण कुमाऊं का इतिहास-श्री बद्रीद्त्त पाण्डे, पृष्ठ-१६४


पश्चात, दक्ष प्रजापति ने कनखल के समीप यग्य किया। वहां शिव के अतिरिक्त सबको बुलाया, शिव की पत्नी काली बिना बुलाये पिता के यहां गई और वहां अपना और अपने पति का तिरस्कार देखकर रोष से भस्म हो गई। शिव ने कैलाश से यह बात जान दक्ष प्रजापति का यग्य विध्वस कर सबका नाश कर दिया और चिता की भस्म से शरीर को आच्छादित कर झांकर सैम ( जागेश्वर से करीब ५ कि०मी० गरुड़ाबांज नामक स्थान पर) में तपस्या की। झांकर सैम को तब भी देवदार वन से आच्छादित बताया गया है। झांकर सैम जागेश्वर पर्वत में है। कुमाऊं के इस वन में वशिष्ठ मुनि अपनी पत्नियों के साथ रहते थे। एक दिन स्त्रियों ने जंगल में कुशा और समिधा एकत्र करते हुये शिव को राख मले नग्नावस्था में तपस्या करते देखा, गले में सांप की माला थी, आंखें बंद, मौन धारण किये हुये, चित्त उनका काली के शोक से संतप्त था। स्त्रियां उनके सौन्दर्य को देखकर उनके चारों ओर एकत्र हो गईं, सप्तॠषियों की सातों स्त्रियां जब रात में ना लौटी तो वे प्रातःकाल उनको ढुंढने को गये, देखा तो शिव समाधि लिये बैठे है और स्त्रियां उनके चारों ओर बेहोश पड़ी हैं। ॠषियों ने यह विचार कर लिया कि शिव ने उनकी स्त्रियों की बेइज्जती की है और शिव को श्राप दिया कि "जिस इन्द्रिय यानी वस्तु से तुमने यह अनौचित्य किया है वह (लिंग) भूमि में गिर जायेगा" तब शिव ने कहा कि " तुमने मुझे अकारण ही श्राप दिया है, लेकिन तुमने मुझे सशंकित अवस्था में पाया है, इसलिये तुम्हारे श्राप का मैं विरोध नहीं करुंगा, मेरा लिंग पृथ्वी में गिरेगा। तुम सातों सप्तर्षि तारों के रुप में आकाश में चमकोगे।" अतः शिव ने श्राप के अनुसार अपने लिंग को पृथ्वी में गिराया, सारी पृथ्वी लिंग से ढक गई, गंधर्व व देवताओं ने महादेव की तपस्या की और उन्होंने लिंग का नाम यागीश या यागीश्वर कहा और वे ऋषि सप्तर्षि कहलाये।
शिव की जागेश्वर में तपस्या-उद्धरण कुमाऊं का इतिहास-श्री बद्रीद्त्त पाण्डे, पृष्ठ-१६४-१६५


श्राप के कारण शिव का लिंग जमीन पर गिर गया और सारी पृथ्वी लिंग के भार से दबने लगी, तब ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, सूर्य, चंद्र और अन्य देवगण जो जागेश्व्र में शिव की क्तुति कर रहे थे, अपना-अपना अंश और शक्तियां वहां छोड़्कर चले गयेआ तब देवताओं ने लिंग का आदि अन्त जानने का प्रयास किया, ब्रह्मा, विष्णु और कपिल मुनि भी इसका उत्तर न दे सके, विष्णु पाताल तक भी गये लेकिन उसका अंत न पा सके, तब विष्णु शिव के पास गये औए उनसे अनुनय विनय के बाद यह निश्चय हुआ कि विष्णु लिंग को सुदर्शन चक्र से काटें और उसे तमाम खंडों एस बांट दें। अंततः जागेश्वर में लिंग को काटा गया और उसे नौ खंडों में बांटा गया। १-हिमाद्रि खंड


२- मानस खंड
३- केदार खंड
४- पाताल खंड - जहां नाग लोग लिंग की पूजा करते हैं।
५- कैलाश खंड
६- काशी खंड- जहां विश्वनाथ जी हैं, बनारस
७- रेवा खंड- जहां रेवा नदी है. जहां पर नारदेश्वर के रुप में लिंग पूजा होती है, शिवलिंग का नाम रामेश्वरम है।
८- ब्रह्मोत्तर खंड- जहां गोकर्णेश्वर महादेव हैं, कनारा जिला मुंबई।
९- नगर खंड- जिसमें उज्जैन नगरी है।
शिवलिंग और पार्वतीभग की पूजा की उत्पत्ति

1- दारू नाम का एक वन था , वहां के निवासियों की स्त्रियां उस वन में लकड़ी लेने गईं , महादेव शंकर जी नंगे कामियों की भांति वहां उन स्त्रियों के पास पहुंच गये ।यह देखकर कुछ स्त्रियां व्याकुल हो अपने-अपने आश्रमों में वापिस लौट आईं , परन्तु कुछ स्त्रियां उन्हें आलिंगन करने लगीं ।उसी समय वहां ऋषि लोग आ गये , महादेव जी को नंगी स्थिति में देखकर कहने लगे कि -‘‘हे वेद मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस वेद विरूद्ध काम को क्यों करते हो ?‘‘यह सुन शिवजी ने कुछ न कहा ,तब ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि - ‘‘तुम्हारा यह लिंग कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े‘‘उनके ऐसा कहते ही शिवजी का लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़ा और आगे खड़ा हो अग्नि के समान जलने लगा , वह पृथ्वी पर जहां कहीं भी जाता जलता ही जाता था जिसके कारण सम्पूर्ण आकाश , पाताल और स्वर्गलोक में त्राहिमाम् मच गया , यह देख ऋषियों को बहुत दुख हुआ । इस स्थिति से निपटने के लिए ऋषि लोग ब्रह्मा जी के पास गये , उन्हें नमस्ते कर सब वृतान्त कहा , तब - ब्रह्मा जी ने कहा - आप लोग शिव के पास जाइये , शिवजी ने इन ऋषियों को अपनी शरण में आता हुआ देखकर बोले - हे ऋषि लोगों ! आप लोग पार्वती जी की शरण में जाइये । इस ज्योतिर्लिंग को पार्वती के सिवाय अन्य कोई धारण नहीं कर सकता । यह सुनकर ऋषियों ने पार्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया , तब पार्वती ने उन ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण किया । तभी से ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तथा उसी समय से शिवलिंग व पार्वतीभग की प्रतिमा या मूर्ति का प्रचलन इस संसार में पूजा के रूप में प्रचलित हुआ ।
- ठाकुर प्रेस शिव पुराण चतुर्थ कोटि रूद्र संहिता अध्याय 12 पृष्ठ 511 से 513

शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया । 
- साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15


शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया ।
- साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15


3- शिवजी एकदम नंग धड़ंग रूप में ही भिक्षा मांगने के लिए ऋषियों के आश्रम में चले गये , वहां उनके इस देवेश्वर रूप को देखकर ऋषि पत्नियां उन पर मोहित हो गईं और उनकी जंघाओं से लिपट गईं ।यह दृश्य देख ऋषियों ने शिवजी के लिंग पर काष्ठ और पत्थरों से प्रहार किया , लिंग के पतित हो जाने पर शिवजी कैलाश पर्वत पर चले गये ।वामनपुराण खण्ड 1 श्लोक 58,68,70,72,पृष्ठ 412 से 413 तक


4- सूत जी ने बताया कि दारू नाम के वन में मुनि लोग तपस्या कर रहे थे , शिवजी नग्न हो वहां पहुंच गये और कामदेव को पैदा करने वाले मुस्कान-गान कर नारियों में कामवासना वृद्धि कर दी ।यहां तक कि वृद्ध महिलाएं भी भूविलास करने लगीं , अपनी पत्नियों को ऐसा करते देख मुनियों ने शिव को कठोर वचन कहे ।
 
- डायमंड प्रेस , लिंग पुराण पृष्ठ 43


शिवजी की उत्पत्ति
1- शिवजी स्वयं उत्पन्न हुए । - गीता प्रेस शिवपुराण विन्धयेश्वर संहिता पृष्ठ 57
2- शिवजी , विष्णु जी की नासिका के मध्य से उत्पन्न हुए । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण द्वितीय रूद्र संहिता अध्याय 15 पृष्ठ 126

3- शिव का जन्म विष्णु के शिर से माना जाता है । - डायमंड प्रेस ब्रह्म पुराण पृष्ठ 141
4- शिवजी ब्रह्मा के आंसुओं से प्रकट हुए । - डायमंड प्रेस कूर्म पुराण पृष्ठ 26


औघड़ मत का पूजा विधान
औघड़ मत में भैरवी चक्र नाम का एक पर्व होता है ,जिसमें एक पुरूष को नंगा करके उसके लिंग की स्त्रियां पूजा करती हैं और दूसरे स्थान पर एक स्त्री को नंगा खड़ा कर पुरूषों द्वारा उसकी भग अर्थात योनि की पूजा की जाती है । - सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 11 , पृष्ठ 192
- डिमाई साईज़ @ डायमंड प्रेस ,अग्नि पुराण , पृष्ठ 41


शिवजी ओघड़ थे
 1- ब्रह्मा जी शिवजी के पास गये और बोले - ‘‘हे ओघड़‘‘ ।  - साधना प्रेस हरिवंश पुराण पृष्ठ 140
2-सूत जी ने कहा - शंकर जी ‘‘ओघड़‘‘ हैं । - डायमंड प्रेस ब्रह्माण्ड पुराण पृष्ठ 39/साधना प्रेस स्कन्ध पुराण पृष्ठ 19


शिवजी का भेष1- मुण्डों की माला धारण करते हैं । - पद्म पुराण , खण्ड 1 , श्लोक 179 , पृष्ठ 324

शिवजी का निवास
1- शिवजी श्मशान घाट में रहते हैं । - डायमंड प्रेस वाराह पुराण पृष्ठ 160



शिवजी का आहार 
1- शिवजी कहते हैं कि - ‘‘मैं हज़ारों घड़े शराब , सैकड़ों प्रकार के मांस से भी - ‘‘लिंग-भगामृत‘‘ के बिना सन्तुष्ट नहीं होता‘‘ 
 - वेंकेटेश्वर प्रेस कुलार्णव तन्त्र उल्लास पृष्ठ 472-
2- शिव जी अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करते हैं । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण तृतीय पार्वती खण्ड अध्याय 27 पृष्ठ 235


शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध
1- सभी लोग लिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध करते हैं । -गीता प्रेस ,शिव पुराण , पृष्ठ 69, श्लोक 142-
2- शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुएं ग्रहण करना शास्त्र सम्मत नहीं है । -डायमंड प्रेस , ब्रह्माण्ड पुराण , पृष्ठ 22 , श्लोक 110
3- शिव जी को आहुति देने वाले अपवित्र हो जाएंगे । -डायमंड प्रेस , ब्रह्माण्ड पुराण , पृष्ठ 22 , श्लोक 110


शिवजी के सम्बंध में पुराणों की बातें
1- शिव लोक की कल्पना करना अज्ञानी और मूढ़ पुरूषों का काम है । -कला प्रेस , सर्व सिद्धान्त संग्रह, पृष्ठ 132-
2- जो लोग शिव को संसार की रक्षा करने वाला मानते हैं , वे कुछ भी नहीं जानते हैं । -देवी भागवत पुराण, खण्ड 1, श्लोक 6, पृष्ठ 13

3- जैसे कलि युग का प्रचार होगा वैसे ही शिव मत का प्रचार बढ़ेगा । -सूर्य पुराण, श्लोक 54, पृष्ठ 162


शिवजी सन्ध्या करते थे
सूत जी बोले - शिव जी सन्ध्या करते हैं । -पद्म पुराण खण्ड 1, श्लोक 201, पृष्ठ 328
शिवाजी की पत्नी का नाम ‘पार्वती‘ है । -ठाकुर प्रेस,शिव पुराण , तृतीय पार्वती खण्ड , अध्याय 5 , पृष्ठ 275


पार्वती के अनेक नाम
 
काली , कालिका , कामाख्या , भद्रकाली , उमा , भगवती , अम्बा , चण्डिका , चामुण्डा , विजया , मुण्डा , जया , जयन्ती , आदि ‘पार्वती‘ के ही नाम हैं ।
 -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण, द्वितीय, रूद्र संहिता, पृष्ठ 128


काली की उत्पत्ति1- रूद्र की जटा से काली उत्पन्न हो गई । -गीता प्रेस,शिव पुराण,रूद्र संहिता, पृष्ठ 151
2- नारायण की हड्डियों से काली उत्पन्न हो गई । -डायमण्ड प्रेस मार्कण्डेय पुराण पृष्ठ 108


काली का आहार
1- काली सैकडों-लक्ष अर्थात लाखों हाथियों को मुख में रखकर चबाने लगी । -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण पंचम युद्ध खण्ड अध्याय 37 पृष्ठ 371
2- अम्बिका मदिरा अर्थात शराब पीती थी । -संस्कृति संस्थान , वामन पुराण , खण्ड 12 , ‘लोक 37 , पृष्ठ 250
3- काली की जीभ से कन्या पैदा हो गई । -देवी भागवत , खण्ड 2, ‘लोक 36, पृष्ठ 248


शिवलिंग और पार्वतीभगपूजा ?‘ का एक अंश लेखक : सत्यान्वेषी नारायण मुनि , स्थान व पोस्ट - सिकटा जिला - पश्चिमी चम्पारण , बिहार प्रकाशक : अमर स्वामी प्रकाशन विभाग , 1058 विवेकानन्द नगर , गाजियाबाद - 201001 मूल्य : 5 रूपये मात्र


1.यक्ष प्रश्न - आपको केवल ये ज्ञान है कि भोले बाबा का लिंग ऋषियों के श्राप के कारण गिरा था लेकिन सच्चाई ये है कि उसे ऋषियों ने डंडे पत्थर मारकर गिराया था . तभी से वह भारतवासियों से दुखी होकरभोले जी भारत छोड़ कर चीन चले गए थे और मानसरोवर पर रहने लगे थे . हिन्दू ये भी मानते हैं कि भोले भंडारी काबा में रहते हैं . हो सकता है कुछ काल के लिए वहां भी रहे हों ? यहाँ पहले लिंग काटा जाता है , लिंग वाले बाबा जी को कष्ट पहुँचाया जाता है और फिर उसकी पूजा कि जाती है .


2.यक्ष प्रश्न - हमारा भारत महान है क्योंकि यहाँ उस चीज़ की पूजा होती है जिस पर पुरुष की महानता टिकी होती है ?


3.यक्ष प्रश्न - शिवजी ब्रह्मा के आंसुओं से प्रकट हुए । और ब्रह्मा की उत्पत्ति शिव की नाभि से हुई है. कमाल है न ?


4.यक्ष प्रश्न - इतने सारे देवताओं का हौव्वा खड़ा हमने नहीं बल्कि आपने किया है और फिर खुद ही ब्रह्मा जी की पूजा का निषेध भी कर दिया। इन्द्र की पूजा श्री कृष्ण जी ने रूकवाई। जिसके कारण इन्द्र ने उनकी गर्भवती स्त्रियों की हत्या कर दी और उनके अनुयायियों को भी डुबाने की पूरी कोशिश की। क्यों?


5.यक्ष प्रश्न- देवी भागवत में भी देवताओं की पूजा से रोका गया है और उनकी पूजा करने वालों को जो कुछ कहा गया है वह भी आपसे छिपा नहीं है।


6.यक्ष प्रश्न- देवता खुद अपने सिवा दूसरों की पूजा होते देखकर रूष्ट होते माने जाते हैं। क्यों?


7.यक्ष प्रश्न- यदि सभी कुछ ब्रह्म की इच्छा से हो रहा है तो ब्रह्मा का सिर क्यों काटा गया ?


8.यक्ष प्रश्न- ऋषियों ने दारू वन में शाप देकर शिव जी का लिंग क्यों गिरा दिया ?


9.यक्ष प्रश्न- परमेश्वर ने कहीं लिंग पूजा करने का आदेश दिया हो या मात्र अनुमति ही दी हो तो कृपया हमें दिखायें ?


10.यक्ष प्रश्न- गौतम बुद्ध को स्वयं विष्णु जी ने ही पापावतार घोषित कर दिया है। नर्क के ख़ाली रह जाने की शिकायत सुनकर उन्होंने कहा कि मैं लोगों को पापी
बनाकर नर्क में भेजूंगा जबकि अवतार का उद्देश्य तो धर्म की और वह भी वर्णाश्रम धर्म की स्थापना बताया गया है ।
शूद्र को सम्पत्ति संग्रह और ईशवाणी के अध्ययन और उपनयन से रोक देना सदाचार नहीं कदाचार है। 


नारी के लिए विवाह को हिन्दू धर्म में एक संस्कार घोषित किया गया है। नारी के लिए सदाचार यह है कि पति की मृत्यु के बाद वह या तो सती हो जाए या बाल मुंडवाकर ऐसे ही रूखा सूखा खाकर मौत से बदतर जीवन जिए और मर जाए। शूद्र और नारी समाज का अधिकांश भाग हैं। वे सदाचारी बनने के लिए ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं।


यदि मेरी बात ग़लत लगती है तो हिन्दू शास्त्रों के अनुसार हिन्दू समाज को जीने के लिये तैयार करके दिखाइये।


आप सदाचार के लिये किस का अनुसरण करना चाहेंगे ?


अपने आदर्श पुरूष का नाम बताइये ?

 क्या उनके आदर्श पर चलना संभव है ?

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