Thursday, July 28, 2016

नैसर्गिक प्रसव से भारत निर्माण (भाग - 2)

आने वाली पीढियों के हित में अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी
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उदहारण 2
भाई नितेश ओझा,
सांगली, महाराष्ट्र
जिस भारत में माताए अपनी सोच के अनुरूप बच्चे पैदा करती थी आज वही भारत है जहाँ बच्चो को गर्भ में ही Antibiotics देकर उनकी प्रतिरोधक क्षमता को विकसित नहीं होने दिया जाता I प्रसव के बाद भी यही क्रम चलता रहता है I ऐसे में बुद्धिशाली बच्चे देश को कैसे मिलेंगे? ऐसे में गव्यसिद्धो की देखरेख में देश की साहसी बेटियों ने नैसर्गिक (Natural) गर्भधारण से लेकर नैसर्गिक प्रसव और नैसर्गिक बालपालन को प्रमुखता के साथ लिया है
गर्भधारण और प्रसव की क्रिया सृष्टि की नैसर्गिक क्रिया है सभी जीव इन क्रियाओ को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए करते है I यह प्रजनन क्रिया है मनोरंजन की नहीं I इस सृष्टि को मनुष्य को छोड़ कर कोई भी इस प्रजनन क्रिया को मनोरंजन नहीं समझता I
भारत भी ऐसा नहीं था लेकिन जैसे जैसे भारत पर यूरोपीय कुसंस्कृति का प्रभाव पड़ता गया भारत भी इस प्रजनन की नैसर्गिक क्रिया को मनोरंजन मान कर यौन सिद्धांतो को बदल रहा है I जब से इस गति से ऐसा हुआ है भारत में बांझपन बढ़ा है I बच्चे निक्कमे और नालायक पैदा हो रहे है I इससे बच्चो का न केवल चरित्र बिगड़ता है बल्कि शरीर भी बिगड़ रहा है I ऐसे बच्चे बड़े होकर अपनी कमाई अस्पताल में फूंकते है I ऐसे बीमार राष्ट्र समाज और परिवार के लिए बोझ बनकर किसी के लिए कुछ नहीं कर पाते I वो दिन दूर नहीं जब "Sex for Entertainment" भारत को गर्त में डुबो देगा या कहे को डूबना शुरू हो चूका है
इस दर्द ने हमे प्रेरित किया की भारती पुराणों से प्रजनन और गर्भधारण के सूत्रों पर कार्य किया जाये I इसके लिए भारत की उन बेटियों को जगाया और इस कार्य के लिए तैयार किया गया जिस जब वह गर्भधारण करें तो उनके गर्भ से वीर, क्रन्तिकारी और ऋषि तुल्य बालक पैदा हो I यह तभी संभव है जब फिर से यौन क्रिया को मात्र प्रजनन के रूप में देखा जाये और गर्भधारण एक नियोजित योजना के अनुरूप हो, भूल चूक से ठहरा गर्भ न हो I
इन विषयो पर विचार करे हुए अपने गव्यसिद्ध परिवार और उनके संपर्क के पचास से अधिक बहनों ने ऐसा संकल्प लिए और स्वयं को इस कार्य के लिए तैयार कर लिया
१. गर्भधारण कने के लिए अपने शरीर को तैयार किया I
२. योजनागत रूप से गर्भधारण किया I
३. गर्भ में भ्रूण का पोषण गोमाता के गव्यो की सहायता से किया I
४. कभी भी अपने शरीर पर antibiotics का प्रयोग नहीं किया I
५. बताये गए मानदंडो के आधार पर ही गोमाता का दूध, मूत्रं, दही और घृत का उपयोग किया I
६. जब प्रसव पीड़ा आरम्भ हुई तब भी एंटीबायोटिक का सहारा नहीं लिया I गोबर रस की सहायता से नैसर्गिक प्रसव हुए I
७. बच्चो के जन्म के बाद ऋग्वेद के एक सूक्त का पालन किया जिसके अनुसार कहा गया
"गावो सोमस्य प्रथमस्य भक्ष्य"
अर्थात गोमाता के गव्य (दूध, दही, मूत्र, गोरस, घृत) सरल है, चन्द्रमा की चांदनी की भाँती सहज है उन्हें माँ के गर्भ से निकले शिशु को माँ के दूध से पहले इस धरती पर प्रथम भक्ष्य (खाने योग्य) के रूप में दे सकते है I उन सभी बच्चो को हमे वैदिक विधि से तैयार किये गए पंचगव्य का सेवन करवाया I
आज ये बच्चे छ: महीने से लेकर डेढ़ साल तक के है I इन सभी बच्चो की बुद्धि अद्भुत है शरीर में बल की कमी नहीं है और अपने आस-पास के लोगो के साथ व्यवहार भी सहज है उदहारण के रूप में ऐसे बच्चो और उनके माता पिता का संक्षिप्त विवरण उन्ही के शब्दों में यहाँ दिया जा रहा है
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उदहारण 2
भाई नितेश ओझा,
सांगली, महाराष्ट्र
वर्ष २०१३ के नवम्बर में चेन्नई में हुए महासम्मेंलन के पहले में और मेरी पत्नी ने नेसर्गिक गर्भधारण और प्रसूति का निर्णय ले चुके थे .
उसी के अनुसार सभी नियमो का पालन कर गर्भधारण हुई | जेसे ही गर्भधारण हो गया . यह खबर मेरे घर में पता चली तब सभी ने मेरी पत्नी को शुभकामनाये देते हुए तुरंत हॉस्पिटल से गर्भ का वजन एवं प्रकृति ठीक हैं या नहीं आदि डॉक्टर से सलाह कर मेडिसिन लेने के लिए कहा गया | परन्तु हमारा निश्चय दृढ था की एलोपेथी नहीं लेंगे जब यह निर्णय घर पर बताया तो विरोध हुआ और फिर मैंने उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की |
अंत में तय हुआ की सिर्फ एलोपैथी से जाँच कराएँगे | सब कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन एलोपैथी के डॉक्टर द्वारा लिखे गए रिपोर्ट जब आता उसमे बच्चे का वजन कम कहा जाता | और अंग्रजी दवाई लिखी जाती | लेकिन मैंने कभी भी कोई दवाई नहीं दी और डॉक्टर को भी नहीं बतलाया |
ऐसे ही सिलसिला चल रहा था , तब अचानक ५ वे महीने में उस डॉक्टर ने एक डरावनी बात कह दी की गर्भ का वजन जरुरत से ज्यादा कम हैं और बहुत तकलीफ हैं | आपको तुरंत गर्भ खाली करवाना पड़ेगा, हमारे सभी घरवाले डर गए , इस मुस्किल समय में मैं अपनी पत्नी के साथ नहीं था , पर मैंने फ़ोन पर तुरंत दूसरा ओपिनियन लेने के लिए कहा | मैं जल्दी सांगली पंहुचा , दुसरे डॉक्टर के पास गए और उसने पुनः सोनोग्राफी करवाई तो उसने कहा की गर्भपात की कोई जरुर नहीं हैं | सब ठेक हैं और केवल खून की अल्पता हैं | लेकिन मुझे और मेरी पत्नी को गौ माता पर पूरा भरोसा था |
शुरू से लेकर पूर्ण विधि से पंचगव्य का सेवन चल रहा था , इसलिए मुझे पक्का विश्वास था की ऐसा कुछ नहीं हे | यह सब एलोपैथी के डॉक्टरों दवारा केवल डराया जा रहा हैं | इसी प्रकार हमने ९ महीने में ५ डॉक्टर जांच हेतु बदले |

मेरी पत्नी ने गर्भाधान के तुरंत बाद से रात्रि को गोदुग्ध का सेवन शुरू कर दिया था | और तीसरे महीने से गोमूत्र अर्क और घन्वटी का सेवन किया |
उन्ही दिनों सुबह छाछ का सेवन शुरू कर दिया था | छठे महीने से चांदी के कटोरे में दही जमाकर खाया | और ६.५ महीने बाद १५ दिन तक गोदुग्ध के साथ केसर का भी सेवन कराया |
उसके बाद प्रसूति तक लगभग २ किलो देशी गाय का घी तीन महीने में खिलाया | प्रत्येक रात्रि दूध के साथ २ चमच घी और कुछ समय के लिए घी - दूध -हल्दी के सूत्र को लगाया |
पुरे गर्भधारण से लेकर प्रसूति तक किसी भी प्रकार की एलोपैथी दवा का प्रयोग नहीं किया गया |
न ही सरकार की आयरन और केल्सियम की गोली खायी| जबकि आखरी समय २२ नवम्बर २०१४ के अनुसार मेरी पत्नी के गर्भ में पानी की कमी हैं . रक्त में इन्फेक्शन हैं और बच्चे की नाल गले में फस गयी हैं ऐसा रिपोर्ट दिया गया था |
उसके हिसाब से प्रिस्क्रिप्शन भी लिख कर दिया था | और २८ नवम्बर को जब मेरी पत्नी केवल बच्चे की सांस की गति देखने तब नर्स ने उसे तुरंत एडमिट किया और डॉक्टर से फ़ोन पर बात करायी की तुरंत सीजर ऑपरेशन करना पड़ेगा | मुझे जैसे ही इस बात का पता चला मैंने दुबारा जांच कराना चाहां | पर डॉक्टर ने २०१४ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा के माँ के गर्भा में पानी की कमी हैं. रक्त में इन्फेक्शन हैं ओए बच्चे की नाल गले में फँस गयी हैं और नेसर्गिक प्रसूति का जो समय हे उससे हम केवल ९ दिन पहले सिजर करेंगे |
बच्चे और माँ को कोई तकलीफ नहीं होगी बच्चा अब पूरी तरह से तेयार हैं | फिर मैंने उस डॉक्टर से पुछा की आपके पास माँ के गर्भ में पानी की कमी हैं उसे संतुलित करने की कोई ओषधि हैं? तो उसने हताश होकर कहा हमारे पास इसकी कोई ओष्दी नहीं हैं कोई रास्ता नहीं है और इसके लिए सीजर के आलावा और कोई रास्ता नहीं हैं फिर मैंने उस डॉक्टर को बताया की मैंने शुरू से ही पूर्ण पंचगव्य से ओषधि दी हैं |
मुझे पूरा भरोसा हैं की इसकी स्थिति सामान्य हैं इसीके के साथं मैंने उसने कहा की मैं प्रसव के लिए ऑपरेशन नहीं कराना चाहता | मैने उसी दिन उसी दिन डायग्नोसिस सेन्टर जा कर सोनोग्राफी कराया जिसमे सब कुछ सामान्य था | तुरंत रिपोर्ट लेकर उस डॉक्टर को बताया फिर उसी डॉक्टर ने नेसरगिक प्रसूति दर्द शुरू होने या उससे पहले आने को कहा | नेसरगिक प्रसूति का दिन ७ अक्टूबर २०१४ था | मेरा मन प्रसूति घर में ही कराने का था लेकिन घरवालो ओइर आस पड़ोस के लोगो के दवाब के कारन ऐसा नहीं कर पाया |
इस प्रकार गर्भधारण और पंचगव्य से मेरी पत्नी को ६ अक्टूबर २०१४ को हल्का प्रसूति दर्द हुआ | उन्हें हॉस्पिटल ले गए मेरे सभी घरवालो ने उसका दर्द देखकर डॉक्टर से खा की आप सीजर कर सकते हैं | पर मैंने नेसर्गिक प्रसूति तक इंतजार करने के लिए कहा | इसी दौरान गोशाला से ताज़ा गोबर का रस मंगवाया और हर आधे घंटे बाद दिया | कुछ ही समय में 7 अक्टूबर 2014 को पुत्र पैदा हुआ | सो प्रतिशत नैसर्गिक प्रसूति |आज तक किसी प्रकार के टीके नहीं लगवाए है इसी प्रकार देश में सभी अगर नैसिर्गिक प्रसूति में का निश्चय कर ले देश में क्रांति आ सकती है
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स्त्रोत :
महर्षि वाग्भट गोशाला एवं पंचगव्य अनुसन्धान केंद्र (कांचीपुरम) में गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा जी की के द्वारा प्रकाशित
"गव्यसिद्ध"
अखिल भारतीय पंचगव्य चिकित्सक संघ का वार्षिक पत्र (2015)

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