प्रकृति की बनायीं मूंगफली या वैज्ञानिको का बनाया मूंगफला?
सर्दियों में और विशेषकर लोहड़ी के समय मूंगफली खूब खायी जाती है और यह मेरी पसंदीदा खाद्य पदार्थो में से एक है
लेकिन पिछले वर्ष से मैंने यह देखा की बाज़ार में एक बड़ी मूंगफली बिक रही है जिसमें बड़े बड़े दाने होते है और दुकानदार इसे मूंगफला कहते है
दुकानदारों से पुछा की यह कब से बाज़ार में आनी शुरू हुई तो जवाब मिला 7-8 वर्षो से अर्थात कुछ गड़बड़ है क्योंकिपहले तो मुझे लगा की शायद यह प्राकृतिक है लेकिन मैं गलत था
इस वर्ष समय मिला तो इस पर थोडा अध्ययन करने की सोची तो पता चला की मनुष्य प्रकृति को मुर्ख समझता है और स्वयं को बुद्धिमान लेकिन परिस्थिति इसके उलट है
पता चला की 2007 में BARC (भाभा परमाणु अनुसन्धान केंद्र) के वैज्ञानिको द्वारा Genetic इंजीनियरिंग के द्वारा प्राकृतिक मूंगफली जिसका दाना छोटा होता है और जो हजारो सालो से खायी जा रही है उसका एक नया स्वरुप TG 37-A (मूंगफला) विकसित किया गया जिसका उद्देश्य केवल किसानो की पैदावार बढ़ाना था और उनको बड़ा दाना उगाने के प्रेरणा देना जिस से अच्छी बिक्री हो
हो सकता है उनकी सोच अच्छी रही हो वो किसानो की पैदावार बढ़ाना चाहते हो परन्तु वो एक बात भूल गए की इश्वर को अगर बनाना होता तो क्या वो इस दाने को स्वयं बड़ा न बना देता परन्तु हमने केवल पैदावार बढ़ने के लिए इस मूंगफला का आकर तो बढ़ा दिया पर गुण घट गए
मूंगफला में स्वाद तो है नहीं पोषकता भी लगभग नहीं है इसे खाकर स्वस्थ्य बिगड़ेगा वो अलग इसीलिए इस अप्राकृतिक खाद्य पदार्थ का बहिष्कार करें
और छोटी मूंगफली के सेवन करें
और छोटी मूंगफली के सेवन करें
इस शोध की पूरी जानकरी इस लिंक में है
मात्रा बढ़ाने के चक्कर में गुणवत्ता (Emphasizing only on Quantity instead of Quality) घटाने को जो खेल मनुष्य जाति खेल रही है उसका परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ी भुगतेगी क्योंकि हरित और श्वेत क्रांति के नाम पर जो दुर्दशा हमारी उर्वर भूमि के और भारतीय गोवंश हुई वो इसी पैदावार बढ़ने के लालच का नतीजा है
प्रकृति से अधिक समझदार बनने की कोशिश मनुष्य जाति न करे क्योंकि हम उतने समझदार है नही!
The link giving only research outcomes. How come the shortcomings of nutritional value and taste been determined?
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