Wednesday, September 23, 2015

गुरुङ पुराण की बातें।..

गरुड़ पुराण में व्यावहारिक जीवन के ऐसे कई गलत काम या विचार बताए गए हैं, जिन्हें पाप माना जाता है। ये विचार और स्वभाव आदत में इस तरह समा जाते हैं कि उन्हें बार-बार दोहराने पर भी गलती का एहसास नहीं होता। वजह यह भी है कि धर्म के नजरिए से कोई भी व्यक्ति पाप से अछूता नहीं, क्योंकि जीवन में हर व्यक्ति से कोई न कोई पाप जरूर करता है।
कुछ लोग पाप जानकर करते हैं तो कुछ अनजाने में, लेकिन पाप के नतीजे हमेशा भोगने पड़ते हैंं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं, स्त्री से जुड़ी कुछ ऐसी बातें, जिन्हें गरुड़ पुराण में पाप और इन्हें करने या सोचने वाले को पापी माना गया है..
लिखा गया है कि -
मातरं भगिनीं ये च विष्णुस्मरणवर्जिता:। अदृष्दोषां त्यजति स प्रेतो जायते ध्रुवम्।
भ्रातृधुग्ब्रह्महा गोघ्र: सुरापो गुरुतल्पग:। हेमक्षौमहरस्ताक्ष्र्य स वै
प्रेतत्वमाप्रुयात्।।
न्यासापहर्ता मित्रधु्रक् परदारतस्तथा। विश्वासघाती क्रूरस्तु स प्रेतो जायते ध्रुवम्।।
कुलमार्गांश्चसंत्यज्य परधर्मतस्तथा। विद्यावृत्तविहीनश्च स प्रेतो जायते ध्रुवम्।।
इन बातों को सरल शब्दों में समझे तो
प्रेत योनि में जाने के पीछे ऐसे बुरे काम हैं
- बेकसूर मां, बहन, पत्नी, बहू और कन्या को बेसहारा छोड़ने वाला या उन्हें ऐसे छोड़ने के बारे में विचार रखने वाला।
- गुरुपत्नी के प्रति बुरे भाव रखने वाला, भाई के साथ दगाबाजी, गाय को मारने वाला, नशा करने वाला, किसी भी मनुष्य या ब्राह्मण को मृत्यु तुल्य दु:ख देने वाला व चोर।
- पराई स्त्री के बारे में गलत सोचने वाला और संबंध रखने वाला, घर में रखी अमानत को चुराने वाला, मित्र के साथ धोखा करने वाला, विश्वासघाती और पापी।
- वह अज्ञानी व दुराचरण करने वाला, जो कुटुंब या परिवार की अच्छी परंपराओं को तोड़े।
गरुड़पुराण के अनुसार ये सभी काम करने या सोचने वाला पुरुष पापी होता है और वह मरने के बाद प्रेत बनता है
परान्नं च परस्वं च परशय्या: परस्त्रिय:।
परवेश्मनि वासश्र्च शकादपि हरेच्छ्रियम्।।
मतलब है दूसरों की स्त्री का सेवन, अन्न, धन, शय्या या पलंग का उपयोग और दूसरे के घर में रहना, ये इन्द्र का वैभव भी समाप्त कर देते हैं। सरल शब्दों में कहें तो परस्त्री से संबंध या उसका भोग दरिद्रता या धन हानि का कारण भी बनता है।
इसी तरह लिखा गया है
कुतो निद्रा दरिद्रस्य परप्रेष्यवरस्य च। परनारीप्रस्क्तस्य परद्रव्यहरस्य च।।
यानी पराई नारी पर आसक्त, दरिद्र व दूसरों का भेजा दूत और दूसरों का धन दबाने की मंशा रखने वाले की नींद उड़ जाती है। परस्त्रियों को लेकर बेचैन व आसक्त व्यक्ति चैन की नींद का सुख खोकर रोगी भी हो जाता है।
शास्त्रों के नजरिए से किसी भी स्त्री के साथ किया गया अपमानजनक व्यवहार पुरुष के पतन का कारण बन सकता है। कठोर व्यवहार से स्त्री को वश में करने की कोशिश को बड़ा पाप माना गया है। स्त्री से रिश्ता मां, बहन, पत्नी, बेटी किसी भी रूप में हो, प्रेम और स्नेह के साथ निभाने पर ही सुख देता है। कहा गया है स्त्री को कमतर मानकर, बुरी मानसिकता या भोग का साधन समझ बुरे व्यवहार से अधिकार या वश में करने की कोशिश अंतत: मान-प्रतिष्ठा को धूमिल ही नहीं करती, बल्कि जीवन को दु:खों से भर देती है।
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि मित्र की स्त्री पर अप्रत्यक्ष दृष्टि या दर्शन से बचें। सरल शब्दों में कहें तो मित्र की स्त्री के प्रति गलत सोच, नजर, भाव या व्यवहार धार्मिक नजरिए से पाप कर्म ही है। यह व्यावहारिक तौर से भी विश्वास भंग करने वाला दोष हैं।ऐसा करना किसी भी व्यक्ति की दुर्गति का कारण बनता है।
जो पुरुष सोचते हैं स्त्री के लिए ऐसी बातें, उन्हें शास्त्रों में पापी माना गया है।
- हिन्दू धर्मग्रंथ शिव पुराण में जिन चार मानसिक या वैचारिक दोषों का जिक्र किया गया है। उनके मुताबिक पराई स्त्री को पाने का संकल्प या चाहत करना भी मानसिक पाप है। जो इंसान के लिए अपार दु:ख, मानसिक अशांति और कलह का कारण बनता है।
इस पुराण के मुताबिक ऐसी बुरी सोच से व्यक्ति को नरक यानी दु:ख भोगना पड़ता हैं।
महाभारत में भी कुछ ऐसे पाप बताए गए हैं, जिनको करने से व्यक्ति पाप का भागी बनता है। ऐसे पापों का बढऩा ही अंत का कारण बनता है।
- पराई स्त्री को बुरी नजर से देखना, बुरा व्यवहार या संबंध बनाना।
- गुरु की स्त्री से संबंध।
- गर्भ हत्या करने वाला।
- घर में आग लगाना या कलह करवाना।
- चुगली करना।
- मित्र के साथ विश्वासघात।
- ब्राह्मण होकर शराब पीना।
- क्रूर स्वभाव वाला।
- धर्म या ईश्वर का विरोध।
- वेद की बुराई करना।
- शराब बेचना।
-हथियार वनाना या बेचना।
- वाचालता या बकवास करना।
- जहर देना

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