एक कड़वा सच
भारत में 80000 से अधिक दवाईयों के ऐसे फोर्मुले हैं जो भारतीयों के लिए किसी काम के नहीं हैं| दूसरे शब्दों में यदि कहें तो हज़ारों ऐसी दवाइयाँ हैं जो फालतू हैं! AIIMS (All India Institute of Medical Sciences) के एक अनुसन्धान के अनुसार भारत को केवल 250 दवाईयों की ही आवश्यकता है परंतु भारत में हज़ारों दवाइयाँ धड़ल्ले से बिक रही हैं| मजे की बात यह है कि एक भी विदेशी कंपनी भारत में आवश्यक दवाई का निर्माण/आयात नहीं करती!
उदाहरण के तौर पर:
ब्रुफेन (Brufen) – विश्व के 17 देशों में प्रतिबंधित है क्योंकि इससे आँतों में घाव और अल्सर होता है| दर्द को कम करने के लिए केवल 10mg ब्रुफेन की आवश्यकता होती है लेकिन यह 250-400mg की टेबलेट में आती है|
एस्पिरिन (Aspirin) – विश्व के 40 देशों में प्रतिबंधित है| यह केमिकल सीधा स्नायु तंत्र (nervous system) पर असर करता है|
पेरासीटामोल (Paracetamol) – जापान समेत 12-15 देशों में प्रतिबंधित है| जापान में बच्चों को यह बहुत अधिक दी जाती थी| वहाँ के लगभग डेढ़ लाख बच्चे विकलांग हो गए| जापान सरकार ने एक सर्वे किया और उसकी रिपोर्ट WHO (World Health Organization) को सौंपी| रिपोर्ट में पता लगा कि पेरासीटामोल विकलांगता का कारण है| उस दिन के बाद से जापान में पेरासीटामोल प्रतिबंधित है परंतु भारत में धड़ल्ले से बिकना चालू है|
इस नए संशोधन के बाद Reversal of Burden of Proof का एक प्रावधान जोड़ा गया है जिसके तहत अगर कोई पेटेंट का उल्लंघन करता है तो केवल उसे ही यह साबित करना पड़ेगा कि वह निर्दोष है| जो कंपनी आरोप लगायेगी, वह आरोप लगाने के बाद चुप चाप बैठ जाएगी| इससे होगा यह कि कल को कोई विदेशी कंपनी भारतीय कंपनी पर आरोप लगाती है तो विदेशी कंपनी तो चुप-चाप अपना धंधा करती रहेगी परंतु आरोपित कंपनी को अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ेगा जब तक कि वह खुद को निर्दोष नहीं साबित कर देती! सवाल यह उठता है कि अगर देश पर कल को कोई विपत्ति आयेगी और देश को करोड़ों की तादाद में दवाईयों की जरूरत पड़ेगी तो इन्हीं विदेशी कंपनियों से मनमाने दाम पर सरकार को दवाइयाँ खरीदनी पड़ेंगी जिससे देश की मुद्रा कम होगी और यदि स्थिति युद्ध की हुई तो अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार पड़नी पूर्णतया संभव है! संसद में बैठे लोग इस बात से वाकिफ होते हैं और फिर भी यह विनाश का बीज बोने देते हैं| इसकी एवज में विदेशी कंपनियाँ करोड़ों की रिश्वत दे देती है| यही नहीं संसद में इन्हीं विदेशी कंपनियों के MP होते हैं जो तब खड़े हो जाते हैं जब कोई इन विदेशी कंपनियों की पोल खोलने की कोशिश करता है!.......
भारत में 80000 से अधिक दवाईयों के ऐसे फोर्मुले हैं जो भारतीयों के लिए किसी काम के नहीं हैं| दूसरे शब्दों में यदि कहें तो हज़ारों ऐसी दवाइयाँ हैं जो फालतू हैं! AIIMS (All India Institute of Medical Sciences) के एक अनुसन्धान के अनुसार भारत को केवल 250 दवाईयों की ही आवश्यकता है परंतु भारत में हज़ारों दवाइयाँ धड़ल्ले से बिक रही हैं| मजे की बात यह है कि एक भी विदेशी कंपनी भारत में आवश्यक दवाई का निर्माण/आयात नहीं करती!
उदाहरण के तौर पर:
ब्रुफेन (Brufen) – विश्व के 17 देशों में प्रतिबंधित है क्योंकि इससे आँतों में घाव और अल्सर होता है| दर्द को कम करने के लिए केवल 10mg ब्रुफेन की आवश्यकता होती है लेकिन यह 250-400mg की टेबलेट में आती है|
एस्पिरिन (Aspirin) – विश्व के 40 देशों में प्रतिबंधित है| यह केमिकल सीधा स्नायु तंत्र (nervous system) पर असर करता है|
पेरासीटामोल (Paracetamol) – जापान समेत 12-15 देशों में प्रतिबंधित है| जापान में बच्चों को यह बहुत अधिक दी जाती थी| वहाँ के लगभग डेढ़ लाख बच्चे विकलांग हो गए| जापान सरकार ने एक सर्वे किया और उसकी रिपोर्ट WHO (World Health Organization) को सौंपी| रिपोर्ट में पता लगा कि पेरासीटामोल विकलांगता का कारण है| उस दिन के बाद से जापान में पेरासीटामोल प्रतिबंधित है परंतु भारत में धड़ल्ले से बिकना चालू है|
इस नए संशोधन के बाद Reversal of Burden of Proof का एक प्रावधान जोड़ा गया है जिसके तहत अगर कोई पेटेंट का उल्लंघन करता है तो केवल उसे ही यह साबित करना पड़ेगा कि वह निर्दोष है| जो कंपनी आरोप लगायेगी, वह आरोप लगाने के बाद चुप चाप बैठ जाएगी| इससे होगा यह कि कल को कोई विदेशी कंपनी भारतीय कंपनी पर आरोप लगाती है तो विदेशी कंपनी तो चुप-चाप अपना धंधा करती रहेगी परंतु आरोपित कंपनी को अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ेगा जब तक कि वह खुद को निर्दोष नहीं साबित कर देती! सवाल यह उठता है कि अगर देश पर कल को कोई विपत्ति आयेगी और देश को करोड़ों की तादाद में दवाईयों की जरूरत पड़ेगी तो इन्हीं विदेशी कंपनियों से मनमाने दाम पर सरकार को दवाइयाँ खरीदनी पड़ेंगी जिससे देश की मुद्रा कम होगी और यदि स्थिति युद्ध की हुई तो अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार पड़नी पूर्णतया संभव है! संसद में बैठे लोग इस बात से वाकिफ होते हैं और फिर भी यह विनाश का बीज बोने देते हैं| इसकी एवज में विदेशी कंपनियाँ करोड़ों की रिश्वत दे देती है| यही नहीं संसद में इन्हीं विदेशी कंपनियों के MP होते हैं जो तब खड़े हो जाते हैं जब कोई इन विदेशी कंपनियों की पोल खोलने की कोशिश करता है!.......
क्या paracetamol or aspirin का कोई और विकल्प नहीं है
ReplyDeleteKya aurved mey iss sab medicine ka koi uchit vikalp nahi hai .hamare pass
ReplyDeletebilkul hian didi shri aur paracetamol or aspirin se bhi jyada hain hume to bus thode shodh ki jarurat hain.
ReplyDeleteshri rajiv bhai bolte hain na ki bimar hi na pado to paracetamol or aspirin ki jarurat hi ni padegi
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