बचपन में एक बिल्ली हमारे घर में रोज आ जाया करती थी.
हालांकि, बिल्ली को शेर की प्रजाति का माना जाता है लेकिन बिल्ली बहुत ही डरपोक जीव होती है और जरा सा आवाज होते ही वो तुरत भाग जाती है.
तो, हमारे यहाँ आने वाली बिल्ली भी आवाज होते ही तुरत भाग जाती थी.
लेकिन, मुसीबत ये थी कि वो फिर आ जाती थी.
उसकी इस आदत को देखकर मैं बहुत चिढता था.
और, एक दिन मैंने बिल्ली को सबक सिखाने की ठानी.
मैंने दूध का कटोरा किचेन से हटाकर एक रूम में रख दिया.
और, मैं एक डंडे के साथ छुप कर बिल्ली के आने का इंतजार करने लगा ताकि जब वो आये तो रूम बंद करके उसे दमभर डंडे से मारूं.
लेकिन, बिल्ली आने से पहले भैया आ गए और मेरी इस तरह की तैयारी देखकर उसका कारण पूछा.
कारण जानकर वे मुझे बहुत डांटने लगे और बताया कि बिल्ली को रूम बंद करके मारने का प्लान एकदम बेहूदा प्लान है.
क्योंकि, बिल्ली भले ही स्वभाव से डरपोक होती है लेकिन जब उसे भागने का रास्ता नहीं मिलेगा और उसके जान पर बन आएगी तो फिर वो खूंखार हो जाएगी तथा वो तुमपर हमला कर देगी.
फिर, बिल्ली के तेज दांत और तीखे नाखून से तुम्हारा बच पाना संभव नहीं होगा.
इसके बाद मैंने बिल्ली को पीटने का प्लान त्याग दिया और भैया ने खिड़की में जाली लगवा कर इस समस्या को सॉल्व कर दिया.
तो... कहने का मतलब है कि.... जब किसी के पास बचने का कोई उपाय नहीं बचता है तो अंतिम उपाय के तौर पर डरपोक से डरपोक तथा शांत से शांत प्रजाति भी खूंखार हो जाती है.
उदाहरण के तौर पर... बौद्ध एक शांत एवं अहिंसक धर्म माना जाता है.
लेकिन, मियाँ मार देश के असिन बिराथु की ही तरह ... बौद्ध भिक्षु गलागोदा अथ्थे ज्ञानसारा थेरो के नाम से श्रीलंका में मुतलिमों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है..
और, इनका ये रूप मुतलिमों के अतिवादी रवैये ने बनाने पर मजबूर कर दिया.
लंका में भड़के दंगे, मधरसों में दी जाने वाले शिक्षा और कट्टरपंथी मुतलिमों के कारण ज्ञानसारा मैदान में कूदे..
और, ऐसा कूदे कि सबकी नानी याद दिला दी.
अभी श्रीलंका सरकार 'वन कंट्री वन लॉ' याने 'एक देश एक कानून' के ऊपर कार्य कर रही है..
यानि कि... सीधा संदेश है कि शरिया-फरिया जैसा कोई कानून नहीं रहेगा श्रीलंका में.
राजपक्षे सरकार ने इसके लिए 13 सदस्यीय टीम भी गठित कर दिया है.
और, मजे की बात ये है कि इस टीम का नेतृत्व ज्ञानसारा ही कर रहे हैं.
मतलब कि इस टीम के प्रमुख ज्ञानसारा जी हैं.
और, इन्होंने साफ कह दिया है कि बुर्का का चलन श्रीलंका में नहीं होगा...
साथ, ही हजारों इ स्लामिक स्कूलों को बंद कर दिया जाएगा क्योंकि श्रीलंका की शिक्षा नीति में इनका कोई योगदान नहीं है.
राजपक्षे के हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी...
क्योंकि, जब पूरी दुनिया इसके खिलाफ हो गई थी तब भी ये अपने देश से लिट्टे को जड़ से उखाड़ फेंकने में कोई कोताही नहीं बरती..
तथा, दुनिया को ठेंगे पे रख के सारा झंझट ही खत्म कर दिया.
और... अब ये इसमें लग गए हैं.
इसमें भी, सबसे सुलगाने वाला काम ये कि इतने बड़े कानून बनाने वाली टीम का प्रमुख सबसे स्पष्ट और उग्र चेहरे को बना दिया है.
ये देखने वाली बात होगी कि भारत में कब इस तरह का कोई धर्मगुरु खड़ा होकर उत्पात मचा रहे कटासुर पर लगाम लगाता है.
क्योंकि, जब अंतिम विकल्प के तौर पर बिल्ली और बौद्ध जैसे शांत लोग भी आक्रामक हो सकते हैं तो फिर तो हम हिन्दू शेर ही हैं...
जिनका पूरा इतिहास ही राक्षसों और असुरों के वध से पटा पड़ा है.
जय महाकाल...!!!
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