अहमद पर आने से पहले समझिए कि "चांद बाबा" क्या था ? तब पोस्ट सही से समझ में आएगी।
दरअसल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या से उथल पुथल शहर के हम्माम गली में रहने वाला "शौक ए इलाही उर्फ चांद हड्डी" हार्डकोर क्रिमिनल था , उसके जुर्म का इतिहास सराए गढ़ी के हमाम गली में झाड़ फूंक करने वाले एक बाबा की हत्या से शुरू हुआ, चांद हड्डी को शक था कि उसके बड़े भाई रहमत की मौत बाबा के झाड़ फूंक की वजह से हुई है।
इस घटना से चांद हड्डी, चांद बाबा बन गया , चांद बाबा के खिलाफ शाहगंज थाने में एफआईआर दर्ज हुई और चांद बाबा को गिरफ्तार करके नैनी जेल भेज दिया गया।
जेल से जमानत पर छूटते ही चांद बाबा अपने बड़े भाई रहमत के करीबी दोस्त को गोलियों से भून दिया। क्योंकि चांद बाबा को शक था कि यह खास दोस्त भी रहमत की मौत का ज़िम्मेदार है।
यहां से शुरू होता है चांद बाबा के जुर्म का दौर और चांद बाबा ने तीसरी हत्या अपने वकील की ही कर दी जब वकील की उसके साथ किसी बात पर बहस हो गई। वकील का सीना पहले चांद बाबा ने गोलियों से छलनी किया फिर बम मार कर उसके शव को चिथड़े चिथड़े कर दिया।
चांद बाबा के खिलाफ मुकदमों की फेहरिस्त लंबी होती चली गई और चांद बाबा ने सरेंडर कर दिया।
चांद बाबा को नैनी सेंट्रल जेल भेज दिया गया, नैनी सेंट्रल जेल में चांद बाबा की एक मांग ना मांगे जाने पर चांद बाबा ने जेल में रहते हुए अपने साथी जग्गा के साथ नैनी सेंट्रल जेल के जेलर पर बमों से हमला करवा दिया।
कुछ दिनों के बाद चांद बाबा ज़मानत पर बाहर आ चुका था , चांद बाबा अपने गैंग का विस्तार करने लगा और कुछ ही समय में उसके गैंग में 100 से 150 शातिर अपराधी और बमबाज शामिल हो गए और यह इलाहाबाद के तमाम मुहल्ले तक फैल गये।
उसी समय गढ़ी सराय में चकलाघर चलते थे , इसके संचालक थे "अच्छे" और उसका भाई "लड्डन"। यह छोटे मोटे बदमाश थे जो वैश्यावृत्ति की दलाली किया करते थे।
मुहल्ले वालों के निवेदन पर चांद बाबा ने मोर्चा संभाला और अच्छे ऐंड ब्रदर्स के साथ भयंकर बमबाजी हुई। और अंत में चांद बाबा ने इस इलाके से वैश्याओं के घरों पर बम मार मार कर मीरगंज तक भगा दिया और सरायगढ़ी क्षेत्र खाली हो गया। और इससे चांद बाबा का प्रभाव शहर में और बढ़ गया।
चांद बाबा का नाम शहर की हर अपराधिक घटना में आने लगा और पुलिस तथा प्रशासन की नाक में चांद बाबा ने दम कर दिया।
पुलिस ने चांद बाबा को पकड़ने का प्रयास शुरू किया , उस समय शहर के कोतवाल आए नवरंग सिंह ने जून 1986 के एक दिन सारे थानों की पुलिस बुलाकर चांद बाबा की घेराबंदी शुरू कर दी। मगर चांद बाबा और उसके गैंग के सभी लोग बमबाजी करते हुए पुलिस को चकमा देकर भाग निकले।
इससे गुस्से में आया चांद बाबा अगले ही दिन अपने गैंग के साथ शहर कोतवाली पर ही धावा बोल दिया और कोतवाली पर इतने बम बरसाए कि बमों की मार से शहर कोतवाली दहल गयी। पुलिस ने किसी तरह कोतवाली का गेट बंद करके अपनी जान बचाई।
कोतवाली पर आक्रमण से गुस्से में आई पुलिस और चांद बाबा के बीच चूहे बिल्ली का खेल शुरू हो गया और पुलिस ने चांद बाबा के घर के पास हम्माम गली में ही एक पुलिस चौकी स्थापित की जिसे कुछ ही दिनों में चांद बाबा और उसके गैंग ने बमों से उड़ा दिया।
पुलिस पर दोहरे आक्रमण से पुलिस ने अब चांद बाबा के खिलाफ कार्रवाई को अपने मान सम्मान से जोड़ लिया और ताबड़तोड़ छापेमारी करने लगी।
तब शहर उत्तरी के तत्कालीन कांग्रेस विधायक ने चांद बाबा को अपने पास बुलाया और उन्हें सरेंडर करने की सलाह दी और 1988 में चांद बाबा सरेंडर करके जेल चला गया।
जेल से ही 1989 के सभासद के चुनाव में चांद बाबा ने नामांकन कर दिया और जीत दर्ज की और कुछ ही दिनों बाद चांद बाबा को सशर्त जमानत मिल गई और नैनी जेल से चांद बाबा को लेने शहर से भारी हुजूम उमड़ पड़ा।
अतीक अहमद खुद खुली जिप्सी में चांद बाबा को नैनी जेल से पूरे जुलूस के साथ लेकर शहर आए।
1989 के शुरुआती दिनों तक ज़िले के दो दबंग अपराध के आरोप लिए और कानून को चुनौती देते अतीक अहमद और चांद बाबा इलाहाबाद में चर्चित हो चुके थे , और तब तक इलाहाबाद दंगों का इतिहास समेटे हुए चल रहा था।
जो लोग इलाहाबाद को जानते हैं वह इलाहाबाद की भौगोलिक स्थिति को भी जानते होंगे, इलाहाबाद जंक्शन सिटी साईड के सामने मुख्य सड़क लीडर रोड आगे बढ़ती हुई जानसेनगंज तक जाती है और फिर हिवेट रोड से होती हुई यह रामबाग तक पहुंचती है , इलाहाबाद से गुज़रने वाली यह दूसरी जीटी रोड है। पहली जीटी रोड चौक नखास कोहना, खुल्दाबाद,हिम्मत गंज और चकिया होकर निकलती है।
यह सड़क इलाहाबाद को दो हिस्सों में बांटती है , इसके दाहिनी तरफ मुसलमान बहुल इलाके आते हैं और दूसरी तरफ हिन्दू बहुल इलाके आते हैं।
इन मुहल्लों में अक्सर दंगे हो जाते थे जो बहुत बड़े तो नहीं पर शहर को अस्थिर करने के लिए काफ़ी थे।
शौक ए इलाही उर्फ चांद बाबा घनघोर धार्मिक व्यक्ति था , इलाहाबाद में हुए अक्सर दंगों में वह शामिल रहता था।
इलाहाबाद रेलवे स्टेशन और चौक से 2 किमी और दूर ही मुस्लिम बहुल इलाके में उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद की कालोनी है , "करैली" अर्थात गुरु तेग बहादुर नगर।
1979 में बनी शहर के सबसे करीब यह कालोनी अपने निर्माण से ही हिंदू और सिख बहुल थी। इसी कालोनी के बीच में वक्फ़ बोर्ड का एक बहुत पुराना कब्रिस्तान है जिसमें मौजूद मस्जिद के इक्सटेंशन को लेकर अक्सर शहर का माहौल खराब होता था।
सरकार का कहना था कि आवास विकास परिषद की कालोनी में कानूनन सार्वजनिक धार्मिक स्थल प्रतिबंधित है तो मुस्लिम लोगों का दावा था कि चुंकि यह ज़मीन और कब्रिस्तान वक्फ़ बोर्ड की है इसलिए हम इसपर कुछ भी निर्माण कर सकते हैं।
चुंकि यह कालोनी मुस्लिम क्षेत्र में थी और 99% मुस्लिम मुहल्लों के बीच थी तो धीरे धीरे हिंदू और सिख भाई लोग अपना मकान बेच बेच कर यहां से जाने लगे।
फिर 1984 के सिख विरोधी दंगों ने सिख भाइयों को यहां से घर बेचकर जाने को मजबूर कर दिया।
फिर संभवतः 1985 या 1986 के एक दिन शौक ए इलाही उर्फ चांद बाबा ने ऐलान किया कि शहर से करैली को जोड़ने वाली नूरुल्लाह रोड को ब्लाक करके 24 घंटे के अंदर मस्जिद के निर्माण को पूरा किया जाएगा , जो भी इसके बीच में आएगा बम से मारा जाएगा।
पूरे शहर में भारी सांप्रदायिक तनाव और डर फैल गया था और चांद बाबा और उसके गैंग के लोगों ने वैसा ही किया और नूरूल्लाह रोड को 24 घंटे के लिए ब्लॉक कर दिया और लगातार बम बरसाते रहे तथा उस मस्जिद में 24 घंटे के अंदर कुछ नवनिर्माण करा दिए गए , 24 घंटे के बाद भारी पुलिस बल के साथ आवास विकास परिषद के लोगों ने मस्जिद का कुछ नवनिर्मित हिस्सा हटा भी दिया।
मगर इस घटना से करैली से गैरमुस्लिमों का पलायन शुरू होने लगा, यह सभी लोग मुसलमानों को औने पौने दामों में अपने मकान और जमीन बेचकर जाने लगे।
1988 तक चांद बाबा के सभासद बनने के बाद शांतिप्रिय लोगों को शहर में सांप्रदायिक झड़प और दंगों का डर सताने लगा।
उलट खोपड़ी और सनकी "चांद बाबा" क्या ऐलान कर दे यह उस दौर में हर एक को डराने लगा और गैर मुस्लिम लोग करैली छोड़ कर जाने लगे।
डरते डरते शहर के सामने आ गया 1989 का विधान सभा चुनाव, और अतीक अहमद ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन कर दिया।
अतीक अहमद को नामांकन करता देख आगबबूला "चांद बाबा" ने भी ऐलान कर दिया कि वह भी विधायक का निर्दलीय उम्मीदवार होगा और अगले दिन ही उसने भी नामांकन कर दिया।
अतीक अहमद ने चांद बाबा को समझाने की कोशिश की , कि मुस्लिम वोट बंट जाएंगे , तो चांद बाबा गालियां देते हुए कहता कि "ठीक है चलो तुम नामांकन वापस लेलो , विधायक मैं बनूंगा। तुम जाहिल अनपढ़ विधायक बन कर क्या करोगे ?"
और इसी से अतीक अहमद और चांद बाबा के संबंध खराब हो गये और दोनों दबंग लठैत विधानसभा के चुनाव में आमने सामने थे।
चुनाव प्रचार शुरू हो चुका था, अतीक अहमद इस चुनाव में नियंत्रित रहते तो चांद बाबा बेहद आक्रामक।
शहर पश्चिमी विधानसभा चुनाव के प्रचार में शहर के अटाला , बुड्ढा ताज़िया , अकबरपुर, करैली में स्टेज से ही चांद बाबा अतीक अहमद को गालियां देता , अनपढ़ गंवार कह कर मज़ाक उड़ाता और इसी सबके बीच दोनों की दुश्मनी बढ़ती गयी।
अतीक अहमद के समर्थन में चांद बाबा से पीड़ित लोग आने लगे, प्रशासन और नेता अतीक अहमद के पक्ष में आने लगे जिसमें शहर उत्तरी से विधायक का चुनाव लड़ रहे उस समय शहर की एक बड़ी हस्ती भी थे जिनकी प्रशासन पर तगड़ी पकड़ थी।
अपनी कमज़ोर होती स्थिति देखकर चांद बाबा बौखलाने लगा और स्टेज से गालियां बढ़ती चली गयीं। और फिर आ गया मतदान का दिन अर्थात 22 नवंबर 1989
उस दिन "चांद बाबा" पर सनक सवार थी , हर पोलिंग बूथ पर चांद बाबा जाकर गाली गलौज करता और दोपहर बाद वह पहुंच गया शहर पश्चिमी विधानसभा की सबसे बड़े पोलिंग स्टेशन "अटाला" के मजीदिया इस्लामिया इंटर कालेज।
उसे किसी ने बताया कि यहां पर अतीक अहमद के समर्थन में फर्जी वोटिंग हो रही है , और उसने वहां सबसे पहले मौजूद पुलिस के आला अधिकारियों के साथ बत्तमीज़ी और गाली गलौज की , कुछ लोगों का कहना था कि उसने पुलिस के एक आला अधिकारी की कालर पकड़ कर चुनाव बाद वर्दी उतार लेने की धमकी दी।
तभी उसकी नज़र घोड़े पर बैठे अतीक अहमद के पिता फिरोज़ अहमद पर पड़ी। चांद बाबा पहले तो उनके पास जाकर फ़र्ज़ी मतदान का आरोप लगाकर उन्हें और अतीक अहमद को गंदी गंदी गालियां दीं और फिर उन्हें घोड़े से नीचे उतार कर उनकी दाढ़ी नोच ली और उनके ऊपर थूक दिया।
अब यह अति हो गया था और यह खबर फैलते ही शहर पश्चिमी में एक सनसनी फैल गई कि पुलिस और प्रशासन अवश्य चांद बाबा को गिरफ्तार करेगा, लोगों में डर और संभावित दंगे होने का डर सताने लगा।
मतदान संपन्न होने तक पुलिस और प्रशासन सहनशीलता और ज़िम्मेदारी का परिचय देता रहा और शाम के 6 बजते बजते विधानसभा चुनाव का मतदान सकुशल संपन्न हो गया।
22 नवंबर 1989 रात करीब 8.30 से 9 बजे के बीच, स्थान - रोशन बाग ढाल स्थित कवाब पराठे की एक मशहूर दुकान "जब्बार होटल"।
मतदान संपन्न होने के बाद चांद बाबा को आरिफ नाम के एक शख्स ने खबर दी कि जब्बार होटल पर अतीक अहमद बैठे हुए खाना खा रहे हैं।
अपने गैंग के लोगों के साथ चांद बाबा अतीक अहमद को मारने जब्बार होटल पहुंचा ही था कि अचानक इस पूरे क्षेत्र की बिजली चली गई और चारों ओर धुप अंधेरा।
उस क्षेत्र के पुराने लोग कहते हैं कि रोशन बाग के उस रेस्टोरेंट से लगी सभी सड़कें ब्लाक कर दी गयीं और आवागमन ठप हो गया।
कुछ लोगों का कहना है कि यह प्रशासन ने किया, कुछ लोग अतीक अहमद के लोगों का काम बता रहे थे।
चांद बाबा घिर गया था , उसके गैंग के लोग मामले को समझ कर भाग खड़े हुए और अकेले चांद बाबा बम पटकते रहे। भाग खड़े होने वालों में उसके सबसे विश्वसनीय जग्गा और छम्मन भी थे।
उस रेस्टोरेंट के आसपास लगातार बमबाजी होने लगी और फिर रात करीब 10 बजे खबर आई कि चांद बाबा की हत्या हो गयी।
वहां के पुराने लोगों का कहना है कि रात के अंधेरे में घिर गए चांद बाबा ने भागने की कोशिश नहीं की और अतीक अहमद को गालियां देता रहा और तभी अतीक अहमद वहां पहुंच गए।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चांद बाबा के शव में सीक कवाब की गरमागरम नुकीली राड से 12 सुराख होने की बात कही गई।
एक आम धारणा आज भी है कि यह अतीक अहमद ने अपने हाथों से किया मगर यह भी सच है कि अतीक अहमद पर चांद बाबा की हत्या का कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ,और प्रशासन द्वारा अज्ञात लोगों द्वारा की गई हत्या दिखा कर मामले को रफा दफा कर दिया गया।
चांद बाबा की ऐसी विभत्स हत्या के बाद पूरे इलाहाबाद में अतीक अहमद का खौफ और दबंगई उरूज़ पर आ गयी। उनकी कहीं भी मौजूदगी सनसनी पैदा करने लगी। चांद बाबा से पीड़ित हिन्दू भाई भी अतीक अहमद के प्रति विश्वास करने लगे।
उस समय यह एक जनमानस था कि चांद बाबा की हत्या अतीक अहमद, प्रशासन और शहर उत्तरी के एक विधायक का मिला जुला परिणाम थी।
हकीकत क्या थी पता नहीं पर एफआईआर अज्ञात लोगों पर हुई जिसे रात के अंधेरे में पहचाना नहीं गया।
अगले ही दिन विधानसभा चुनाव का परिणाम आया और अतीक अहमद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर 25906 अर्थात 33.54% वोट पाकर विजयी घोषित हुए। मृतक चांद बाबा 9281 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गोपाल दास यादव 17804 वोट पाकर दूसरे तो तीरथ राम कोहली निर्दलीय के तौर पर 12237 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे।
इलाहाबाद पश्चिमी को एक नये विधायक मिले अतीक अहमद जिनका असर उस समय के युवाओं पर तेज़ी से पड़ रहा था।
विधायक बनने के कुछ समय बाद ही करैली मस्जिद में निर्माण का कार्य पुनः शुरू करने का प्रयास हुआ, विधायक अतीक अहमद वहां आ खड़े हुए और मस्जिद के ज़िम्मेदारान को बुला कर ऐसा डांटा कि यह मामला सदैव के लिए शांत हो गया और आज तक शांत है। करैली से इसके बाद पलायन रुक गया।
अतीक अहमद ने अपराध किए होंगे, मामले न्यायालय के समक्ष थे और हैं मगर अतीक अहमद ने इलाहाबाद शहर को दंगा मुक्त बना दिया।
जहां सांप्रदायिक तनाव की खबर सुनते बीच में आकर खड़े हो जाते, दंगाईयों को घूर देते तो लोग पीछे हट जाते। अतीक अहमद ने शहर में बमबाजी बंद करा दी।
ऐसी ही एक घटना मुस्लिम बहुल बख्शी बाज़ार की है जहां से कुछ मुस्लिम लड़के सटे हुए हिन्दू इलाके महाजनी टोला में पत्थरबाजी कर रहे थे।
यह चित्र उस समय समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपा था कि अतीक अहमद अकेले ही उन लड़कों को बख्शी बाज़ार की तंग गलियों में दौड़ा लिए और कुछ एक को पकड़ कर वहीं पीटने लगे।
ऐसा जहां सांप्रदायिक तनाव होता अतीक अहमद बीच में खड़े मिलते और इलाहाबाद को आजतक दंगा मुक्त कर दिया।
नुपुर शर्मा के हालिया विवादास्पद बयान के बाद इलाहाबाद में पिछले साल पुलिस पर पथराव और भड़की हिंसा भी यदि अतीक अहमद बाहर होते तो नहीं होती।
खैर इसके बाद अतीक अहमद को क्षेत्र के हिंदू और सिख भाइयों का समर्थन मिलता चला गया और अतीक अहमद आगे बढ़ते चले गए।
राजनीति और अपराध को साथ साथ समेटे हुए।
विधानसभा चुनाव में जनता दल को 208 सीटें मिलीं और मुलायम सिंह यादव भाजपा के 57 विधायक के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस ने मुलायम सिंह यादव को बाहर से समर्थन दिया।
क्रमशः- कल इसी समय
डिस्क्लेमर:- सभी तथ्य और बातें अतीक अहमद के विधानसभा क्षेत्र शहर पश्चिमी में पब्लिक डोमेन से लेकर संकलित किए गए हैं।
Mohd Zahid ✍️✍️✍️
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