Tuesday, March 1, 2022

इसलिये तालिबानी जीत जाते हैं।

जिन तालिबानियों का उनकी कट्टरवादिता के कारण पूरी दुनिया में उपहास उड़ाया जाता है उन्हीं तालिबानियों ने तब के सोवियत संघ को मारकर और मरकर भगाया था।

वो सोवियत संघ जिसका नाम सुनते ही अमेरिका के नेताओं की पेंट में पेशाब छूट जाती थी उस सोवियत संघ को अफगानिस्तान के कट्टरपंथी तालिबानियों ने अपने देश से बर्बाद करके भगा दिया था।
जो कि बाद में जाकर सोवियत संघ के विघटन का एक बड़ा कारण भी बना।
उन्होंने तब के सोवियत संघ को तो भगाया ही था और पिछली साल NATO को भी भगाकर यह दिखा दिया कि सबसे ताकतवर वही होता है जिसके पास खोने के लिये कुछ नहीं होता।
युद्ध कभी भी आधुनिक हथियार और गोला बारूद से नहीं जीते जाते, युद्ध जीते जाते हैं बलिदान से, संघर्ष से और मनोबल से।
बलिदान का भाव आता है त्याग से, संघर्ष का भाव आता है तपस्या से और मनोबल ऊंचा होता है संयम से। और इन्हीं भाव से कोई वीर कहलाता है।
ऐसे वीरों को युद्ध में या तो बलिदान होता है या फिर विजयश्री प्राप्त होती है।
और तालिबानी यहीं पर पूरी दुनिया से आगे हैं। विश्व में आज अगर वास्तविक इस्लाम कहीं जीवित है तो वो अफगान के तालिबानियों में है। ये जंगली से दिखने वाले लोग मरने से बिल्कुल भी नहीं डरते और न मारने से डरते हैं। और यही निडरता उनकी सबसे बड़ी ताकत है, जिसके कारण न तो USSR और न NATO दोनों में कोई भी अपनी खटिया नहीं बिछा पाया।
ये उनकी आसमानी किताब ही है जिससे उन्हें बचपन से ही मिलिट्री ट्रेनिंग और कड़े संघर्ष को जीवन का अंग बनाने की प्रेरणा मिलती है। विश्व की शांति, मानवता और अन्य देशों के लिये उसके कई नुकसान हैं लेकिन उनके लिये फायदे ज्यादा हैं।
वही दूसरी तरफ अरब है जिसने अमेरिका के भोगवाद के सामने सरेंडर कर रखा है। जहाँ इस्लाम के नाम पर खानापूर्ति बची है, कट्टरता का 'क' भी अब ढहता दिख रहा है।
अफगान बाहर से खोखला दिख कर भी अंदर से मजबूत है जिसके दम पर आज वो आजाद है, वहीं दूसरी ओर अरब बाहर से समृद्ध दिख कर भी अंदर से खोखला है, गुलाम है भोगवाद का।
जो अमेरिका के बाजारवाद और भोगवाद से जीत गया वो अमेरिका से जीत गया। और जिसने इसके सामने घुटने टेके वो आगे चलकर बिना मालिक की गुलामी करेंगे।
इसी बाजारवाद से USSR टूट गया था और आज भी रूस की लड़ाई अपने देश को इसी बाजारवाद और भोगवाद से बचाने की है।
भारत को भी अगर अपना अस्तित्व बचा कर रखना है तो अपनी जनता को बाजारवाद और भोगवाद के विष से isolate करना होगा और जो यह फैला रहे उनसे देश को detoxify करना होगा।
भारत के 'लम्पट भोग्यो गर्लफ्रैंड' वाले युवाओं को 'वीर भोग्यो वसुंधरा' का अर्थ आत्मसात कराना होगा। हस्तमैथुन द्वारा अपने अपने वास्तविक धन को बाथरूम में बहाने वाले निस्तेज शक्तिहीनों को संयम की शक्ति बतानी होगी।
भारत का बेस्ट ब्रेन जो आज कच्चा बादाम पर नाच नाच कर नकली लोकेषणा का शिकार हो रहा है, कड़े संघर्ष को उसके जीवन का अंग बनाना पड़ेगा।
और ये सब स्वेच्छा से हो, इसे अपनाने की इच्छा उतपन्न की जाय इसे ही स्वअनुशाषन कहते हैं। जबरदस्ती से नहीं, जबरदस्ती से विरोध उतपन्न होगा। इसलिये हमने कई बार कहा है, बिना गुरू के विश्वगुरू नहीं बन पाओगे।


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