Tuesday, June 22, 2021

मुर्गा।

ख़ैर...…...मांस सेवन की बात आज करूँगा नहीं, क्योंकि मुद्दे बदल जाते हैं......और आजकल जो मुर्गा आप लोग खाते है वह शरीर के साथ क्या करता है, फिर कभी बताउँगा, क्योंकि देशी और हाइब्रिड का अंतर तो आप समझते ही हैं.......😊

.......ये उन दिनों की बात है, जब घड़ियां नहीं होती थी, समय देखने के लिए सूर्य का सहारा लिया जाता था...........😊

आज भी ये विधि सास्वत है, कि यदि समय देखना हो तो सूर्य प्रकाश में दिशा के सापेक्ष पृथ्वी पर एक गोल घेरा बनाकर , लकड़ी को सीधी खड़ी कर दें, जिस और उसकी छाया गिरेगी ,वह एक दम सही समय बताएगी.......😊

.......पर आजकल तो लोग AM और PM में खोए है, पूर्वान्ह और अपराह्न का अर्थ तक नही ज्ञात है.…..😢

......वेदों में लिखा गया कि ब्रम्ह मुहर्त में जागना चाहिए, लेकिन उसके लिए आपको 5 बजे भोजन करना एवं 7 बजे तक शयन कक्ष में जाकर सोना ही पड़ेगा, 11-12 बजे सोने वाला इंसान क्या ब्रम्ह मुहरर्त में जाग सकता है........🤔

🐓.....सदियों से गांव में मुर्गा पालन का नियम रहा है, लोग पालन से कब भोजन की तरफ चले गए पता ही न चला...😢

.......बांग देने की जो कला मुर्गे के पास है किसी अन्य के पास नही, इसलिए प्रकृति में प्रत्येक जीव का अपना स्थान है.......

🐓......मुर्गे सुबह होने की पहली रोशनी में ही बांग देना शुरू कर देते हैं, क्योंकि वह हल्की रोशनी में ही समय का सही अंदाजा लगा लेते है, और अपनी बांग से यह बताते है कि सूर्य उदय होने वाला है......😊

.......मुर्गों का व्यवहार उनकी बायलोजिकल घड़ी, अर्थात सरकेसियन रिदम से ऑपरेट होता है, और मुर्गा स्वयं अपनी बांग अर्थात कु कुड कु.....नही सुन सकता........😊

😊.........यह एक जैविक क्रिया है, और ये तो पता ही होगा कि पौधों में भी बायलोजिकल घड़ी होती है, पता होगा कहाँ से , ज्ञान लेने का समय जो नहीं......🤣🤣

🐓.........पूर्व काल मे लोग ब्रम्ह मुहरर्त में जागने के लिए घर घर मे मुर्गा पालन करते थे, ये उनकी ईस्वर की बनाई हुई घड़ी थी, जो आजतक कभी बन्द नही हुई...........🙏

#भारतकोसमझें.........🙏

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