आप बहुत सारे मित्रो ने कश्मीर के "हजरत बल" दरगाह का नाम सुना ही होगा.
ये दरगाह इसीलिए फेमस है क्योंकि इस दरगाह की यह मान्यता है कि यहाँ पिस्लाम के पैगम्बर हजरत मोहम्मद की दाढ़ी का एक बाल रखा हुआ है.
मूतलमानों के अनुसार पैगम्बर के खानदान के किसी व्यक्ति द्वारा इनका बाल पहले दक्षिण भारत (कर्नाटक) लाया गया, फिर इसे औरंगजेब के हाथों होते हुये हजरत बल दरगाह तक पहुँचाया गया.
खैर, इस बाल के बारें मे एक और सच्ची घटना जुड़ी है.
सत्तर के दशक मे 26 दिसम्बर सन् 1963 को न जाने कैसे वो नबी का बाल चोरी हो गया.
अचानक पूरे देश मे यह खबर आग की तरह फैल गयी, तथा कुछ ही देर मे इसकी पुष्टि हो गयी कि हुजूर का बाल गायब हो गया है.
फिर क्या था.... मूतलमान सड़कों पर आ गये और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) मे दंगे शुरू हो गये.
मुसरिम समुदाय के कुछ लोगो ने हिन्दुओं की मन्दिर जला दी और तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नन्दा ने फरवरी, 1964 मे बताया था कि उस दंगे मे 29 हिन्दू मारे भी गये थे (असली संख्या का अनुमान आप स्वयं लगाएं)
खैर, बाल गायब होने और मुजरिमों के आक्रोश से निहारु की सरकार हिल गयी.
निहारु ने तुरन्त ही उस समय के खुफिया चीफ बीएन मलिक और लालबहादुर शास्त्री को बाल ढ़ूढ़ने के लिये कश्मीर भेजा.
करीब नौ दिन तक पूरा कश्मीर सड़कों पर रहा..
अचानक दसवें दिन 4 जनवरी को कश्मीर के प्रधानमत्री शमशुद्दीन ने घोषणा किया कि आज हमारे लिये ईद जैसा खुशी का दिन है क्योंकि हुजूर का बाल खोज लिया गया है.
कश्मीर के मुल्ले खुशी से झूमने लगे, मिठाइयाँ बंटने लगी...
पर एक समस्या यह थी कि ये बात कैसे मान ली जाये कि खोजा गया बाल हुजूर का ही है.
खैर, एक जाने-माने अरबी मौलवी को पहचान के लिये बुलाया गया.
उस मौलाना ने पहले तो कुछ देर तक उस बाल को बड़ी गौर से देखा, फिर चहककर बोला...
माशाल्लाह्ह... ये रसूल-ए-पाक की दाढ़ी का वही मुकद्दस बाल है.
इतना सुनते ही वहाँ खड़े तमाम मुल्ले 'अल्लाह-हू-अकबर' के नारे लगाने लगे.
तो भाई.... प्रशंसा करनी पड़ेगी उस मौलाना के पारखी नजर की...
जो इंसान साढ़े तेरह सौ साल पहले दुनिया छोड़ चुके थे मौलवी ने उनकी दाढ़ी का एक बाल तक पहचान लिया.
खैर, इस तरह जैसे-तैसे करके देश पर से एक कठिन विपदा टल गयी.
लेकिन.... जरा विचार करो कि जो समाज एक दाढ़ी के बाल के लिये सड़क पर उतर सकता है तथा दंगे कर सकता है, क्या उससे किसी बड़ी सहिष्णुता की उम्मीद की जा सकती है ?
दूसरी बात ये है कि.... बाल खोजने मे एक धर्मनिरपेक्ष देश की अवधारणा तार-तार हो गयी और देश के महान नेता शास्त्री जी, तथा खुफिया विभाग के प्रमुख के साथ पूरा सरकारी तंत्र एक इंसान के दाढ़ी का बाल ढ़ूढ़ने मे लगा दिया गया.
इससे बड़ा और क्या दुर्भाग्य होगा इस देश का ?
तीसरी बात कि....आज अगर हाथी भी गायब हो जाये तो मिलना मुश्किल होता है...
फिर, भला एक दाढ़ी का बाल कैसे खोज लिया गया और इसका क्या प्रमाण था कि जो बाल लाया गया वह रसूल की दाढ़ी का ही था ?
चौथी बात कि पिस्लाम मे मूर्तिपूजा तो हराम है...
पर, कश्मीरी मूतलमान मोहम्मद के बाल के आगे सजदा करते हैं..
क्या ये बुत-परस्ती नहीं हुआ ?
वास्तव में.... मुसरिम समाज अपने मत के प्रतीकों और मजहब की मान्यताओं से कोई समझौता करने को तैयार नही है...
देश बचे या जले...
पर इन्हें तो पिस्लाम सलामत चाहिये.
इस बाल वाली घटना ने कम से कम यह प्रमाणित कर ही दिया है.
आज भी इस बाल की सुरक्षा में भारत के करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं और इस बाल को पूजने वाले लोग जिन्होंने सदा अपने मजहब को बचाने के चक्कर में राष्ट्र का नुकसान ही किया है.
तथा, वे इस दरगाह के अंदर बैठकर राष्ट्रविरोधी कार्यों को अंजाम देते हैं.
इसीलिए, इनसे निपटने के लिए उन्हीं की तरह आपको आक्रामक और असहिष्णु बनना होगा.
इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है.
जय महाकाल...!!!
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