Monday, February 15, 2021

कैसे बचाया हजारों दलितों को मुसलमान बनने से।

बात प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की हैं ।

रियासत बहावलपुर के एक ग्राम में मुसलमानों का एक भारी जलसा हुआ,उत्सव की समाप्ति पर एक मौलाना ने घोषणा की कि कल दस बजे जामाँ मस्जिद में दलित कहलानेवालों को मुसलमान बनाया जाएगा,अतः सब मुसलमान नियत समय पर मस्जिद में पहुँच जाएं ।।

इस घोषणा के होते ही एक युवक ने सभा के संचालकों से विनती की कि वह इसी विषय में पांच मिनट के लिए अपने विचार रखना चाहता हैं  ।।

वह युवक स्टेज पर आया और कहा कि आज के इस भाषण को सुनकर मैं इस परिणाम पर पहुंचा हूँ कि कल कुछ भाई मुसलमान बनेंगे ।।

मेरा निवेदन हैं कि कल ठीक दस बजे मेरा एक भाषण होगा,वह वक्ता महोदय,आप सब भाई तथा हमारे वे भाई जो मुसलमान बनने की सोच रहे हैं,पहले मेरा भाषण सुन लें फिर जिसका जो जी चाहे सो करे,इतनी - सी बात कहकर वह युवक मंच से नीचे उतर आया ।।

अगले दिन उस युवक ने "सार्वभौमिक धर्म" के विषय पर एक व्याख्यान में कुरान,इन्जील,गुरुग्रंथ साहब आदि के प्रमाणों की झड़ी लगा दी,युक्तियों व प्रमाणों को सुन-सुनकर मुसलमान भी बड़े प्रभावित हुए ।।

इसका परिणाम यह हुआ कि एक भी दलित भाई मुसलमान न बना पर मुसलमानों ने उस युवक पर हमला जरूर किया परन्तु जैसे तैसे उसे वहां से निकाल लिया गया ।।

जानते हो यह धर्म - दीवाना कौंन था,कौंन था वह विद्वान जिसने अपने भाइयों को बचाने के लिए अपनी जान तक दे दी थी ?

वह थे वैदिक विद्वान पण्डित चमूपति जी एम ए जिन्होंने चौदहवीं का चांद और रंगीला रसूल जैसी पुस्तकें लिखी थी

क्रांतिकारी कलम के सिपाही महान् आर्य समाजी
पंडित चमुपति जी की जयंती पर कोटिः कोटिः नमन्

जय आर्य जय आर्यावर्त्त

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