जी हाँ ! कोई इस शीर्षक का बुरा न माने । ये सत्य है कि बिना स्वाध्याय किए हिन्दू अपने धर्म को अच्छे से जान नहीं सकता और न जानने के कारण बाहर से तन हिन्दू और खाली मन, विचारहीनता के कारण हिन्दू एक कागज का शेर ही कहा जा सकता है । हिन्दू समाज की एकता और अखंडता की बातें बहुत समय से की जा रही हैं । लेकिन वैचारिक रूप से निर्बल हिन्दू खंडित ही रहेगा और कभी एक नहीं हो सकता । इसलिये हिन्दू समाज को विचारों से सबल बनने के लिये स्वाध्यायशील बनना ही होगा । अपने धर्म की मूल जानकारी के अभाव में ही हिन्दू समाज का दिन ब दिन पतन होता आ रहा है । बहुत सी विधर्मियों की संस्थाएँ हिन्दु युवाओं को इनकी इसी अज्ञानता के कारण ही निशाना बनाकर धर्म परिवर्तन का गंदा खेल खेलती आ रही हैं । ज़ाकिर नायक जैसे वहाबी इस्लाम प्रचारक ने हिन्दुओं की इसी अज्ञानता को भांपते हुए हज़ारों की संख्या में हिन्दु लड़कों और लड़कियों को वहाबी इस्लाम में शामिल किया । बैन्नी हिन नामक गोरे ईसाई प्रचारक ने दलित हिन्दुओं की धार्मिक अज्ञानता का भरपूर लाभ उठाया और लगभग २० लाख से ऊपर लोगों को ईसाई बनाया । ऐसे ही बहुत सी वामपंथी संस्थाएँ हिन्दु युवाओं को भोगवादी बनाकर कालेजों में नास्तिक बनाने पर तुली हुई हैं ।
ये सब इसलिये हो रहा है क्योंकि हिन्दू समाज में धार्मिक साक्षरता की भयंकर कमी है । हिन्दू परिवार अपने मूल धर्म की जानकारी से रहित हैं जिस कारण भारत में विदेशी और देशी भारत विरोधी संस्थाएँ हिन्दुओं को मानसिक रूप से और निर्बल बनाकर उनमें अलगाववाद के बीज बोकर भारत को खंड खंड करने के लिए उतारू हैं ।
त्तैतरीयारण्यक शिक्षावल्ली ७:११ में लिखा है :-
"स्वाध्यायान्मा प्रमदः स्वाध्यायप्रवचनीयाभ्यां न प्रमदितव्यम्" ( हे शिष्य ! तू स्वाध्याय में कभी प्रमाद न करना, स्वाध्याय और प्रवचन नित्य प्रति करते रहना )
परन्तु हमारे बहुत से मित्र हो सकता है स्वाध्याय करने का अर्थ समाचार पत्र, रागीनि, अश्लील साहित्य आदि का पढ़ना मान बैठें । तो उनको बता दें कि स्वाध्याय मे केवल विचारों को पोषण देने वाले ऋषियों के आर्ष ग्रंथों वेद, दर्शन, उपनिषद्, मनुस्मृति आदि का ही पढ़ना होता है । जिनको पढ़कर ही हम अपने धर्म को जानकर पूर्ण हो सकते हैं । क्योंकि वैदिक आर्ष ग्रंथों से इतर विचरों को पवित्र करने का कोई दूसरा कोई साधन नहीं हो सकता है । इसलिये स्वाध्याय तो अवश्य ही करना चाहिए ।
ऐसे ही कई और उदाहरण हमारे आर्य प्रचारकों के हैं जिनसे ये समझा जा सकता है कि स्वाध्यायशील आर्यों ने बढ़चढ़कर धर्मरक्षा में भाग लिया और विचारहीनता के कारण धर्मांतरित हो रहे हिन्दुओं को धर्मभ्रष्ट होने से रोका और उनको वेद मार्ग पर डाला । अब भी एक स्वाध्यायशील और विचारशील आर्य अपने आसपास के बड़े क्षेत्र में रह रहे हिन्दू समाज पर व्यापक प्रभाव डालता है और उनका धर्मपरिवर्तन होने से उन्हें रोक लेता है।
धर्म ग्रंथों के स्वाध्याय का परिणाम
क्या आपने कभी दाराशिकोह का नाम सुना है? शाहजहां का बड़ा बेटा और औरंगजेब का बड़ा भाई। उसने उपनिषदों का फारसी मे भाषान्तर किया है। उसने भूमिका मे लिखा है कि मैंने अरबी आदि अनेक भाषाएँ पढ़ी परंतु जो शान्ति संस्कृत पढ़ कर मिली वह कहीं नहीं मिली।
मशहूर एक्शन मूवी सीरीज x-मैन फेम हॉलीवुड स्टार ह्यू जैकमैन इन दिनों हिन्दू धर्म को पूरी तरह फॉलो कर रहे हैं। वे ईसाई होने के बावजूद चर्च या बाइबिल की बजाय हिन्दू धर्म ग्रन्थ भगवद्गीता व् उपनिषद में शांति का मार्ग खोज रहे हैं।
खबर अनुसार सनातन धर्म से प्रभावित ह्यू जैकमैन का यहाँ तक कहना है कि – ” मुझे मेरे सवालों के जवाब चर्च नहीं गीता, उपनिषदों में मिले। “
एक अंग्रेजी अख़बार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा – ” मुझे चर्च में ले जाया गया था और मेरे दिमाग में उठे प्रश्न मुझे परेशान करने लगे – तब मुझे कुछ ही जवाब मिले – मगर जैसे ही मैंने वैदिक विचारों, ग्रन्थों और तथ्यों को खोजा तो मुझे सब जवाब मिल गये और मैं पूरी तरह संतुष्ट हो पाया। ”
उन्होंने इस दौरान बताया कि वो हिन्दू आदि गुरु शन्कराचार्य व् महेश योगी से काफी प्रभावित हैं। वे बताते हैं कि जब से उन्होंने इन दोनों को पढना शुरू किया, उन्हें सनातन धर्म ग्रन्थों से लगाव होता चला गया।
इसके बाद उन्होंने भगवद्गीता और उपनिषद को पढना शुरू किया, जिनके लिए वो कहते हैं कि उन्हें इन दोनों में अपने जीवन के सभी प्रश्नों के जवाब मिल गये।
” I naturally sort of end up flowing towards that Vedic sort of tradition… I find it fits with me and my sensibilities. I used to question so much. I was brought up in a church and I fried my brains questioning, it felt quite limited – and as soon as I discovered more about Vedic ideas and philosophies and concepts, it felt right to me, it just felt natural.”
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