Tuesday, August 18, 2020

शुभ जन्माष्टमी।

जन्म से पूर्व ही मृत्यु की भविष्यवाणी हो चुकी थी काली अंधकारमय भयंकर वर्षा की अर्धरात्रि को मथुरा के कारागृह में भगवान श्री नारायण अपने सप्तम अवतार श्री कृष्ण के रूप में प्रकट होते है ....

ऐसा दुर्भल संयोग भला इतिहास में कहां वर्णित होगा...

बालरूप श्रीकृष्ण को उनके पिता वासुदेव एक सुप में रखकर प्रलयकारी उफनती यमुना जी के भीतर से लेकर ग़ोकुल की और चल पड़ें है यमुनाजी मानो और विकराल हो उठी हो यह विकरालता वस्तुत यमुनाजी की व्याकुलता है जो अपनी उफ़नती लहरों से प्रभु के चरणों की रज लेना चाहती है लेकिन एक भयभीत पिता बारम्बार अपने पुत्र को उन लहरों से ऊपर करता रहता है अंतः यमुनाजी अपने प्रयास में सफल होती है बालरूप के चरणों को छूकर शांत होते हुए वासुदेव जी के चरणों तक आ जाती है...

बालरूप को ग़ोकुल में माता यशोदा व नंदबाबा को सौपकर एक नवजात कन्या को लेकर वासुदेव पुनः मथुरा के कारागृह में पहुँच जाते है...

ग़ोकुल में नंदबाबा के आंगन में बालकृष्ण की छठी का उत्सव है और कंस द्वारा प्रायोजित पूतना एक स्त्री के रूप में पहुँच कर बालकृष्ण को अपना विषैला दुग्धपान करवाती है प्रभु उसका विष सींचते है और उसे उसके शरीर से मुक्त कर देते है...

दिन व्यतीत हो रहें है हर तिमाही में एक से एक बढ़कर दैत्य कंस भेज रहा है प्रभु सबको मुक्त कर रहें है...

मात्र 13 वर्ष में कंस के अधीन सभी मायावी दैत्य एक के बाद एक श्रीकृष्ण व बलराम द्वारा मुक्त कर दिए जातें है अब कंस एक ओर चाल चलता है वो अपने पिता विश्वसनीय सेवक अक्रुरजी जो गौकुल भेजता है ताकि श्रीकृष्ण को मथुरा लाया जा सकें...

सप्तद्वार से रक्षित मथुरा के प्रथम द्वार पर मदमस्त हाथी ओर राजदरबार के सबसे बड़े पहलवानों को दोनो भाई यूँ ही काबू करते है जैसे एक बालक की हंसी से सब मंत्रमुग्ध हो जाते है फिर एक प्रहार कंस की छाती होता है और वो भी परलोक गमन करता है...

लेकिन काल तो जन्म से पूर्व ही श्रीकृष्ण के पीछे था उसे समुख आने का साहस कभी ना हुआ...

लीलाधर लीलाओं को रचते है संदीपनी ऋषि के गुरुकुल में स्वम् भगवान परसुराम आकर उन्हें उनका सुरदर्शन चक्र देकर अन्य आततायी राजाओं के वध के लिए निवेदन करते है...

एक के बाद एक महाबलियों को युद्ध में उनके शरीर से मुक्त करते हुए प्रभु श्रीकृष्ण आगे बड़ते है ऐसे ही एक समय में जरासंघ से युद्ध करते समय वो रण छोड़कर यह भी बताते है कि मैं मात्र मृत्यु ही नही हूँ मैं इससे दूर भी रह सकता हूँ...

उधर हस्तिनापुर में राजतंत्र एक अधर्म पालक दुर्योधन के अधीन होने जा रहा है पांडवों से उनका अधिकार छीना जा रहा है राजदरबार में बैठे महारथियों के मौन से इस अमर्यादित कार्य को ओर बल मिल रहा मानो शेष दैत्य अब मात्र कौरवों के पक्ष में आकर खड़े हो गए है....

मैं काल हूं कहते हुए प्रभु श्रीकृष्ण अब महाभारत के युद्ध में शस्त्रहीन होकर पांडवों के पक्ष में एक सारथी बन धर्म के उत्थान को बैठ चुके है...

युद्ध आरम्भ होता है तो जो अधर्म को मौन बनकर देख रहें थे प्रथम उन्हें ही काल स्वरूप श्रीकृष्ण अर्जुन के हाथों मुक्ति दिलवाते है फिर अधर्मियों के वध को पूर्ण करते हुए युद्ध का समापन करते है...

अपने पुत्रों को खो चुकी शोक सन्ताप से रुदन करती गांधारी इस युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी मानते हुए अपने पुत्रों की भांति उनके वंश के नाश का श्राफ देती है तो वो गिरधर उसे स्वीकार करते है ....

काल अभी भी प्रतीक्षा करता है लेकिन उसका अब साहस ही नही की वो वृक्ष के नीचे विश्राम करते द्वारकाधीश के समुख जा सकें वो एक युक्ति को अपनाता है एक शिकारी को मायाजाल में युक्त कर उसे प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों को एक हिरण के सींग में भ्रमित करता है...

दयासागर योगिराज काल की योजना को पूर्ण करते है और अपने परमधाम चले जाते है ...

श्याम ने सदैव काल से युद्ध किया उन्हें चूड़ी बेचने का समय कब मिला...

13 वर्ष का बालक युद्धरत रहा उसने महारास भी रचाया लेकिन वहां भी उनकी योगमाया से ही जग भ्रमित रहा...

नाती-पोते वाला वो सुदेही श्रीकृष्ण युद्धरत रहा भला उसे कब समय मिला 16 हजार रानियों के साथ निवास का...

कपट आपके भीतर है इसलिए महादेव शिव को गंजेड़ी बना देते हो...

वासना आपके भीतर है इसलिए श्रीकृष्ण को मात्र रसिया बना देते हो...

प्रभु श्रीकृष्ण सा अद्वितीय, अदभुत, अकल्पनीय, अविस्मरणीय, जीवन कोई नही एक पुरुष के सभी आयामो को जीवंत करते इस चरित्र की महिमा को बताया नही जा सकता है लेकिन आप अपने अपने विवेक के आधार पर निर्धारण करने को स्वतंत्र है यह वोही छंद है जो गीताजी के उपदेश के अंत में योगिराज श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा ....

#भादो_माह_कृष्णपक्ष_अष्ठमी_द्वापरयुग 
#शुभ_जन्माष्टमी
#जै_श्रीकृष्ण

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