Monday, April 6, 2020

अमर बलिदानी राजा नाहर सिहं जी।

1857 क्रांति के सिरमौर ,अमर बलिदानी राजा नाहर सिहं जी की जयंती पर इस महान क्रांतिकारी योद्धा को शत्-शत् नमन् !!

#हुतात्मा_राजा_नाहर_सिंह_की_गौरवगाथा  

#जन्म_व_बचपन
राजा नाहर सिंह का जन्म 6 अप्रैल 1821 को बल्लभगढ नरेश राजा रामसिंह के घर हुआ था।वे  महान यौद्धा राजा बलराम सिंह की सातवीं पीढ़ी में पैदा हुए थे। उनकी माता का नाम बसन्त कौर था। उनके माता पिता बहुत ही धार्मिक थे।
उनके छोटे भाई का नाम रणजीत सिंह था। जो बाद में अपने नाना की उत्तर प्रदेश में साहनपुर की कुचेसर रियासत के राजा हुए।

बालक नाहर सिंह का जन्म गोगा जी की पूजा के बाद हुआ था इसलिए प्रजा उन्हें गोगा जी का अवतार मानती थी।

दस वर्ष की अवस्था तक राजा नाहर सिंह ने शास्त्रों का काफी अध्ययन कर लिया था।उन्हे रामायण के लक्ष्मण व महाभारत के अर्जुन बहुत प्रिय पात्र लगते थे।
नाहर सिंह को राज पाठशाला में पण्डित कुलकर्णी जी द्वारा शिक्षा दी गयी थी।
15 वर्ष की उम्र पूरी करते करते नाहर सिंह शस्त्र विद्या में निपुण हो गए थे।सेनापति जोधा सिंह ने उन्हें घुड़सवारी, तीरंदाजी, तैराकी, भाला, तलवार आदि की शिक्षा दी।
राजा नाहर सिंह सुंदर व फुर्तीला नौजवान था।उनकी बड़ी बड़ी आंखे व चौड़े कंधे थे।और वह पारंपरिक भारतीय पगड़ी पहनता था जिस पर हीरे जवाहरात भी जड़े रहते थे और शानदार मूंछे रखते थे।

#कैसे_पड़ा_नाहर_सिंह_नाम

राजा साहब के बचपन का नाम #नर_सिंह था।

एक बार जब वे अपने अंगरक्षकों के साथ शिकार खेलने गये थे तो एक शेर ने उन पर हमला कर दिया था।वह आदमखोर शेर था जिसके कारण कई दुर्घटनाएं घट चुकी है।
काफी दाव पेंच खेलने के बाद युवराज ने शेर को मार गिराया।

लेकिन इस खतरनाक प्रयास में इनके एक अंगरक्षक वीर हरचंद गुर्जर शेर से लड़ते हुए अपने प्राण गंवा बैठे।

तब उनकी माता बसन्त कौर ने उनका नाम नर सिंह से नाहर सिंह रख दिया।
इस समय राजा नाहर सिंह जी की आयु मात्र 15 से 16 वर्ष थी।

और उस स्थान पर वीर हरचंद के नाम पर गांव  हरचंदपुर बसा दिया जो आज भी बल्लभगढ से सोहना जाने वाले मार्ग पर पड़ता है।

#राज_तिलक
नाहर सिंह जी की राह आसान नहीं रही जब वे 9 साल के थे तब ही 1829 में उनके पिता राजा रामसिंह की मृत्यु हो गयी थी।
उसके बाद उनकी उम्र कम होने के कारण उनके मामा नवल किशोर जी ने संभाला।
1835 में 15 साल की उम्र में उनकी शादी सिख जाट राजघराने की राजकुमारी रघुबीर कौर से हुई थी।

1836 में नवल किशोर ने उनकी अल्पायु का फायदा उठाकर उनकी मोहर के साथ मनमानी शुरू कर दी।मामा के कुप्रबन्धो से बहुत सा पैसा बर्बाद हो गया था। नाहर सिंह ने पैनी नजर रखनी शुरू कर दी वह बहुत सा काम खुद सम्भालना शुरू कर दिया।
20 जनवरी 1839 को बसन्त पंचमी के दिन 18 वर्ष की आयु में उन्होंने खुद राज्य की बागडोर सम्भाल ली। पण्डित नारायण सिंह और गुरु पण्डित कुलकर्णी ने उनका विधिपूर्वक राज तिलक किया।

#बहादुर_शाह_जफर_पर_राजा_नाहर_सिंह_का_गुस्सा-

उनके खजाने में उनके मुख्य अधिकारियों ने भ्रस्टाचार किया व 11 लाख 25 हजार का गबन कर दिया जिसमे से अकेले हकीम अब्दुल हक ने 10 लाख रुपये हड़प लिए थे।
जब तक नाहर सिंह को यह पता चला तो उससे पहले ही वे अधिकारी दिल्ली भाग गए थे।

राजा नाहर सिंह के खजाने में गड़बड़ करने वालो को मुगल शासक ने शरण दी। और बल्लभगढ दिल्ली के बीच के व्यापार मार्ग को बन्द करवा दिया।

इससे नाहर सिंह बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने गढ़ गंगा के मेले के दिन मुगल शासक के खिलाफ विद्रोह करने का निश्चय कर लिया था।
लेकिन उनके राज पुरोहित पण्डित नारायण सिंह व अन्य अधिकारियों ने उन्हें समझाया कि खजाने में पैसा कम है ऊपर से अंग्रेज भी इसी ताक में है तो उन्हें संयम रखना चाहिए।
फिर उन्होंने अपने राज्य की प्रगति पर ध्यान दिया व उसे समृद्ध बनाया।

#क्रांति_की_शुरुआत व जफर का साथ

1856 में देश मे विद्रोह के हालात बनने लगे और उन्होंने भी क्रांति करने का फैसला किया।
उधर अंग्रेजो के खतरे के कारण बहादुर शाह जफर की अखड़ भी ढीली पड़ गयी थी इसलिए उसे नाहर सिंह बहुत प्यारा लगने लगा था।

नाहर सिंह ने भी सोचा कि देश के लिए फिलहाल दुश्मन पालना ठीक नहीं होगा इसलिए उन्होंने बहादुरशाह जफर का बढ़ा हुआ हाथ थाम लिया। एक मुसलमान पर विश्वास करने का उनका यह निर्णय उनके जीवन की गलती सिद्ध हुआ।

#1857_की_क्रांति_को_जगाने_में_नाहर_सिंह_जी_का_योगदान-
नाहर सिंह ने बल्लभगढ के शिव मंदिर में कसम खाई थी कि वे अपनी अंतिम सांस तक अपने देश के दुश्मन अंग्रेजों से लड़ेंगे।नाहर सिंह ने अपनी रियासत के सभी लोगो मे क्रांति की भावना जगा दी।

उन्होंने अपने राज्य के अलीपुर गांव में पंचायत करके अंग्रेजो के बल्लभगढ में बिना इजाजत घुसने पर प्रतिबंध लगवा दिया था।

जब 1857 में क्रांतिकारियों की बैठक हुई थी तो उसमे राजा नाहर सिंह वहां मौजूद थे।

उन्होंने आस पास के राजा व नवाबो को क्रांति से जोड़ा व उन्हें अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए उकसाया।

बहादुर शाह जफर ने उन्हें दिल्ली की सुरक्षा की जिम्मेदारी देकर क्रांति का सिरमौर बनाया था।

#क्रांतिकारियों_की_मदद
उन्होंने अपने राज्य में ऐलान करवा दिया था कि कोई भी अंग्रेज विरोधी सेना या क्रांतिकारी आये तो उनसे किसी भी समान के पैसे न लिए जाए उसका खर्चा वह खुद दे देंगे।

उन्होंने हर तरह की क्रांति सेना को समर्थन व हथियार से सहायता की व भोजन का प्रबंध कराया।
मंगल पांडे के गोली चलाने के बाद तिथि पूर्व ही क्रांति शुरू हो गयी नाहर सिंह का राज्य क्रांतिकारियों व अंग्रेजो से बचने के लिए शरण का गढ़ बन गया था।

#नाहर_सिंह_की_बेटी_की_शादी
नाहर सिंह की बेटी की शादी 17 मई को निश्चित की गई थी।
लेकिन इस स्थिति में या तो शादी हो सकती थी या क्रांति।

इसलिए उन्होंने ऐसे माहौल में इस प्रोग्राम को भव्य न बनाकर उन्होंने राजकुमार की सोने की तलवार मंगवाकर उससे राजकुमारी की शादी की रस्म को पूरा कर दिया।

#मंगल_पांडे_की_बटालियन_के_सैनिको_को_शरण 

मंगल पांडे की बटालियन में ज्यादातर ब्राह्मण थे व कुछ अन्य जातियों के भी थे। उन सबने मंगल पांडे के पकड़े जाने पर विद्रोह स्वरूप अंग्रेजी सेना छोड़ दी जिससे अंग्रेज उन्हें ढूंढ ढूंढ कर मारने लगे।

तो वे सब नाहर सिंह की शरण मे आ गए नाहर सिंह ने उन्हें अलग अलग गांवों में बसाया। हर गांव में 2-2, 4-4 परिवार बसाए ताकि अंग्रेजो का हमला हो तो भी सब एक साथ उनके हाथ न लगे।
उनमे से क्रान्तिमय युवकों ने नाहर सिंह की सेना जॉइन कर ली।

#अंग्रेजों_से_युद्ध_व_दिल्ली_बल्लभगढ_की_सुरक्षा

फिर दिल्ली में क्रांतिकारियों का विद्रोह हुआ जिसम नाहर सिंह अपनी सेना समेत कूद पड़े व अंग्रेजो को काट फेंका।

इसके बाद उन्होंने पलवल व फतेहपुर से भी अंग्रेजो को खदेड़कर वहां अपना अधिकार जमा लिया।
हिंडन के युद्ध मे भी नाहर सिंह ने अपनी सेना भेजी थी।

उन्होंने पलवल फतेहपुर पाली कस्बों में थाने खोल लिए व दिल्ली से मथुरा तक गस्त करने लगे।
इस समय नाहर सिंह ने अंग्रेजो तक आने वाले गोला बारूद व युद्ध सामग्री आदि का मटियामेट करते रहे।

फिर अंग्रेजो ने बल्लभगढ पर आक्रमण कर दिया बल्लभगढ के समीप ही इस युद्ध मे इतने अंग्रेज मारे गये थे कि वहां स्थित एक तालाब का रंग अंग्रेजो के खून से लाल हो गया था। और उसका नाम लाल तालाब पड़ गया था।

फिर दिल्ली में उनकी जरूरत महसूस हुई जफर ने उन्हें प्रार्थना करके बुलाया।इस बीच बल्लभगढ में सैनिको की कमान सेनापति गुलाब सिंह सैनी के हाथ मे रही।उन्होंने भी बड़ी वीरता से बल्लभगढ की अंग्रेजो से रक्षा करी।

उधर राजा नाहर सिंह दिल्ली को सम्भाले गए थे।जो भी अंग्रेज दिल्ली की तरफ बढ़ा उसे नाहर सिंह व उनके सैनिको ने चिर दिया।दिल्ली पुलिस की कमान भी उनके हाथ मे ही थी।

अंग्रेज अधिकारी लॉरेंस ने खुद कहा कि जब तक नाहर सिंह के हाथों में कमान है दिल्ली पर विजय असम्भव है।
अंग्रेजो ने नाहर सिंह को दिल्ली से भटकाने के लिए बहुत चालाकियां खेली उन्होंने बल्लभगढ पर आक्रमण कर दिया लेकिन नाहर सिंह हटे नहीं।उनकी गैर मौजूदगी में भी बल्लभगढ के वीरो ने अंग्रेजो को खदेड़ कर भगा दिया।

दिल्ली 134 दिन तक आजाद रही वह नाहर सिंह के बल पर ही थी।

अंग्रेज अधिकारी ने पत्र लिखा कि बल्लभगढ का नरेश iron gate of delhi बना खड़ा है जब तक चीन से हमे हथियार न मिल जाये तब तक इस लोहे की दीवार को तोड़ना नामुमकिन है।
और यही हुआ अंग्रेजो के पास नये आधुनिक हथियार व भारी गोला बारूद पहुंचा।

#बहादुर_शाह_जफर_की_गिरफ्तारी

हुआ भी यही 13 सितम्बर को उन्होंने दिल्ली पर आक्रमण किया कश्मीरी गेट के पास जबरदस्त युद्ध चला लेकिन नाहर सिंह ने उन्हें घुसने न दिया दूसरी और से भी अंग्रेजो ने आक्रमण किया तो कुछ अंग्रेज सैनिक दिल्ली में आ घुसे।
बहादुर शाह जफर को अपना किला छोड़कर हुमायूं के मकबरे में शरण लेनी पड़ी।
इन परिस्थितियों में नाहर सिंह ने उसे बल्लभगढ चलने को बोला लेकिन बहादुर शाह जफर ने अपने विश्वस्त इलाही बख्श की सलाह पर मना बहादुर शाह जफर कायर था और उसका विश्वस्त इलाहीबख्श अंदर ही अंदर अंग्रेजो से मिला हुआ था।
मौका देखकर अंग्रेज सेनापति हडसन ने चुपके से जफर को गिरफ्तार कर लिए।

लेकिन नाहर सिंह थोड़े समय बाद ही अपनी सेना के साथ वहां पहुंच लिया व हडसन को घेर लिया। हडसन ने खतरा भांपकर बहादुर शाह जफर को मारने की धमकी दी।

जिसके कारण नाहर सिंह को पीछे हटना पड़ा क्योंकि बूढा जफर क्रांति का मुख्य चेहरा बना हुआ था उसके मरते ही क्रांतिकारियों के हौसले पस्त हो जाता।

#बल्लभगढ_में_फिर_से_अंग्रेजों_का_रक्त_संहार

वे वापिस बल्लभगढ चले गए।यहाँ आते ही उन्होंने यहां आस पास स्थित अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर दिया व खून की नालियां बहा दी व अपना किला सुरक्षित किया।

#मुसलमानों_की_धोखेबाजी

दिल्ली को मजबूत करने के बाद अंग्रेजो ने नाहर सिंह से बदला लेनी की सोची लेकिन मुसलमानों से उन्हें पता चला था कि नाहर सिंह को सीधी लड़ाई में जितना बहुत मुश्किल है इसलिए उन्होंने बहादुरशाह जफर के विश्वस्त इलाही बख्श के मिलकर एक चाल चली। इलाही बख्श शांतिदूत बनकर अपने साथ कुछ सैनिक लेकर गया व उन्हें संदेशा दिया कि अंग्रेज बहादुरशाह जफर से सन्धि करना चाहते हैं इसलिए जफर ने कहा है कि इस महत्वपूर्ण मौके पर आपकी जरूरत है ।जफर का विश्वस्त आदमी साथ होने के कारण उन्हें शक नहीं हुआ।
और वे अपने सिर्फ 500 सैनिकों के साथ दिल्ली चल दिये।
जब वे बदरपुर से थोड़ा आगे बढ़े थे तो रास्ते मे झाड़ियों में छिपे अंग्रेज सैनिको ने पीछे से हमला कर दिया।
भयंकर युद्ध मे नाहर सिंह के सभी सैनिक बलिदान हो गए।
सब वीरता से लडते लेकिन पीछे से अचानक हमले के कारण वे तैयार न थे।
उनके साथ सिर्फ भूरा वाल्मीकि,गुलाब सिंह सैनी ही बचे थे।
जिन्हें मुसलमानों के साथ मिलकर अंग्रेजो ने धोखे से बंदी बना लिया।

#नाहर_सिंह_पर_दबाव_और_लालच देने की कोशिश

इसके बाद उन्हें मटियामहल रखा गया फिर मेटकाफ हॉउस ले जाया गया।
जब उन्हें मेटकाफ हॉउस में रखा गया था तब अंग्रेजो उन्हें अपनी तरफ मिलाने का प्रयास किया था।लेकिन स्वाभिमानी राजा ने साफ कहा था  "देश के शत्रुओं के आगे झुकना मैन सीखा नहीं।"
कुछ दिन बाद हडसन ने भी 36 वर्षीय राजा की लुभावनी छवि देखकर दयाभाव से कहा था कि नाहर सिंह जी मैं आपको फांसी से बचा सकता हूँ। थोडा से झुक जाओ।

लेकिन नाहर सिंह दोबारा भी तेजस्वी स्वर में क़हा कि गौरे मेरे देश के शत्रु हैं इसलिए मेरे शत्रु हैं।उनसे क्षमा कदापि नहीं मांग सकता।...एक नाहर सिंह के बलिदान से लाख नाहर सिंह कल फिर पैदा होंगे।

अंग्रेजो ने महाराजा फरीदकोट जो नाहर सिंह के सम्बधी थे व अंग्रेजो की तरफ से उनसे भी दबाव बनवाया लेकिन लाख प्रयत्न के बाद भी नाहर सिंह टस से मस न हुये।

#फांसी

फिर उन पर मुकदमा चला व उन्हें 2 जनवरी 1858 को फांसी की सजा सुनाई गई।

उसके बाद 9 जनवरी को दिल्ली के चांदनी चौक पर उन्हें फांसी दी गयी थी। व अपने प्रिय राजा को सुनने के लिये जनता सामने खड़ी थी।
उस समय तक नाहर सिंह का कोई पुत्र नहीं था। उनकी पत्नी गर्भवती थी।जिसने बाद में एक पुत्र को जन्म दिया था।

फांसी के समय लोग एक ही नारा लगा रहे थे-
"मथुरा से दिल्ली तक नाहर सारे तेरे लाल
चढजा फांसी पर सब भली करेंगे भगवान"

नाहर सिंह से गौरों ने अंतिम इच्छा पूछी तो उन्होंने कहा कि मैं गौरों से कुछ मांगकर अपना स्वाभिमान नहीं गिराउंगा मैं तो बस जनता से कुछ कहना चाहता हूं फिर उन्होंने जनता को कुछ सन्देश देने को कहा। दुभाषिये के ट्रांसलेट करते ही गौरों ने असमर्थता जताई। तो नाहर सिंह ने खुद ही ऊँचे स्वर में कहा "कि मेरे देशवासियों जो लौ जलाई है उसे मत बुझने देना,लाख नाहर सिंह कल फिर पैदा हो जाएंगे"

इसके बाद हर तरफ से जय नाहर सिंह जय राजा नाहर सिंह की आवाज आने लगी।
फिर उन्होंने खुशी खुशी फांसी के फंदे को चूम लिया।

उनके साथ उनके सेनापति चौधरी मोहन सिंह व उनके वीर सैनिक गुलाब सैनी भूरा वाल्मीकि व खुशाल सिंह को भी फांसी दी गयी।
इस तरह हंसते हंसते देश की खातिर एक राजा व उनके वीर सैनिको ने अपना राज प्राण सब कुछ न्यौछावर कर दिया।

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