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*प्रसिद्ध मूत्र व गुर्दा रोग विशेषज्ञ डॉ निशान्त गुप्ता 'आयुष' द्वारा जानिये कठिन गुर्दा व मूत्र रोगों पर कुछ ऐसे तथ्य-रहस्य जिनके कारण आज तक आयुर्वेद में ही है कठिन मूत्र-गुर्दा रोगों की चिकित्सा सम्भव लेकिन इस लेख में बताये जा रहे सूक्ष्म स्तर का व्यवहारिक ज्ञान अब कुछ ही आयुर्वेदिक चिकित्सकों के पास उपलब्ध है❗❗*
➡ *गुर्दा रोग मुख्यतः शरीर की पाँच प्रकार की वायुओं में से समान, अपान व व्यान वायु के असंतुलन के कारण होता है जिन्हें मापकर संतुलित करने की कोई विधि आधुनिक चिकित्सा में आज तक है ही नहीँ,जबकि दक्ष आयुर्वेदिक चिकित्सक अष्ट-विधि परीक्षण द्वारा इस असंतुलन का सटीक आंकलन कर कठिनतम गुर्दा रोगियों को अधिकतम स्तर तक सुखमय जीवन देता है।*
➡ *गुर्दा रोगों में मुख्यतः पेशाब में अधिक प्रोटीन स्राव होकर(लालामेह)रक्त में यूरिया,क्रिएटिनिन नामक विषैले पदार्थ बढ़ने लगते हैं।हर शब्द को ध्यान से पढ़ते हुए समझें कि कौन सी वायु कैसे असंतुलित होकर मूत्र व गुर्दा रोगों को जन्म देती है व उच्च रक्तचाप,उल्टी आदि जैसे लक्षण पैदा करती है।*
1⃣ *समान वायु - आमाशय व पक्वाशय में निवास कर भोजन के पचने से पैदा हुए रसों को अलग-अलग करती है व इसके असंतुलन से ये रस विषाक्त होकर पृथक नहीँ होते व साधारण मात्रा से अधिक यूरिया-क्रिएटिनिन के रूप में रक्त में ही रहने लगते हैं।*
2⃣ *व्यान वायु -इन पृथक किये गए रसों आदि से पूरे शरीर में पहुँचकर अँगों का पोषण करती है और फैलाने,सिकोड़ने,प्रेशर बनाने जैसी क्रियाएँ शरीर के सभी अंगों से कराती है।यह शरीर के हर अंग में लेकिन मुख्यतः हृदय में निवास करती है इसलिये इसके असंतुलन से रक्त चाप भी बढा हुआ रहने लगता है व इसी के असंतुलन से गुर्दे की अति सूक्ष्म शिराएँ(नेफ्रॉन) व रक्तचाप संतुलित करने वाला अंतः स्रावी(हॉर्मोन) - इराइथ्रोपोएटिन थिथिल पड़ जाता है जिसके कारण⬇⬇⬇⬇*
3⃣ *अपान वायु जो बड़ी आँत में गुदा,पक्वाशय,अंडकोष,मूत्रेन्द्रिय,नाभि एवं बस्ति प्रदेश में निवास करती है असंतुलित होकर बढ़े हुए यूरिया व क्रिएटिनिन को मल-मूत्र द्वारा बाहर नहीँ फेंक पाती।यही अपान वायु असंतुलित होने पर पित्त रूपी यूरिया व क्रिएटिनिन मल को उदर क्षेत्र से ऊपर पहुँचकर उसे वमन(उल्टी)द्वारा बाहर करने की कोशिश करती है,जिस कारण गुर्दा रोगी को उल्टियाँ होना प्रमुख लक्षण है।*
♦ *इन तीन वायुओं के असंतुलन से उपापचय क्रिया बाधित होकर गुर्दा व कठिन मूत्र रोगों को जन्म देती है तो एलोपैथी चिकित्सा चूँकि इन सिद्धांतों को आज तक समझ नहीँ पायी इसलिये वह सम्बंधित बिगड़ी हुई क्रियाओं को भारी 'साइड इफ़ेक्ट' वाली एस्टेरोइड,डाइयूरेटिक्स(पेशाब बढाने के लिए) एंटी-हाइपरटेन्सिव्स(हाई बीपी के लिए),एंटी-एमेटिक्स(उल्टी के लिए)जैसी दवाओं से लगभग तीन घण्टों के लिए(प्रति खुराक)संगठित करने की कोशिश करती है व कुछ दिन बाद इनके भी फेल होने पर लगभग प्रतिदिन डायलिसिस(खर्चीला व बहुत कष्टदायक) द्वारा रक्त साफ़ करना एकमात्र विकल्प रह जाता है - पर गुर्दा इससे भी ठीक नहीँ हो सकता बल्कि धीरे-धीरे अपना बाकी बचा कार्य भी भूल जाता है जबकि एक दक्ष आयुर्वेदिक चिकित्सक इन सूक्ष्म सिद्धांतों पर क्रमबद्ध कार्य करके रोगी की अवस्थानुसार विभिन्न औषधियों व परहेज आदि का चयन कर ऐसे रोगियों को नया जीवन प्रदान करता है।*
*ईश्वर आपको स्वस्थ जीवन दे*
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*डा. निशान्त गुप्ता आयुष, बी.फ़ार्म,एम.आयु,एन.डी, पी.एच.डी(आयु),एम.डी - (पंचगव्य)*
*मूत्र व गुर्दा रोग विशेश्ग्य,गांधी चौक,शामली*
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