वनस्पति तेल का भयानक सच
आइये अब इस सच को समझे एक और ताज़ा उदाहरण से कि कैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपना काम मीडिया की मदद से आपके स्वास्थ्य से कैसे खेल सकता है. यह तभी संभव है जब सरकार का संरक्षण उसे प्राप्त हो .
90 के दशक को ज़रा याद कीजिये वह भारत जो 70 के दशक तक सिर्फ देसी घी, सरसों या मूँगफली इत्यादि तेलों मे खाना बनाता था धीरे धीरे देशी घी से हट कर सरसों के तेल पर आ गया, घी महंगा होने के कारण.
सब ठीक चल रहा था कि अचानक एक समाचार उड़ता है सरसों के तेल से ड्रॉप्सी नमक घातक और जानलेवा बीमारी होती है उसके लिए सब मीडिया और अखबार लग जाते हैं.
उसके विकल्प मे वनस्पति तेलों को बाज़ार मिल जाता है सब उसमें चल पड़ते हैं. लगभग चार से पाँच सालों के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि यह ड्रॉप्सी बीमारी सरसों के तेल में मिलावट के कारण हुई थी और सरसों का तेल ठीक है. पर इस शोध को प्रचारित नहीं किया जाता है.
फलस्वरूप वनस्पति तेल वालों का धंधा अपनी जगह चलता रहता हैं. अब आप इसको अभी के मैगी प्रकरण से जोड़ लीजिये कि जून के महीने में बन्द मैगी तमाम सबूतों के बाद 5 महीने में बाज़ार मे फिर से उतारने को तैयार है.
देश में हृदय रोग बढ़ने लगा कैंसर बढ़ने लगा परन्तु कोई शोध इन तेलों पर नहीं होती है और वातावरण और प्रदूषण को दोष दिया जाता है.
कहना चाहूँगा कि मेरे विचार से वातावरण और प्रदोषण का दोष अवश्य है पर इतना बड़ा नहीं. हम सौ सालों से अधिक समय से सरसों का तेल खा रहे हैं पर तब तो ड्रॉप्सी नहीं हुई.
अब आया समय 07.11.2015 को प्रोफेसर Martin Grootveld के अनुसार “हमे हमेशा कहा गया कि मक्खन और सरसों के तेल स्वास्थ्य के लिए वनस्पति तेलों से घातक हैं परन्तु मेरी शोध ठीक इसका उल्टा बता रही है” और पश्चिम देश इस सत्य को स्वीकार कर लेते हैं.
इधर भारत में यह समाचार आता है एक छोटी सी news सिर्फ Indian Express में आती है बाकी सब समाचार पत्र और मीडिया इस पर चुप हैं.
सरकार इस पर कोई कार्यवाही नहीं करती है. जब तक मीडिया को इस पर रिश्वत मिलती रहेगी यह समाचार दबा रहेगा देखते हैं यह समाचार कब बाहर आता है.
आपको पता लगा है सबको बताइये आप आपका परिवार अब और बीमार होने से बच जाएगा . वही पुरानी परंपरा देशी घी और तेल का प्रयोग करें और स्वस्थ्य रहें.
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