भारत देश के महान इतिहास में लाखों ऐसे वीर हुए हैं जिन्होंने देश,धर्म और जाति की सेवा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। खेद है कि स्वतंत्र भारत का इतिहास आज भी परतंत्र हैं कि उसमें गौरी और गजनी के आक्रमण के विषय में तो बताया जाता हैं मगर उसका प्रतिरोध करने वाले महान वीरों पर मौन धारण कर लिया जाता हैं। ऐसे ही महान वीरों में देश धर्म की रक्षार्थ बलिदान हुए वीर गोगा बापा एवं उनका परिवार। अरब देश से उठी मुहम्मद गजनी नामक इस्लामीक आंधी एक हाथ में तलवार तो दूसरे हाथ में कुरान लेकर सोने की चिड़िया भारत कि विस्तृत धन-सम्पदा को लूटने के लिए भारत पर चढ़ आई। ईसा की दसवीं सदी तक गांधार और बलूचिस्तान को हड़प कर सिन्ध और पंजाब को पद दलित कर यह आँधी राजपूताने के रेगिस्तान पर घुमड़ने लगी थी। गजनी का सुल्तान महमूद गजनवी भारत के सीमावर्ती छोटे-छोटे राज्यों को लूट कर करोड़ो के हीरे, जवाहरात, सोना चांदी गजनी ले जा चुका था। अब उसकी कुदृष्टि सोमनाथ मंदिर पर पड़ी। उस समय गुजरात के प्रभास पाटण में स्थित सोमनाथ महादेव मन्दिर के ऐष्वर्य और वैभव का डंका भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बज रहा था। सोमनाथ की अकूत धन संपदा को लूटने और भव्य देव मन्दिर को धराशायी करने के लिए यह विधर्मी आक्रान्ता पंजाब से होते हुए राजपूताने के उत्तर पश्चिमी रेगिस्तान में पहुंचा।
रेगिस्तान के प्रवेश द्वार पर भटनेर (गोगागढ़) का दुर्ग चौहान वंशीय धर्मवीर गोगा बापा द्वारा बनाया गया था। यहाँ नब्बे वर्षीय वृद्ध वीर गोगा बापा अपने 21 पुत्र 64 पौत्र और 125 प्रपौत्र के साथ धर्म की रक्षा के लिए रात दिन तत्पर और कटिबद्ध रहते थे। महमूद गजनवी ने छल-बल से गोगा बापा को वश में करने के लिए सिपहसालार मसूद को तिलक हज्जाम के साथ भटनेर भेजा। दूत मसूद और तिलक हज्जाम ने गोगा बापा को प्रणाम कर हीरों से भरा थाल रख कर सिर झुका कर अर्ज किया- ‘‘सुल्तान आपकी वीरता और बहादुरी के कायल हैं, इसलिए आपकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा कर आप से मदद मांग रहे हैं। उनकी दोस्ती का यह नजराना कबूल कर आप उन्हें सही सलामत गुजरात के मंदिर तक जाने का रास्ता दे।
यह सुनते ही गोगा बापा की बिजली की कड़क तलवार म्यान से निकली और अपने आसन से उठते नब्बे वर्षीय वृद्धवीर बोले – ‘‘ तो तुम्हारा अमीर इन पत्थर के टुकडों से मुझे खरीदकर मंदिर तोड़ने के लिए मार्ग मांगता है। जा कह दे उस लुटेरे से कि जब तक गोगा बापा की काया में रक्त की एक बूँद भी बाकी है तब तक उसकी फौज तो क्या परिंदा भी पर नहीं मार सकता।" इसके साथ ही उन्हौंने हीरों से भरे थाल को ठोकर मार कर फेंक दिया। मसूद और तिलक हज्जाम ने जान बचाकर भागने में ही भलाई समझी।
बात बनती न देख सुल्तान ने समंदर सी सेना को कूच करने का आदेश दिया। बवंडर की तरह उमड़ती फौज में एक लाख पैदल, और तीस हजार घुडसवार थे। हजारों लोग सेवक के रूप में साथ थे तो रेगिस्तान में पानी की कमी को देखते हुए तीस हजार ऊँट-ऊँटनियों पर पानी भरकर रखा गया था। इधर आठ सौ वीर राजपूत और तीन सौ अन्य लोग ऊँट के मुँह में जीरे के बराबर थे। इसके बावजूद गोगा बापा के अद्भुत साहस और बलिदानी तेवरों को देखते हुए सुल्तान ने उन्हे बहलाने-फुसलाने को दो बार दूत भेजा पर गोगा बापा टस से मस नहीं हुए। अंत में हार मान कर सुल्तान ने बिना युद्ध किये ही बगल से खिसकने में ही भलाई समझी।
सुलतान को बिना भिड़े ही भागता देख गोगा बापा भड़क उठे। एक भी राजपूत के जीवित रहते देश का दुश्मन अंदर आ जाये तो उसके जीवन को धिक्कार है। वीरों दुर्ग के द्वार खोलकर दुश्मन पर टूट पडो। किसी ने कहा "बापा शत्रु असंख्य है हम तो गिने चुने ही हैं।" गोगा बापा गरज उठे – "देश धर्म की रक्षा का दायित्व संख्या के हिसाब से तय होगा क्या? गोगा बापा धर्म के लिए जिया है धर्म के लिए ही मरेगा।"
केसरिया बाना सजाकर हर-हर महादेव का घोष करते राजपूत वीर यवन सैन्य पर वज्र की तरह टूट पड़े। एक-एक राजपूत वीर दस-दस दुश्मनों को यमलोक भेजकर वीरगति को प्राप्त हुआ। गोपा बापा बन्धु बांधवों सहित देश धर्म की बलिवेदी पर बलिदान हो गए। बच गए तो बापा के मात्र एक पुत्र सज्जन और एक पौत्र सामन्त जिन्हें बापा ने सुल्तान के आक्रमण की पूर्व सूचना के लिए गुजरात भेजा था। धर्म रक्षा के लिए गढ़ के वीरों के बलिदान होते ही दुर्ग पर वीर राजपूत वीरांगनाऐं सुहागिन वेष सजाकर और मंगल गान करते हुए जलती चिता पर चढ़कर बलिदान हो गई।
सामंत सिंह और सज्जन सिंह रास्ता बताने वाले दूत बनकर गजनी की सेना में शामिल हो गए। उन्होंने मुसलमानी सेना को ऐसा घुमाया कि राजस्थान की तपती रेत, गर्मी,पानी की कमी के चलते, रात में सांपों के काटने से गजनी के हज़ारों सैनिक और पशु काल के ग्रास बन गए। ये दोनों वीर राजपूत युवक भी मरुभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए मगर तब तक गजनी की आधी सेना यमलोक पहुंच चुकी थी।
धर्म रक्षक गोगा बापा का बंधु-बांधवों सहित वह बलिदान और सतीत्व की रक्षा के लिए सतियों का वह जौहर ‘यावच्चन्द्र दिवाकरौ‘ (जब तक सूरज चाँद रहेगा) इतिहास में अमर हो गया। अनेक शताब्दियाँ बीतने पर भी गोगा बापा की कीर्ति पताका गगन में उनकी यषोगाथा गा रही है। धन्य है गोगा वीर चैहान, धन्य है धर्मवीर गोगा बापा का बलिदान।
रेगिस्तान के प्रवेश द्वार पर भटनेर (गोगागढ़) का दुर्ग चौहान वंशीय धर्मवीर गोगा बापा द्वारा बनाया गया था। यहाँ नब्बे वर्षीय वृद्ध वीर गोगा बापा अपने 21 पुत्र 64 पौत्र और 125 प्रपौत्र के साथ धर्म की रक्षा के लिए रात दिन तत्पर और कटिबद्ध रहते थे। महमूद गजनवी ने छल-बल से गोगा बापा को वश में करने के लिए सिपहसालार मसूद को तिलक हज्जाम के साथ भटनेर भेजा। दूत मसूद और तिलक हज्जाम ने गोगा बापा को प्रणाम कर हीरों से भरा थाल रख कर सिर झुका कर अर्ज किया- ‘‘सुल्तान आपकी वीरता और बहादुरी के कायल हैं, इसलिए आपकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा कर आप से मदद मांग रहे हैं। उनकी दोस्ती का यह नजराना कबूल कर आप उन्हें सही सलामत गुजरात के मंदिर तक जाने का रास्ता दे।
यह सुनते ही गोगा बापा की बिजली की कड़क तलवार म्यान से निकली और अपने आसन से उठते नब्बे वर्षीय वृद्धवीर बोले – ‘‘ तो तुम्हारा अमीर इन पत्थर के टुकडों से मुझे खरीदकर मंदिर तोड़ने के लिए मार्ग मांगता है। जा कह दे उस लुटेरे से कि जब तक गोगा बापा की काया में रक्त की एक बूँद भी बाकी है तब तक उसकी फौज तो क्या परिंदा भी पर नहीं मार सकता।" इसके साथ ही उन्हौंने हीरों से भरे थाल को ठोकर मार कर फेंक दिया। मसूद और तिलक हज्जाम ने जान बचाकर भागने में ही भलाई समझी।
बात बनती न देख सुल्तान ने समंदर सी सेना को कूच करने का आदेश दिया। बवंडर की तरह उमड़ती फौज में एक लाख पैदल, और तीस हजार घुडसवार थे। हजारों लोग सेवक के रूप में साथ थे तो रेगिस्तान में पानी की कमी को देखते हुए तीस हजार ऊँट-ऊँटनियों पर पानी भरकर रखा गया था। इधर आठ सौ वीर राजपूत और तीन सौ अन्य लोग ऊँट के मुँह में जीरे के बराबर थे। इसके बावजूद गोगा बापा के अद्भुत साहस और बलिदानी तेवरों को देखते हुए सुल्तान ने उन्हे बहलाने-फुसलाने को दो बार दूत भेजा पर गोगा बापा टस से मस नहीं हुए। अंत में हार मान कर सुल्तान ने बिना युद्ध किये ही बगल से खिसकने में ही भलाई समझी।
सुलतान को बिना भिड़े ही भागता देख गोगा बापा भड़क उठे। एक भी राजपूत के जीवित रहते देश का दुश्मन अंदर आ जाये तो उसके जीवन को धिक्कार है। वीरों दुर्ग के द्वार खोलकर दुश्मन पर टूट पडो। किसी ने कहा "बापा शत्रु असंख्य है हम तो गिने चुने ही हैं।" गोगा बापा गरज उठे – "देश धर्म की रक्षा का दायित्व संख्या के हिसाब से तय होगा क्या? गोगा बापा धर्म के लिए जिया है धर्म के लिए ही मरेगा।"
केसरिया बाना सजाकर हर-हर महादेव का घोष करते राजपूत वीर यवन सैन्य पर वज्र की तरह टूट पड़े। एक-एक राजपूत वीर दस-दस दुश्मनों को यमलोक भेजकर वीरगति को प्राप्त हुआ। गोपा बापा बन्धु बांधवों सहित देश धर्म की बलिवेदी पर बलिदान हो गए। बच गए तो बापा के मात्र एक पुत्र सज्जन और एक पौत्र सामन्त जिन्हें बापा ने सुल्तान के आक्रमण की पूर्व सूचना के लिए गुजरात भेजा था। धर्म रक्षा के लिए गढ़ के वीरों के बलिदान होते ही दुर्ग पर वीर राजपूत वीरांगनाऐं सुहागिन वेष सजाकर और मंगल गान करते हुए जलती चिता पर चढ़कर बलिदान हो गई।
सामंत सिंह और सज्जन सिंह रास्ता बताने वाले दूत बनकर गजनी की सेना में शामिल हो गए। उन्होंने मुसलमानी सेना को ऐसा घुमाया कि राजस्थान की तपती रेत, गर्मी,पानी की कमी के चलते, रात में सांपों के काटने से गजनी के हज़ारों सैनिक और पशु काल के ग्रास बन गए। ये दोनों वीर राजपूत युवक भी मरुभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए मगर तब तक गजनी की आधी सेना यमलोक पहुंच चुकी थी।
धर्म रक्षक गोगा बापा का बंधु-बांधवों सहित वह बलिदान और सतीत्व की रक्षा के लिए सतियों का वह जौहर ‘यावच्चन्द्र दिवाकरौ‘ (जब तक सूरज चाँद रहेगा) इतिहास में अमर हो गया। अनेक शताब्दियाँ बीतने पर भी गोगा बापा की कीर्ति पताका गगन में उनकी यषोगाथा गा रही है। धन्य है गोगा वीर चैहान, धन्य है धर्मवीर गोगा बापा का बलिदान।
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