ये ब्लॉग/चिट्ठा मैने भारत देश के बारे में जानने और समझने के लिये बनाया हैँ ! सत्य की जय हो ! विद्या मित्रं प्रवासेषु ,भार्या मित्रं गृहेषु च | व्याधितस्यौषधं मित्रं ,धर्मो मित्रं मृतस्य च||
Monday, December 28, 2015
‘‘आर्य भारत में बाहर से आये’’
महौषधि है गौमूत्र......
Saturday, December 26, 2015
क्या कोई क्रीम गोरा बना सकती है...
प्राकृतिक उपायों के द्वारा त्वचा का रंग संवारने के तरीके-
3. दही त्वचा को अंदर से गोरा बनाता है। क्योंकि दही में प्रोबायोटिक तत्व होते हैं। इसलिए रोज दही से चेहरे की मालिश करें।
4. संतरे व नींबू के छिलकों को सुखाकर चूर्ण बना लें। और इस पाउडर को दूध में मिलाकर त्वचा पर लगाएं। इससे त्वचा में चमक आती है।
5. गर्मियों में दो बार संतरे का जूस पीने से रंग साफ होने लगता है।
6. दूध में एक चम्मच हल्दी मिलाकर पीने से खून साफ होता है।
7. आलूबुखारे और नींबू का रस निकालें और इसे उबले आलू में मिला लें और चेहरे पर मलें। इससे चेहरे का रंग साफ और मुलायम होता है।
8. थोड़े से बेसन में सेब का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से झाइयां और झुर्रियां दूर हो जाती हैं।
9. परवल को बारीक पीस लें और उसमें कच्चा दूध मिलाकर चेहरे पर अच्छे से रगड़ें इससे सांवलापन दूर हो जाता है।
10. यदि आखों के नीचे कालापन हो तो कच्चे आलू की फांके को आखों के निचे रगड़ने से काले धब्बे दूर हो जाते हैं।
11. गुलाब के फूल के पत्तों को पीसें और इसका लेप को ग्लिसरीन में मिला लें और चेहरे पर इसे मलें। एैसा करने से चेहरे का सौंदर्य दमकता है।
12. दूध में नाशपाती के गूदे को घोल लें और इसका लेप चेहरे पर रई से लगाएं। और चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें। एैसा करने से चेहरा खिलता है।
13. मलाई, शहद को माल्टा के रस में मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की रंगत बढ़ती है।
14. रात को सोने से पहले हल्दी को दही में अच्छे से फेंटे और इसे पैरों और हाथों में मलने से इनका रंग निखरता है।
15. हाथ पैरों का सौन्दर्य निखारने के लिए खट्टे फलों के गूदे को हाथ पैरों पर मलें।
16. गुलाब के रस को होंठों पर लगाने से होंठों में प्राकृतिक चमक आती है और होंठ भी नहीं फटते हैं।
दूध द्वारा चेहरे के निखार के उपाय
दूध के इस्तेमाल से आप फटें होठों में राहत पा सकते हो। दूध को फटें होठों पर लगाने से होठों को राहत मिलती है। नींबू के रस में 1 बूंद गुलाबजल और थोड़ी सी दूध की मलाई मिलाकर होठों पर लगाने से फटे होठ ठीक होते हैं। कच्चे दूध को होठों पर लगाने से होठों का कालापन दूर होता है।
दूध में पाए जाने वाले पोषक तत्व आपके रूप को निखारते हैं।गाजर के रस में 1 चम्मच बेसन, 1 चम्मच पीसा हुआ बादाम को मिलाकर पेस्ट बनाएं और इसे चेहरे पर लगाएं। 15 से 20 मिनट तक चेहरे में रखने के बाद चेहरे को धो लें। यह त्वचा में निखार लाता है।
हल्दी और दूध से बनी मलाई के पेस्ट को चेहरे पर लगाते रहने से चेहरे में ग्लो (glow) आता है।
दूध के इस्तेमाल से मुहासों में राहत मिलती है। थोड़ा सा नमक दूध के साथ मिलाकर चेहरे पर लगाने से मुंहासे धीरे-धीरे ठीक होने लगते हैं।
आटे में नींबू का रस और आलू का रस मिलाकर उसमें दूध डालें और इसका उबटन चेहरे पर लगाने से मुंहासे दूर होते हैं।
दूध चेहरे के साथ आपके हाथों को भी आकर्षक बनाता है। हाथों की त्वचा को मुलायम करने के लिए नींबू के रस में दूध को मिलाकर लगायें। आपके हाथ मुलायम हो जाएगें।
दूध का प्रयोग आप फेश्यिल के रूप में भी कर सकते हो। थोड़े से पानी में दूध की मलाई डालकर फेश्यिल कर सकते हो।
शहद में 2 से 3 चम्मच दूध की मलाई मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की झांइयां कम होने लगती है। त्वचा को सुंदर और चमकदार बनाने के लिए हमेशा दूध में हल्दी मिलाकर सेवन करें।
Friday, December 25, 2015
चाय पीने वाले इसे जरूर पढ़े !!!!!!!!!!!!!!
चाय के दुष्प्रभाव
सिर्फ दो सौ वर्ष पहले तक भारतीय घर में चाय नहीं होती थी। आज कोई भी घर आये अतिथि को पहले चाय पूछता है। ये बदलाव अंग्रेजों की देन है। कई लोग ऑफिस में दिन भर चाय लेते रहते है., यहाँ तक की उपवास में भी चाय लेते है । किसी भी डॉक्टर के पास जायेंगे तो वो शराब - सिगरेट - तम्बाखू छोड़ने को कहेगा , पर चाय नहीं,
क्योंकि यह उसे पढ़ाया नहीं गया और वह भी खुद इसका गुलाम है. परन्तु किसी अच्छे वैद्य के पास जाओगे तो वह पहले सलाह देगा चाय ना पियें। चाय की हरी पत्ती पानी में उबाल कर पीने में कोई बुराई नहीं परन्तु जहां यह फर्मेंट हो कर काली हुई सारी बुराइयां उसमे आ जाती है। आइये जानते है कैसे? अंत में विकल्प ज़रूर पढ़ लें: -
हमारे गर्म देश में चाय और गर्मी बढ़ाती है, पित्त बढ़ाती है। चाय के सेवन करने से शरीर में उपलब्ध
विटामिन्स नष्ट होते हैं। इसके सेवन से स्मरण शक्ति में दुर्बलता आती है। - चाय का सेवन लिवर पर बुरा प्रभाव डालता है।
१. चाय का सेवन रक्त आदि की वास्तविक उष्मा को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
२. दूध से बनी चाय का सेवन आमाशय पर बुरा प्रभाव डालता है और पाचन क्रिया को क्षति पहुंचाता है।
३. चाय में उपलब्ध कैफीन हृदय पर बुरा प्रभाव डालती है, अत: चाय का अधिक सेवन प्राय: हृदय के रोग को उत्पन्न करने में सहायक
होता है।
४. चाय में कैफीन तत्व छ: प्रतिशत मात्रा में होता है जो रक्त को दूषित करने के साथ शरीर के अवयवों को कमजोर भी करता है।
५. चाय पीने से खून गन्दा हो जाता है और चेहरे पर लाल फुंसियां निकल आती है।
६. जो लोग चाय बहुत पीते है उनकी आंतें जवाब दे जाती है. कब्ज घर कर जाती है और मल निष्कासन में कठिनाई आती है।
७. चाय पीने से कैंसर तक होने
की संभावना भी रहती है।
८. चाय से स्नायविक गड़बडियां होती हैं, कमजोरी और पेट में गैस भी।
९. चाय पीने से अनिद्रा की शिकायत भी बढ़ती जाती है।
१०. चाय से न्यूरोलाजिकल गड़बड़ियां आ जाती है।
११. चाय में उपलब्ध यूरिक एसिड से मूत्राशय या मूत्र नलिकायें निर्बल
हो जाती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप चाय का सेवन करने वाले
व्यक्ति को बार-बार मूत्र आने की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
१२. इससे दांत खराब होते है. - रेलवे स्टेशनों या टी स्टालों पर बिकने वाली चाय का सेवन यदि न करें तो बेहतर होगा क्योंकि ये बरतन को साफ किये बिना कई बार इसी में चाय बनाते रहते हैं जिस कारण कई बार चाय विषैली हो जाती है। चाय को कभी भी दोबारा गर्म करके न पिएं तो बेहतर होगा।
१३. बाज़ार की चाय अक्सर अल्युमीनियम के भगोने में
खदका कर बनाई जाती है। चाय के अलावा यह अल्युमीनियम भी घुल कर पेट की प्रणाली को बर्बाद करने में कम भूमिका नहीं निभाता है।
१४. कई बार हम लोग बची हुई चाय को थरमस में डालकर रख देते हैं इसलिए भूलकर भी ज्यादा देर तक थरमस में रखी चाय का सेवन न करें। जितना हो सके चायपत्ती को कम उबालें तथा एक बार चाय बन जाने पर इस्तेमाल की गई चायपत्ती को फेंक दें।
१५. शरीर में आयरन अवशोषित ना हो पाने से एनीमिया हो जाता है. - इसमें मौजूद कैफीन लत लगा देता है. लत हमेशा बुरी ही होती है.
१६. ज़्यादा चाय पिने से खुश्की आ जाती है.आंतों के स्नायु भी कठोर बन जाते हैं।
१७. चाय के हर कप के साथ एक या अधिक चम्मच शकर
ली जाती है जो वजन बढाती है।
१८. अक्सर लोग चाय के साथ नमकीन , खारे बिस्कुट ,पकौड़ी आदि लेते है. यह विरुद्ध आहार है. इससे त्वचा रोग होते है.।
१९. चाय से भूख मर जाती है, दिमाग सूखने लगता है, गुदा और वीर्याशय ढीले पड़ जाते हैं। डायबिटीज़ जैसे रोग होते हैं। दिमाग सूखने से उड़ जाने वाली नींद के कारण आभासित कृत्रिम स्फूर्ति को स्फूर्ति मान लेना, यह
बड़ी गलती है।
२०. चाय-कॉफी के विनाशकारी व्यसन में फँसे हुए लोग स्फूर्ति का बहाना बनाकर हारे हुए जुआरी की तरह व्यसन
में अधिकाधिक गहरे डूबते जाते हैं। वे लोग शरीर, मन, दिमाग और
पसीने की कमाई को व्यर्थ गँवा देते हैं और भयंकर व्याधियों के शिकार बन जाते हैं।
चाय का विकल्प :-
पहले तो संकल्प कर लें की चाय नहीं पियेंगे. दो दिन से एक हफ्ते तक याद आएगी ; फिर सोचोगे अच्छा हुआ छोड़ दी.एक दो दिन सिर दर्द हो सकता है.
सुबह ताजगी के लिए गर्म पानी ले. चाहे तो उसमे आंवले के टुकड़े मिला दे. थोड़ा एलो वेरा मिला दे.
सुबह गर्म पानी में शहद निम्बू डाल के पी सकते है. - गर्म पानी में तरह तरह की पत्तियाँ या फूलों की पंखुड़ियां दाल कर पी सकते है. जापान में लोग ऐसी ही चाय पीते है और स्वस्थ और दीर्घायु होते है.
कभी पानी में मधुमालती की पंखुड़ियां , कभी मोगरे की , कभी जासवंद , कभी पारिजात आदि डाल कर पियें.
गर्म पानी में लेमन ग्रास , तेजपत्ता , पारिजात ,आदि के पत्ते या अर्जुन की छाल या इलायची , दालचीनी इनमे से एक कुछ डाल कर पियें ।
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Wednesday, December 16, 2015
आर्य - अनार्य और सुर व असुर कौन थे ?
आर्य - अनार्य और सुर व असुर कौन थे ?
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आर्य =श्रेष्ठ और संस्कारी
अनार्य= अश्रेष्ठ और असंस्कारी
सुर=देव गुणों को धारण करने वाला
असुर=नीच गुणों को धारण करने वाला
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आर्य:-जो सदाचारी हैं सदा अच्छे कर्म करते हैं,विपत्ति में भी धर्म का परित्याग नहीं करते,सरलता,न्यायप्रिय,अभिमान-क्रोध-लोभ रहित हैं व सबकी भलाई चाहते हैं वे आर्य हैं।
अनार्य:-जो सदा बुरे कर्म करते हैं,दूसरों को दुःख देते रहते हैं और चोरी,जारी,झूठ,कपट,लोभ,क्रोध,मोह,अहंकार,आदि से युक्त हों,और गुणी जनों में दोष निकालने वाले हों तथा दूसरों से ईर्ष्या,द्वेष रखते हों वे अनार्य हैं।
यही सुर व असुर की पहचान हैं।
सुर-देवता-आर्य।
असुर-राक्षस-अनार्य।
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* आर्य (श्रेष्ठ )--
आर्या व्रता विसृजन्तो अधि क्षमि।
ऋ0 10-65-11
आर्य वे कहलाते हैं जो इस पृथ्वी पर सत्य अंहिसा, परोपकार, पवित्रतादि। उत्तम व्रतों को विशेष रुप से धारण करते हैं।
* अनार्य ( दस्यु )--
अकर्मा दस्युरभि नो अमन्तुरन्यव्रतो अमानषः।
ऋ010-22-8
दस्यु वह है जो श्रम न करने वाला, विचारशील नहीं है, जो सत्य, अहिंसादि, अच्छे व्रतों को न ग्रहण करता है, मनुष्यता की पवित्र भावना न रखता हुआ क्रुर, कठोर होने के कारण मानवता से दूर है और पशु बलि,पाषाण पूजा आदि वेद विरुद्ध बातों पर विश्वास करता है |
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आर्य कौन है ? who is Arya
मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष आदि भिन्न-भिन्न जातियाँ है। जिन जीवों की उत्पत्ति एक समान होती है वे एक ही जाति के होते है। अत: मनुष्य एक जाति है। जाति रूप से तो मनुष्यों में कोई भेद नहीं होता है परंतु गुण, कर्म, स्वभाव व व्यवहार आदि में भिन्नता होती है। कर्म के भेद से मनुष्यजाति(mankind) में दो भेद होते है १ आर्य २ दस्यु। दो सगे भाई आर्य और दस्यु हो सकते है। वेद(ved) में कहा है“विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:” अर्थात आर्य और दस्युओं का विशेष ज्ञान रखना चाहिए। निरुक्त आर्य को सच्चा ईश्वर पुत्र से संबोधित करता है। वेद मंत्रों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहा गया है और सारे संसार को आर्य बनाने का संदेश दिया गया है। वेद कहता है “कृण्वन्तो विश्वमार्यम”अर्थात सारे संसार को आर्य बनावों। वेद में आर्य (श्रेष्ठ मनुष्यों) को ही पदार्थ दिये जाने का विधान किया गया है – “अहं भूमिमददामार्याय” अर्थात मैं आर्यों को यह भूमि देता हूँ। इसका अर्थ यह हुआ कि आर्य परिश्रम से अपना कल्याण करता हुआ, परोपकार(philanthropy) वृत्ति से दूसरों को भी लाभ पहुंचवेगा जबकि दस्यु दुष्ट स्वार्थी सब प्राणियों को हानि ही पहुंचाएगा। अत: दुष्ट को अपनी भूमि आदि संपत्ति नहीं दिये जाने चाहिए चाहे वह अपना पुत्र ही क्यों न हो।
आर्य कौन है ? who is arya
बाल्मीकी रामायण में समदृष्टि रखने वाले और सज्जनता से पूर्ण श्री रामचन्द्र (shri ram) जी को स्थान-स्थान पर ‘आर्य’ व“आर्यपुत्र” कहा गया है। विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्यनीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि वाले को व श्रीकृष्ण जी को “आर्यपुत्र” तथा गीता में वीर को ‘आर्य’ कहा गया है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने आर्य शब्द की व्याख्या (meaning of arya) में कहा है कि “जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्य-विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त (aryavart) देश में सब दिन से रहने वाले हैं उनको आर्य कहते है।”
आर्य संज्ञा वाले व्यक्ति किसी एक स्थान अथवा समाज में नहीं होते, अपितु वे सर्वत्र पाये जाते है। सच्चा आर्य वह है जिसके व्यवहार से सभी(प्राणिमात्र) को सुख मिलता है, जो इस पृथ्वी पर सत्य, अहिंसा, परोपकार, पवित्रता आदि व्रतों का विशेष रूप से धारण करता है।
आर्यों का आदि देश :-
प्रश्न :- मनुष्यों की आदि सृष्टि किस स्थल में हुई ?
उत्तर :- त्रिविष्टप अर्थात जिस को ‘तिब्बत’ (Tibet) कहते है।
प्रश्न :- आदि सृष्टि में एक जाति थी वा अनेक ?
उत्तर :- एक मनुष्य जाति थी। पश्चात ‘विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:’ यह ऋग्वेद का वचन है। श्रेष्ठों का नाम आर्य, विद्वानों का देव और दुष्टों के दस्यु अर्थात डाकू, मूर्ख नाम होने से आर्य और दस्यु दो हुए।‘उत शूद्रे उतार्ये’ अथर्ववेद वचन। आर्यों में पूर्वोक्त कथन से ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र चार भेद हुए। मूर्खों का नाम शूद्र और अनार्य अर्थात अनाड़ी तथा विद्वानों का आर्य हुआ।
प्रश्न :- फिर वे यहाँ कैसे आए ?
उत्तर :- जब आर्य और दस्युओं में अर्थात विद्वान (जो देव) व अविद्वान (असुर), उन में सदा लड़ाई बखेड़ा हुआ करता, जब बहुत उपद्रव होने लगा तब आर्य लोग सब भूगोल में उत्तम इस भूमि के खण्ड को जानकार यहीं आकर बसे। इसी से इस देश का नाम ‘आर्यावर्त’ हुआ।
प्रश्न :- आर्यावर्त की अवधि कहाँ तक है ?
उत्तर :- मनुस्मृति के अनुसार –
उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र। हिमालय की मध्यरेखा से दक्षिण और पहाड़ों के भीतर और रामेश्वर पर्यन्त विन्ध्याचल के भीतर जीतने देश है उन सब को आर्यावर्त इसलिए कहते है कि यह आर्यावर्त देव अर्थात विद्वानों ने बसाया और आर्यजनों के निवास करने से आर्यावर्त कहाया है।
प्रश्न :- प्रथम इस देश का नाम क्या था और इस में कौन बसते थे?
उत्तर :- इस के पूर्व इस देश का कोई नाम भी न था और न कोई आर्यों के पूर्व इस देश में बस्ते थे। क्योंकि आर्य लोग सृष्टि की आदि में कुछ काल के पश्चात तिब्बत से सूधे इस देश में आकर बसे थे।
प्रश्न :- कोई कहता है कि ये लोग ईरान (Iran) से आए है ?
उत्तर :- किसी संस्कृत ग्रंथ में वा इतिहास (history) में नहीं लिखा कि आर्य लोग ईरान से आए। अत: विदेशियों का लेख मान्य कैसे हो सकता है। मनुस्मृति में इस आर्यावर्त से भिन्न देशों को दस्यु और मलेच्छदेश कहा है।
नाम की महत्ता व हिन्दू शब्द का सच (Hindu word truth)
कुछ व्यक्ति हिन्दू शब्द के पक्षपाती हैं। उनकी कल्पना है कि “सिंधु” अथवा “इन्दु” शब्द से हिन्दू बन गया, अत: यहाँ के निवासियों को हिन्दू कहना ठीक है। यह बात अप्रामाणिक है। प्रथम तो उनके मत से ही सिद्ध है कि हिन्दू नाम पड़ने से पूर्व कोई और नाम अवश्य था। दूसरे सिन्धु और इन्दु नाम आज भी वैसे ही बने हुए है। अत: इस मत में कुछ भी सार नहीं। हिन्दू नाम विदेशियों (मुस्लिमों) ने दिया और हमने उसको वैसे ही मान लिया जैसे अंग्रेजों ने “इंडिया” और “इंडियन” नाम दिया। इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने हमें“नेटिव” शब्द से पुकारा और हम नेटिव कहलाने में गर्व करने लगे, जबकि नेटिव का अर्थ दास है। इसी प्रकार हिन्दू शब्द का अर्थ काला, काफिर, लुच्चा, वहशी, दगाबाज, बदमाश और चोर आदि है।फारसी, अरबी व उर्दू आदि के उपलब्ध शब्दकोश गयासुल्लोहात, करिमुल्लोहात, लोहातफिरोजी आदि में हिन्दू के अर्थ को आप सभी ढूंढ लेना। कई बार हम कह देते है कि यदि यह कार्य में नहीं कर पाया तो मेरा नाम बदल देना। अर्थात जब हम किसी काम के नहीं रहते तब लोग हमारा नाम बदल देते है। हमारे तो तीन-तीन नाम बदले गए है, फिर भी कहते है कि गर्व से कहो हम हिन्दू है। यह बड़े अपमान का विषय है। अत: इस मत को दूर से ही छोड़ देना चाहिए।
कोई सज्जन कह सकता है कि नाम को लेकर विवाद करना ठीक नहीं, नाम कैसा ही हो, काम अच्छा होना चाहिए। यह बात सुनने में अच्छी लगती हो परंतु ठीक बिलकुल भी नहीं। नाम का पदार्थ पर विशेष प्रभाव पड़ता है। ऋषि दयानन्द (maharishi dayanand) ने एक बार किसी सज्जन का नाम सुनकर कहा था कि “कर्मभ्रष्ट तो हो गए परंतु नामभ्रष्ट तो न बनो।” जिस प्रकार भारत के नाम के साथ भारतीय राष्ट्र की परंपरा आँखों के सामने दिखाई से देने लगती है वैसे ही आर्य नाम के श्रवण मात्र से प्राचीन काल की सारी ऐतिहासिक झलक हमारे सामने आ जाती है। यह मानसिक भाव है, परंतु कर्म पर मन का पूर्ण प्रभाव पड़ता है। यदि आर्य नाम को छोड़ अन्य हिन्दू आदि नाम स्वीकार कर लेते हैं तो आर्यत्व व सारा परंपरागत इतिहास (Traditional History) समाप्त हो जाता है। इसी कारण विदेशी लोग पराधीन देश की नाम आदि परम्पराएँ नष्ट कर देते व बदल देते है, जिससे पराधीन राष्ट्र अपने पुराने गौरव को भूल जावे। इतिहास की स्मृति से मनुष्य फिर खड़ा हो जाता है व पराधीनता की बेड़ियों को काटकर स्वतंत्र बन जाता है। यह सब नाम व इतिहास के कारण ही संभव हो पता है। अत: हमें सर्वत्र प्रयोग करना चाहिए कि हम “आर्य” है,“आर्यावर्त” हमारा राष्ट्र है। आर्यों का भूतअत्यंत उज्जवल (extremely bright)रहा है, हमें उसी पर फिर पहुँचना है। इसी प्रकार हमें अपना, अपने राष्ट्र और अपनी भाषा के नाम का भी सुधार कर लेना चाहिए। हमारे महापुरुषों ने सदैव कहा है कि “हमें हठ, दुराग्रह व स्वार्थ को त्यागकर सत्य (truth) को अपनाने में सर्वदा तैयार रहना चाहिए।”