Wednesday, November 13, 2019

स्पर्मैटोजोआ।

वीर्य की रक्षा से मानसिक व शारीरीक क्षमता बहुत बढ़ जाती है और अधिक समय तक बनी रहती है। अतः रक्त में इन हार्मोनो की मात्रा अधिक रहे, इसके लिये जरूरी है कि वीर्य रक्षा हो। वीर्य क्षारीय (एल्कलाईन) तथा चिपचिपा एल्बूमिन तरल है। इसमे उत्तम प्रकार का पर्याप्त कैल्शियम, एल्बूमिन, अॉयरन, विटामिन-ई, न्युक्लियो प्रोटीन होते हैं।

१० मि. ली. वीर्य स्खलन में एक बार में लगभग बाईस करोड़ (22,00,00000) से अधिक स्पर्मैटोजोआ निकल जाते हैं।

सैक्स हार्मोन-निर्माण का मूल आधार कॉलेस्ट्राल, लेसिथिन (फास्फोराईज्ड़ फैट्स), न्युक्लियो प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम हैं जो

वीर्य स्थलन के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

अनुमान है कि 1.8 ली. रक्त से 30 मि.ली. वीर्य बनता है. अर्थात् एक बार के वीर्य स्राव में 600 मि.ली.रक्त की हानि होती है।

वैज्ञानिकों के कथन

डॉ. फ्रेडरिक के अनुसार पूर्वजों का यह विश्वास बिल्कुल सही है कि वीर्य में शक्ति निहित है.

वीर्य में ऐसे अनेको तत्त्व हैं जो शरीर को बलवान बनाते हैं। मस्तिक और स्नायु कोषों (ब्रेन) की महत्वपूर्ण खुराक (न्युट्रिशन) इसमें है.

स्त्री शरीर के प्रजनन अंगों की भीतरी परतें वीर्य को चूस कर, स्त्रियों के शरीर को बलवान और उर्जावान बनाती हैं। इसी प्रकार पुरुष के शरीर में सुरक्षित रहने पर यह वीर्य पुरुषों को तेजस्वी, बलवान, सुन्दर, स्वस्थ बनाता है।

अधिक भोग-विलास करने वालों की दुर्बलता, निराशा, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), थकावट के इलाज के लिए चिकित्सा जगत में लेसिथिन का बहुत सफल प्रयोग होता है। प्राकृतिक लेसिथिन ‘वीर्य’ का महत्वपूर्ण घटक है। लेसिथिन के महत्व, शरीर व मन पर होने वाले इसके गहन प्रभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.

पर दवा के रूप लिये जाने वाले कृत्रिम. लेसिथिन के दुष्प्रभाव भी सम्भव हैं।

स्नायुतंत्र की रासायनिक संरचना और वीर्य की संरचना में अद्भूत समानता है। दोनो में स्मृद्ध लेसिथिन, कॉलेस्ट्रीन तथा फॉसफोरस कम्पाऊंड हैं।

जो धटक वीर्य में बाहर निकल जाते हैं, स्नायु कोषों व तन्तुओं (ब्रेन) के निर्माण के लिये उनकी जरूरत होती है। अतः जितना वीर्य शरीर से बाहर जाता है उतना अधिक शरीर और बुद्धि दुर्बल होती है।

वीर्यनाश होते ही दुर्बलता आती है।  लगातार और बार-बार वीर्यनाश होने (बाहर निकलने) पर मानसिक व शारीरिक दुर्बलता बहुत बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप अनेकों शारीरिक और मानसिक रोग सरलता से होने लगते हैं। ‘सैक्सुअल न्युरेस्थीनिया’ नामक स्नायु तंत्र दुर्बलता  जैसे रोग हो जाते हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार ‘वीर्यरक्षा’ दिमाग के लिये सर्वोत्तम टॉनिक या खुराक है।

वीर्य के तत्त्वों के विश्लेषण और शरीर व बुद्धी पर होने वाले लाभदायक प्रभावों पर प्रो. ब्राऊन सिकवार्ड तथा प्रो. स्टीनैच ने बहुत काम किया है।

प्रो. स्टीनेच के अनुसार अंडकोष नाड़ी को बांधकर, वीर्य बाहर जाने के रास्ते को रोकर वीर्य रक्षा के स्वास्थ्य- वर्धक प्रभावों पर उन्होने अध्ययन किया।

प्रो. स्टीनेच के अलावा विश्व के अनेक चिकित्सा विज्ञानियों ने इस विषय पर शोध किये हैं। शरीर विज्ञान, मूत्र रोग, विशेषज्ञ, यौन रोग व प्रजनन अंगो के विद्वान, मनोवैज्ञानिक, स्त्रिरोग विशेषज्ञों,

एण्डोक्राईनोलोजिस्ट आदि अनेक विशेषज्ञोंके ने वीर्य रक्षा के महत्व को स्वीकार किया है।

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