डा भीमराव अम्बेडकर दलित नहीं “महार जाति” के क्षत्रीय योद्धाओं के वंशज थे ?
पेशवा रियासत को कमजोर करने के लिये अंग्रेजो ने “महार जाति” को “शूद्र” घोषित किया था |
शायद ही कुछ लोग यह जानते हैं कि “महार” और “राष्ट्र” शब्द से ही “महाराष्ट्र” राज्य की उत्पत्ति हुई है | महार पेशे से अंगरक्षक (क्षत्रीय) थे, इसलिए निर्भीक, साहसी, विश्वसनीय और लड़ाकू हुआ करते थे। बजीराव पेशवा (ब्राह्मण)की सेना में सबसे ज्यादा उन्नत लड़ाकू नश्ल के 28,000 सैनिक मात्र महार ही थे | यह एक लड़ाकू जाति (मार्शल रेस) है | यह बात ब्रिटिश लोगों ने पहचानी और लड़ने के लिये महार रेजिमेंट बनाई । जो आज भी भारतीय सेना का गौरव बढ़ा रही है |
नवम्बर 1817 में बाजीराव द्वितीय के नेतृत्व में संगठित मराठा सेना ने पूना की 'अंग्रेज़ी रेजीडेन्सी' को लूटकर जला दिया और खड़की स्थिति अंग्रेज़ी सेना पर हमला कर दिया, लेकिन वह पराजित हो गया। तदनन्तर वह दो और लड़ाइयों – 1 जनवरी 1818 में भीमा कोरेगाव की लडाई जिसमे अंग्रेजो ने पेशवा के 28,000 मराठा सैनिकों को पराजित किया था और उसके एक महीने के बाद आष्टी की लड़ाई में बाजीराव पेशवा द्वितीय पराजित हुआ।
उसने भागने की कोशिश की लेकिन उन्हें 3 जून, 1818 ई. को उसे अंग्रेज़ों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा । अंग्रेज़ों ने इसके बार पेशवा का पद ही समाप्त कर दिया और बाजीराव पेशवा द्वितीय को अपदस्थ करके बंदी के रूप में कानपुर के निकट बिठूर भेज दिया जहाँ 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
पेशवा पद की समाप्ति के बाद पेशवा की सेना में भरी असंतोष था | अन्ग्रेजों को बराबर यह भय था कि बाजीराव पेशवा द्वितीय की मृत्यु के बाद भी कभी भी पेशवा के वफादार सैनिक उनके ऊपर हमला कर सकते हैं अतः उन्होंने पेशवा सेना को तोड़ने के लिये विभिन्न लाभों की घोषणा करते हुये महार जाति के योद्धाओं को शूद्र घोषित कर दिया | जिस नीति से पेशवाओं की सेना में फूट पड़ गई और वह हमेशा के लिये ख़त्म हो गये |
लेकिन महार की इस योद्धा शक्ति का उपयोग अंग्रेजों ने महार रेजिमेंट बना कर किया गया और प्रथम विश्व युद्ध में सर्वाधिक मरने वाले महार रेजिमेंट के ही सैनिक थे | लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद मरे सैनिकों का हर्जा खर्च न देना पड़े इसलिये महार रेजिमेंट भंग कर दी गई और बढ़ते असंतोष को शान्त करने के लिये "इण्डिया गेट" का दिल्ली में निर्माण करवाया गया | द्वतीय विश्व युद्ध में पुनः महार रेजिमेंट बनी जो आज तक भारतीय सेना का सम्मान है |
जबकि पूर्व में जब भी व्यापारी अपना कारवां लेकर कहीं दूर व्यापार करने जाते थे | तब महारो को उनकी रक्षा के लिए नियुक्त किया जाता था । महार ही गाँव की रक्षा करते थे, किसानो के ज़मीनों की रक्षा करते थे | गाँव की सीमा बतलाना, व्यापारियों को एक जगह से दूसरी जगह जाते वक़्त सुरक्षा देना, खेत से होने वाली फसल और राज्य के खजाने की रक्षा आदि करने का काम महार जाति का था |
शादी विवाह में बहू बेटियों को, महिलाओं बच्चों को, सम्पन्न व्यक्तियों को, सुरक्षित लाना ले जाना आदि कार्यों के लिये महार जाति के लोग सबसे अधिक विश्वसनीय माने जाते थे | चोरी करने वालो का पता लगाना , गाँव में आने जाने वालो के बारे में जानकारी रखना, संदिग्ध लोगो को गाँव के बाहर रोक के रखना, आदि आदि सुरक्षा का कार्य महार ही के काम थे। इनकी गवाही अंतिम और विश्वसनीय होती थी | खेत और गाँव की सीमा निर्धारित करते समय महारो की बात अंतिम होती थी।
महार समाज बड़े बड़े घरानों में आना जाना था इन्हें अस्पृश्य कभी नहीं माना गया था। यह लोग पुलिस, गुप्तचर विभाग और राजस्व विभाग संबंधित कार्य करते थे । लड़ाकू होने के नाते इनकी खुराक सामान्य मनुष्य से ज्यादा हुआ करती थी | महाआहारी (बहुत खाने वाले ) होने के नाते इन्हें “महार” बोला गया | यह बात रोबेर्टसन ने अपनी किताब “दि महार फोल्क में भी कही है |
भीमराव अम्बेडकर जी का जन्म सन 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश में) में स्थित नगर सैन्य छावनी महू में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की १४ वीं व अंतिम संतान थे। उनका परिवार मराठी मूल का महार जाति से सम्बन्ध रखता था और वो आंबडवे गांव जो आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में है के मूल निवासी थे। लड़ाकू नश्ल के नागवंशी क्षत्री होने के नाते भीमराव आम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कई पीड़ियों से कार्यरत थे और उनके पिता रामजी सकपाल जी भारतीय सेना की महू छावनी में सुबेदार के पद पर थे |
उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी।
जब वह चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब उन्हें लेखक दादा केलुस्कर द्वारा खुद की लिखी 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए।
माध्यमिक शिक्षा हेतु वह 1897 में मुंबई चले गये | जहां एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थे। 1907 में उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था | 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में अपनी डिग्री प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार में नौकरी करने लगे ।
उनकी योग्यता को देख कर बड़ौदा के राजा सयाजीराव गायकवाड़ ने अपने खर्चे पर 1913 में मात्र 22 साल की उम्र में संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यू यॉर्क शहर में कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन साल के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति देकर भेजा । वहां पहुंचने के तुरंत बाद वह लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गये । जून 1915 में उन्होंने अपनी एमए परीक्षा पास कर ली, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय भी थे।
1916 में, उन्होंने अपना दूसरा थीसिस, नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया - ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी दुसरे एमए के लिए पूरा किया, और आखिरकार उन्होंने लंदन के लिए छोड़ने के बाद, 1916 में अपने तीसरे थीसिस इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया के लिए अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की, अपने थीसिस को प्रकाशित करने के बाद 1927 में अधिकृप रुप से पीएचडी प्रदान की गई।[20] 9 मई को, उन्होंने मानव विज्ञानी अलेक्जेंडर गोल्डनवेइज़र द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भारत में जातियां: उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास नामक एक पेपर लेख प्रस्तुत किया, जो उनका पहला प्रकाशित काम था।
डॉ॰ आम्बेडकर ने 3 वर्ष तक की मिली हुई छात्रवृत्ति का उपयोग उन्होंने केवल दो वर्षों में अमेरिका में पाठ्यक्रम पूरा किया और अक्टूबर 1916 में वह लंदन गए और वहाँ उन्होंने ग्रेज़ इन में बैरिस्टर कोर्स (विधि अध्ययन) के लिए दाखिला लिया, और साथ ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया।
इनकी मेधा शक्ति से कई अंग्रेज प्रोफ़ेसर बहुत प्रभावित हुये | उन्होंने इनके विषय में ब्रिटेन के राजनीतिज्ञों से चर्चा की | काफी लम्बे समय से ब्रिटेन के राजनीतिज्ञों को भारत में अपने अत्याचारों की कमी को छिपाने के लिये दलितों के मसीहा के रूप में एक भारतीय मूल के अंग्रेजी वक्ता की आवश्यकता थी | अत: उन ब्रिटिश राजनीतिज्ञों ने इन्हें दलितों के मसीहा के रूप में भारत की सामाजिक स्थिती की सार्वजनिक मंच पर अंग्रेजी भाषा में निन्दा करने के लिये खूब प्रयोग किया |
बड़े बड़े लेख और इन्टरव्यू फोटुओं के साथ समाचार पत्र पत्रिकाओं में छपने लगे | सेमिनार में विशेषज्ञ के रूप में जाने आने लगे | पिता 2 फरवरी 1913 को मर चुके थे | परिवार वाले इनकी इन हरकतों के कारण इन्हें पूछते तक नहीं थे | मन चाहा अनाब शनाब पैसा इन्हें अंग्रेज दलालों के माध्यम से मिलने लगा था | अंग्रेजों के साथ मांसाहारी पार्टी और शराब की दावतें प्रायः रोज ही होने लगी थी | जब यह पूरी तरह अंग्रेजों के प्रभाव में आ गये तो यहीं से अंग्रेजों ने इनका राजनैतिक दुरुपयोग शुरू कर दिया |
अंग्रेजों की कृपा से इन्हें भारत में दलितों के मसीहा घोषित होने में ज्यादा देर नहीं लगी | दलितों के मसीहा होने के बाद भी कभी भी यह दलित बस्ती में नहीं रहे | डा॰ अम्बेडकर बम्बई के ब्राह्मण बहुल मोहल्ले मेँ अपना स्थायी आवास “राजगृह” बना कर रहते थे और इनकी पहली पत्नी रमाबाई महार (क्षत्रिय) परिवार से थीं । 27 मई 1935 को उनकी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उनकी दूसरी पत्नी भी मराठी ब्राह्मण ही थीं |
इनकी कोई भी पत्नी शूद्र नहीं थी | इनको ब्राह्मण नेता सम्मान भी देते थे | बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, मोहनदास करमचंद गाँधी, मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, वल्लभ भाई पटेल, गोविन्द बल्लभ पंत, मदन मोहन मालवीय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, इत्यादि इनकी मित्र सूची में शामिल थे। कानून के इन्हीं विशेषज्ञों के सहयोग से 26 जनवरी 1950 एक महार (क्षत्रीय) डॉ॰ भीमराव रामजी आंबेडकर ने भारत के सविधान का निर्माण कर मजबूत भारत की नींव रखी।
किन्तु इनका उपयोग करके अंग्रेजों के इशारे पर इनका सामाजिक व राजनैतिक बहिष्कार शुरू हुआ जिससे क्षुब्द होकर डा भीमराव रामजी आंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को अपने लगभग 3,80,000 अनुयायीयों के साथ हिन्दू धर्म छोड़ कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। इसके बाद भी आज महारष्ट्र की कुल जनसंख्या का 9 % लगभग एक करोड़ महार हैं |
योगेश कुमार मिश्रा।
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