Sunday, January 14, 2018

समाज में फैली कु-संस्कृती।

समाज में फैली कु-संस्कृती , व्यभिचार का कारण है मनुष्य की अज्ञानता।

मनुष्य भेड - बकरियों की तरह बच्चे पैदा करनें में लगा है

पैदा होनें बाला दुष्ट हो या सज्जन इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं

यदि किसान पौह ( दिसम्वर-जनवरी )में बाजरा  ओर जैठ (मई -जुन)में गैहुं वीजेगा तो ना बाजरा मिलेगा ना गैहुं

हां आज विज्ञान नें इतनी तरक्की कर ली की मौसम अपनें हिसाब से कर के 24 महींने मक्की उगा ले किंतु वो Inorganic है Organic नहीं ।

मनुष्य की पैदावार भी एक फसल है जिसमें पुरुष किसान ओर स्त्री भुमीं है

दोष भुमीं का नहीं जैसा बीज वोयोगे वोही तो काटोगे ना

किसान मुर्ख हो गया गधा हो गया उसे समझ नी रही बीज की ना मौसम की

यदि बीज की समझ है तो खाद - पानी की समझ नहीं ।

बीज अच्छा वोया  किंतु खाद के रुप में युरिया ओर पेस्टीसाईड नामक जहर डाल दिया ।

अर्थात गर्भ धारण तो वैदिक पद्दती से हुया किंतु पोषण या संस्कारों में चुक गये फसल फिर खराव ।

उसके बाद जैसे ही फसल पर फल आया चोर - लुटेरे या उजाड करनें बाले पशुयों से फसल की सुरक्षा या संरक्षण नहीं किया तो भी सारी करी - कराई मेहनत वैकार ।

अर्थात जैसे युवावस्था आई भटकाव स्वभाविक है उस समय किसान की ही जिम्मेवारी बनती है की वो उसका मार्गदर्शन या दुष्ट तत्वों से रक्षा करे ।

इतना काफी है वाकी फिर कभी

समाज में फैली कु- संस्कृती ओर व्यभिचार से जो भी बहुत हतास हो वो याद रखे जागरुक किसान बनो ना की मुर्ख - गधे ।

बीज , खाद - पानीं , सुरक्षा ये सभी किसान की जिम्मेवारी है भुमीं कार्य सिर्फ अपनी मिट्टी की पोषकता देकर फसल को पुष्ट करना है ।

हमारे पुर्वज एक जागरुक किसान थे इसिलिऐ भारत महा योगियों ओर महां- तपस्वियों की धरती रही है । अपने पुर्वजों के ज्ञान का लाभ उठाओ ओर इस धरती को स्वर्ग की तरह सुंदर बनाओ ।

आपका दिन मंगलमय हो।

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