सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर संक्रांन्ति’ कहलाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। इस तरह मकर संक्रान्ति एक तरह से देवताओं की सुबह होती है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान का बहुत महत्व है। कहते हैं कि इस मौके पर किया गया दान सौ गुना होकर वापस फलीभूत होता है। मकर संक्रान्ति के दिन घी तिल कंबल खिचड़ी दान का खास महत्व है। पूरे देश का त्यौहार मकर संक्रांति।
ऐसी मान्यता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर तीर्थ राज प्रयाग में ‘मकर संक्राति’ पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदल कर स्नान के लिए आते हैं। इस मौके पर इलाहाबाद (प्रयाग) के संगम स्थल पर हर साल लगभग एक मास तक माघ मेला लगता है, जहां लोग कल्पवास भी करते हैं। बारह साल में एक बार कुंभ मेला लगता है, यह भी लगभग एक महीने तक रहता है। इसी तरह 6 बरसों में अर्धकुंभ मेला भी लगता है। मकर सक्रान्ति पर्व हर साल 14 जनवरी को पड़ता है। एक और प्रसिद्ध मेला बंगाल में मकर संक्रांन्ति पर्व पर गंगा सागर में लगता है।
गंगा सागर के मेले के पीछे पौराणिक कथा है, कि आज के दिन गंगा जी स्वर्ग से उतरकर भागीरथ के पीछे-पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गईं। गंगा जी के पावन जल से ही राजा सगर के 60 हजार शापग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था। इसी घटना की स्मृति में यह तीर्थ का नाम गंगा सागर के नाम से विख्यात हुआ और हर साल 14 जनवरी को गंगा सागर में मेले का आयोजन होने लगा।
महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांन्ति से सूर्य की गति तिल-तिल बढ़ने लगती है, इसलिये इस दिन तिल के बने मिष्ठान बनाकर एक-दूसरे को बांटने की परंपरा है। महाराष्ट्र और गुजरात में मकर संक्रांन्ति पर्व पर अनेक खेल प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है।
पंजाब, जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश में लोहड़ी के नाम से मकर सक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। एक प्रचालित लोक कथा के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था। जिसे श्री कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। उसी घटना के फलस्वरूप लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। सिंधी समाज भी मकर संक्रांन्ति के एक दिन पूर्व इसे ‘लाल लोही’ के रूप में मनाता है। दक्षिण भारत में मकर संक्रान्ति को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन तिल, चावल, दाल की खिचड़ी बनायी जाती है। इस मौके पर बैलों की लड़ाई होती है, इसे मत्तु पोंगल भी कहते है। तमिलनाडु में तमिल पंचांग का नया साल पोंगल ही होता है।
राजस्थान की प्रथा के अनुसार इस दिन महिलाएं तिल के लड्डू तथा चूरमें के लड्डू बनाकर सास-ससुर या दूसरे बड़े-बुजुर्गों का देती हैं और उनका आशीर्वाद लेती हैं। राजस्थान-हरियाणा में मुख्य रूप से दाल, बाटी, चूरमा, खीर-पूरी का भगवान को भोग लगाकर भोजन किया जाता है। कई जगहों पर विशाल दंगल का आयोजन भी किया जाता है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में पतंग प्रतियोगिताएं भी होती हैं । इसके अलावा दक्षिण बिहार के मदार क्षेत्र में भी एक मेला लगता है।
ग्रंथों में है इसके महत्व का वर्णन मकर संक्रांति के त्यौहार का वर्णन जाने-माने ग्रंथों में भी मिलता है।
माघे मासि महादेव यो दद्यात् घृतकम्बलम् ।
स भुक्त्वा सकलान भोगान् अन्ते मोक्षं च विन्दति।।
माघ मासे तिलान यस्तु ब्राहमणेभ्यः प्रयच्छति।
सर्व सत्त्व समाकीर्णं नरकं स न पश्यति ।।
(महाभारत अनुशासन पर्व)
मकर संक्रांन्ति के दिन गंगा स्नान और गंगा तट पर दान की खास महिमा है। तीर्थ राज प्रयाग में मकर संक्रांन्ति मेला तो सारी दुनिया में विख्यात है। इसका वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी श्री रामचरित मानस में लिखा है:-
माघ मकर गत रवि जब होई।
तीरथ पतिहिं आव सब कोई।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनी ।
सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।
इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में बदलाव कर दक्षिणायन से उत्तर तरफ होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे ‘संक्रमण’ या ‘संक्रांन्ति’ कहा जाता है। मकर संक्रांन्ति से सूर्य उत्तरायण हो जाने का मतलब गरम मौसम की शुरुआत की तरह देखा जाता है।
जय श्री कृष्ण जय श्री राम.
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