|| मुहर्रम क्या है, भारत के सब लोग जानें जरा ||
यूँ तो मुहर्रम अरबी केलेन्डर के अनुसार वर्ष का पहला महिना है, इसी महीने में हज़रत ईमाम हुसैन, जो हज़रत मुहम्मद साहब के लड़की फातमा का पुत्र था हज़रत अलि के बेटे थे,जो इसी महीने के 10 तारीख को यज़ीद ने इनको मार दिया था | यह दो भाई थे –एक का नाम ईमाम हसन –दुसरे का नाम ईमाम हुसैन | बड़े को ज़हर देकर मारा था और छोटे को युद्ध में मारा | इनके याद में यह मातम शिया लोग मनाते हैं |
घटना इस प्रकार है, की हज़रत मुहम्मद साहब के एक सहाबी {साथी } थे जिनका नाम माबिया था जो हज़रत के बहुत करीब सम्बन्ध रखते थे | हज़रत ने उन्हें कहा की भले ही तुम मुझसे मुहब्बत रखो पर तुम्हारा परिवार में जो तुम्हारा बेटा होगा वह मेरे खानदान को ख़तम करदेगा |
जवाब में यजीद ने कहा हुजुर मैं शादी नही करूंगा, मुझे बिना शादी का ही रहना है, अगर मेरे बेटे आप के परिवार को ख़त्म कर, यह मुझे बरदाश्त नही, मै बिना शादी का ही रहूँगा | कुछ दिनों के बाद माबिया कहीं जा रहा था, पेशाब की हाज़त हुई और कुलुफ के लिए मिटटी का ढेला लिया | उस मिटटी के ढेले के मुलिन्द्रिय में लगाने से उसमे जखम बन गया | गया डॉ के पास काफी दवा मलहम पट्टी की, पर जखम ठीक नही हुवा | तो डॉ ने सुझाव दिया की शादी करो ठीक हो जायेगा | तो माबिया ने 80 वर्ष की एक बूढी से शादी की, कि जिस से बच्चा ना होने पाए | किन्तु उस बूढी ने ही सन्तान जन्म दिया, जिसका नाम यजीद था |
अब वह बड़ा होकर हसन, और हुसैन से लड़ाई की हसन को ज़हर देकर मारा और हुसैन को फ़रात नदी के पानी को पीने नही दिया हुसैन के पुत्र जैनुलआबदीन, पानी के प्यास से ही मरा | हुसैन पानी पिने को गया हाथ में पानी उठाया, तो अपने बेटे का चेहरा देखा, तो सोचा जिस पानी के ना मिलने से बेटे की मौत हुई, इस पानी को मै नही पिऊंगा, फिर लड़ते लड़ते मरे |
यह है घटना संक्षेप में, यह पर्व सुन्नी मुसलमानों का नही है, यह शिया ही मनाते हैं कारण शिया हज़रत अलि को पहला खलीफा मानते हैं | उनके लड़के थे तो यह शियालोग अस्त्र, शास्त्र ले कर अपने आप ही या हुसैन, पुकार कर लहू लहान होते है | सुन्नी इस दिन मात्र रोज़ा रखते हैं मातम नही मनाते शिया जैसे | किन्तु आज कुछ वर्षों से सुन्नी भी इस मातम को मना रहे हैं, कारण इस मुहर्रम के नाम से खुले आम हथियार निकाल कर लोगों में प्रदर्शनी करते हैं | सरकार की कोई पावंदी नही, खुले आम सभी प्रकार के तलवार भाला का खुल कर लोगों को दिखाते फिरते है आदि |
जब की कितना अंध विश्वास है जरा गौर करें, हर जगह अँधा परम्परा जुड़ा है, पहली बात तो यह की मिटटी के लगने से मूलइन्द्रिय में जखम बनना, नारी संभोग से उस घाव का ठीक होना| फिर 80 वर्ष वाली बुढ़िया से सन्तान जन्म लेना जो मेडिकलसाइंस, के विरुद्ध,सृष्टि नियमविरुद्ध भी है अब पढ़े लिखे लोग ही विचार करें ? यह मारा मारी कब की है और उसीको याद करते हुए हथियार लेकर लोगों को दिखाने का मतलब क्या निकलता है, और इसकी जरूरत भी क्या है ? क्या इसका नाम तेहवार है या पागलपन ?
अगर हिन्दू उस महाभारत का युद्ध जो कुरुक्षेत्र में हुवा उसे याद कर अगर यही हथियार दिखाते फिरे तो क्या भारत सरकार अनुमति देगी ? हथियारों को लेकर लोग सड़क पर निकलें ? मै बहुत सनक्षेप में लिखा हूँ घटना लम्बी है फिर अबसर मिलने पर लिखूंगा | यह किस प्रकार की मानसिकता है लोगों में जिसे धर्म कहा जा रहा है, यह क्या और कैसे धर्म है दुनिया के लोग विचार करें कि सही क्या है और गलत क्या हैं ? आज पुरे देश भर यही पागलपन हथियार लेकर किया है लोगों ने जिसे धर्म कह कर लोगों के यतायात में वाधक बने, लोगों को आने जाने में परेशान कर भी धर्म कहें जा रहे हैं | अगर यही धर्म है तो अधर्म क्या होना चाहिए ?
________ महेन्द्रपाल आर्य –वैदिक प्रवक्ता =दिल्ली =4 =11 =14
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