क्या इंदिरा गाँधी की मृत्यु श्राप से हुई ? - करपात्री महाराज ने इंदिरा गांधी को क्यों श्राप दिया ? - '7 नवम्बर 1966 ' जानिए स्वतन्त्र भारतीय इतिहास का 'काला दिन', जिसे बहुत कम लोग जानते हैं - कांग्रेस आज नहीं, बहुत लम्बे समय से हिन्दू-विरोधी रही है - DID INDIRA GANDHI DIED, DUE TO A CURSE, BY SWAMI KARPATRI JI MAHARAJ ? A DARK DAY OF INDIAN HISTORY :
उस काले दिन के अगले दिन की कुछ हेडलाइंस :
'भारतीय इतिहास में संसद भवन पर पहला हमला !'
'हमलावर साधु संत ! गौ रक्षक !'
'जिस तरह से तुम ने साधु संतों पर गोलियाँ चलवायी हैं, ठीक इसी तरह से, एक दिन तुम भी मारी जाओगी ! - स्वामी करपात्री द्वारा इंदिरा गांधी को दिया श्राप'
दिन - 7 नवम्बर 1966
मृतक संख्या - 10? 250? 375? 2500? या ज़्यादा ?
आइए संक्षिप्त में जानते हैं भारतीय इतिहास की इस महत्वपूर्ण तारीख़ का, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है।
करपात्री महाराज :
स्वामी करपात्री (1907 - 1982) भारत के एक तत्कालीन सन्त, प्रकाण्ड विद्वान्, गोवंश रक्षक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनेता थे। उनका मूल नाम हरि नारायण ओझा था, किन्तु वे "करपात्री" नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे।
धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें 'धर्मसम्राट' की उपाधि प्रदान की गई।
1965 से भारत के लाखों संतों ने गोहत्याबंदी और गोरक्षा पर कानून बनाने के लिए एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया हुआ था। बड़े पैमाने पर हस्ताक्षर अभियान चला कर, सभी वर्गों को के लोगों को इस से जोड़ा गया था। गौवध रोकने के लिए मुहिम तो पंडित जवाहर लाल नेहरु के समय से ही थी। पर नेहरु गौवध रोकने में दिलचस्पी नहीं रखते थे।
इंदिरा गांधी स्वामी करपात्री जी और विनोबा जी को बहुत मानती थीं। इंदिरा गांधी के लिए उस समय कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव सामने थे, क्यूँकि 11 जनवरी 1966 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के बाद वो पद ख़ाली हुआ था और मोररजी देसाई उस पद के प्रबल दावेदार थे।
कहते हैं, कि इंदिरा गांधी ने करपात्री जी महाराज से आशीर्वाद लेने के बाद वादा किया था कि यह चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्लखाने बंद हो जाएंगे, जो अंग्रेजों के समय से चल रहे हैं।
इंदिरा गांधी चुनाव जीत गईं। लेकिन कई दिनों तक इंदिरा गांधी उनकी इस बात को टालती रहीं। ऐसे में करपात्रीजी को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा।
संसद भवन कूच :
करपात्रीजी महाराज शंकराचार्य के समकक्ष देश के मान्य संत थे। हज़ारों साधु-संतों ने उनके साथ कहा, कि यदि सरकार गोरक्षा का कानून पारित करने का कोई ठोस आश्वासन नहीं देती है, तो हम संसद को चारों ओर से घेर लेंगे। फिर न तो कोई अंदर जा पाएगा और न बाहर आ पाएगा।
इसी आशय के साथ, 7 नवम्बर 1966 को प्रमुख संतों की अगुआई में हज़ारों लोगों की भीड़ जमा हुई, जिस में हजारों संत थे और हजारों गौरक्षक थे। सभी संसद की ओर कूच कर रहे थे।
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि दोपहर 1 बजे जुलूस संसद भवन पर पहुंच गया और संत समाज के संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ। करीब 3 बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। स्वामी रामेश्वरानंद ने कहा, कि यह सरकार बहरी है। यह गौहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा। मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से आह्वान करता हूं कि सभी संसद के अंदर घुस जाओ, तभी गौहत्याबंदी कानून बन सकेगा।
पुलिसकर्मी पहले से ही बाहर लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने संतों और गौरक्षकों की भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। माना जाता है कि उस गोलीकांड में सैकड़ों साधु और गौरक्षक मर गए। दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। संचार माध्यमों को सेंसर कर दिया गया और हजारों संतों को तिहाड़ की जेल में ठूंस दिया गया।
तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा का त्यागपत्र :
इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने अपना त्यागपत्र दे दिया और इस कांड के लिए खुद एवं सरकार को जिम्मेदार बताया। आधिकारिक तौर पर यह कहा जाता है की इंदिरा गांधी ने उनकी एक गृहमंत्री के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी में विफल रहने पर उनका इस्तीफ़ा माँगा।
(ध्यान रहे, कि श्री गुलजारीलाल नंदा बहुत ईमानदार थे, एक नहीं, कई बार कुछ-कुछ समय के लिए देश के प्रधान-मंत्री रहे और बहुत लम्बे समय तक केबिनेट मंत्री रहे, पर किराये के मकान में रहते थे. जो लोग समाचारों को पढ़ते रहते हैं, उन्हें ध्यान होगा, कि उनके मालिक माकन ने नंदा जी का सामान उठाकर घर के बाहिर रख दिया था, और समाचार पत्रों में यह खबर देखकर, सरकार ने उनके लिए घर की व्यवस्था की थी).
देश के इतने बड़े और अचानक घटनाक्रम को किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह खबर सिर्फ मासिक पत्रिका 'आर्यावर्त' और 'केसरी' में छपी थी। कुछ दिन बाद, गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका 'कल्याण' ने, अपने गौ अंक विशेषांक में, विस्तारपूर्वक इस घटना का वर्णन किया था।
करपात्री जी का श्राप :
इस घटना के बाद स्वामी करपात्री जी के शिष्य बताते हैं कि करपात्री जी ने इंदिरा गांधी को श्राप दे दिया कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने संतों और गोरक्षकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करवाकर मारा है, उनका भी हश्र यही होगा। कहते हैं कि संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने रोते हुए ये श्राप दिया था।
इसे करपात्री जी के श्राप से नहीं भी जोड़ें तो भी यह तो सत्य है कि श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी की अकाल मौत ही हुई थी। श्रीमती गांधी जहां अपने ही अंगरक्षकों की गोली से मारी गईं, वहीं संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, जबकि राजीव गांधी लिट्टे द्वारा किए गए धमाके में मारे गए थे।
आख़िरी बात :
तीनों ही असामान्य और अचानक मृत्यु को प्राप्त हुए। संजय गांधी के बारे में बता दूँ कि भले ही उनकी मौत एक हादसा थी, पर उनकी हत्या का एक बार पहले प्रयास हो चुका था, जब किसी अज्ञात हमलावर ने उन की जीप पर पाँच गोलियाँ चलायी थी। वो उस में बाल बाल बचे थे।
तो क्या यह माना जाए की इंदिरा गांधी को एक गौरक्षक सन्यासी द्वारा दिया श्राप फलित हुआ या कि ये महज़ एक संजोग है ?
गोपाष्टमी का संजोग ? :
बहुत जगह लिखा गया कि इस दिन गोपाष्टमी थी। हमने पंचांग देखा, तो गोपाष्टमी 7 नवम्बर 1966 को ना हो कर, 20 नवम्बर 1966 की थी, जिस दिन से देश के प्रमुख संतों द्वारा गौवध को रोकने के लिए और पुलिस द्वारा संतों पर हमले के विरोध के लिए अनशन शुरू किया गया था।
तो जहाँ यह दावा किया जा रहा है कि श्राप गोपाष्टमी के दिन दिया गया वो दिन ग़लत साबित होता है। 7 नवम्बर 1966 को गोपाष्टमी थी ही नहीं।
इसे आप ज़रूर संजोग मान सकते हैं कि इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को हुई और उस दिन सही में गोपाष्टमी थी।
एक संजोग और बताते हैं :
7 नवम्बर 1966 मतलब की 7-11-1966। गौरक्षकों के बर्बर दमन की इस पूरी तारीख़ को आपस में जोड़ें तो कौनसी संख्या आती है ? -
7+1+1+1+9+6+6 = 31 जी 31 इंदिरा गांधी की हत्या की तारीख़ !
गौ रक्षकों में साल का सबसे पूज्य दिन गोपाष्टमी और संख्या 31 का ये एक दिनी संजोग, क्या अपने आप में एक कहानी नहीं कहता है ?
फ़ैसला आप पर।
कुछ लिंक, जिनसे जानकारी जुताई गयी है :
[1] Sanjay Gandhi - Wikipedia
[2] Swami Karpatri - Wikipedia
[3] विश्व की महान विरासत : धर्मसम्राट स्वामी करपात्रीजी महाराज - News Chrome
[4] जब संसद से चली थीं संतों और गोरक्षकों पर गोलियां | karpatri maharaj 1966 hindi
[5] The very first attack on Parliament
[6] Karpatri Maharaj
[7] 1966 anti-cow slaughter agitation - Wikipedia
[8] इंदिरा गांधी के 'हिंदू नरसंहार 1966' का सच
[9] Hindu Calendar October, 1984
[10] Google News Archive Search
[11] इंदिरा गांधी और स्वामी करपात्री (फोटो)
[12] करपात्री महाराज
(साभार : मनोज लालवानी (Manoj Lalwani), भारत की बात सुनाता हूँ- Quora)
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