Monday, August 18, 2025

भगवान श्री कृष्ण।

 बातें हैं जो हमें उनसे सीखनी चाहिए और उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए💞🚩👇

जन्म से लेकर देहत्याग तक भगवान कृष्ण के जीवन की लगभग हर घटना में कोई सूत्र है
युद्ध भूमि पर दिया गया गीता का उपदेश संसार का श्रेष्ठतम ज्ञान माना जाता है
#मैंनेजमेंट_मास्टर कहें या #जगतगुरु, #गिरधारी कहें या #रणछोड़। भगवान कृष्ण के जितने नाम हैं, उतनी कहानियां। जीवन जीने के तरीके को अगर किसी ने परिभाषित किया है तो वो कृष्ण हैं। कर्म से होकर परमात्मा तक जाने वाले मार्ग को उन्हीं ने बताया है। संसार से वैराग्य को सिरे से नकारा। कर्म का कोई विकल्प नहीं, ये सिद्ध किया। कृष्ण कहते हैं, मैं हर हाल में आता हूं, जब पाप और अत्याचार का अंधकार होता है तब भी, जब प्रेम और भक्ति का उजाला होता है तब भी। दोनों ही परिस्थिति में मेरा आना निश्चित है। 

वैसे तो कृष्ण का संपूर्ण जीवन ही एक प्रबंधन की किताब है, जिसे सैंकड़ों-हजारों बार कहा, सुना जा चुका है। कुरुक्षेत्र में दो सेनाओं के बीच खड़े होकर भारी तनाव के समय कृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वो दुनिया का श्रेष्ठतम ज्ञान है। गीता का जन्म युद्ध के मैदान में दो सेनाओं के बीच हुआ। जीवन की श्रेष्ठतम बातें भारी तनाव और दबाव में ही होती हैं। अगर आप दिमाग को शांत और मन को स्थिर रखने की कोशिश करें तो सबसे बुरी परिस्थितियों में भी आप अपने लिए कुछ बहुत बेहतरीन निकाल पाएंगे। ये कृष्ण सिखाते हैं। गीता पढ़ने से पहले अगर इसी बात को समझ लिया जाए तो गीता पढ़ना सफल हुआ।  

कृष्ण का जीवन ऐसी ही बातों से भरा पड़ा है, जरूरत है नजरिए की। उनका जीवन आपके लिए मॉयथोलॉजी का एक हिस्सा मात्र भी हो सकता है, और आपका पूरा जीवन बदलकर रख देने वाला ज्ञान भी। आवश्यकता हमारी है, हम उनके जीवन से लेना क्या चाहते हैं। कृष्ण मात्र कथाओं में पढ़ा या सुना जाने वाला पात्र नहीं है, वो चरित्र और व्यवहार में उतारे जाने वाले देवता हैं। कृष्ण से सीखें, कैसे जीवन को श्रेष्ठ बनाया जाए। दस बातें हैं, जो अगर व्यवहार में उतार लीं तो सफलता निश्चित मिलेगी। 

1. शुरू से अंत तक, #जीवन_संघर्ष_ही_है
कारागृह में जन्मे कृष्ण। पैदा होते ही रात में यमुना पार कर गोकुल ले जाया गया। तीसरे दिन पुतना मारने आ गई। यहां से शुरू हुआ संघर्ष देह त्यागने से पहले द्वारिका डुबोने तक रहा। कृष्ण का जीवन कहता है, आप कोई भी हों, संसार में आए हैं तो संघर्ष हमेशा रहेगा। मानव जीवन में आकर परमात्मा भी सांसारिक चुनौतियों से बच नहीं सकता। कृष्ण ने कभी किसी बात की शिकायत नहीं की। हर परिस्थिति को जिया और जीता। कृष्ण कहते हैं परिस्थितियों से भागो मत, उसके सामने डटकर खड़े हो जाओ। क्योंकि, कर्म करना ही मानव जीवन का पहला कर्तव्य है। हम कर्मों से ही परेशानियों से जीत सकते हैं। 

2 #स्वस्थ्य_शरीर_से_ही_विजय_है
कृष्ण का बचपन माखन-मिश्री खाते हुए गुजरा। आज भी भोग लगाते हैं हम। लेकिन ये संकेत कुछ और है। आहार अच्छा हो, शुद्ध हो, बल देने वाला हो। बचपन में शरीर को अच्छा आहार मिलेगा तो ही इंसान युवा होकर वीर बनेगा। शरीर को स्वस्थ्य रखना है तो बचपन से ध्यान देने की जरूरत है। ये पैरेटिंग के दौर से गुजर रहे युवाओं के लिए बड़ा मैसेज है, अपने बच्चों को ऐसा खाना दें, जो उनको बल दे। सिर्फ स्वाद के लिए ही ना खिलाएं। तभी वे बड़े होकर स्वयं को और समाज को सही दिशा में ले जा पाएंगे। 

3. #पढ़ाई_किताबी_ना_हो_रचनात्मक_हो
कृष्ण ने अपनी शिक्षा मध्य प्रदेश के उज्जैन में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रह कर पूरी की थी। कहा जाता है 64 दिन में उन्होंने 64 कलाओं का ज्ञान हासिल कर लिया था। वैदिक ज्ञान के अलावा उन्होंने कलाएं सीखीं। शिक्षा ऐसी ही होनी चाहिए जो हमारे व्यक्तित्व का रचनात्मक विकास करे। संगीत, नृत्य, युद्ध सहित 64 कलाओं कृष्ण के व्यक्तित्व का हिस्सा हैं। बच्चों में कोरा ज्ञान ना भरें। उनकी रचनात्मकता को नए आयाम मिलें, ऐसी शिक्षा व्यवस्था हो। 

4. #रिश्तों_से_ही_जीवन_है, बिना रिश्तों के कुछ नहीं
कृष्ण ने जीवनभर कभी उन लोगों का साथ नहीं छोड़ा, जिनको मन से अपना माना। अर्जुन से वे युवावस्था में मिले, ऐसा महाभारत कहती है, लेकिन अर्जुन से उनका रिश्ता हमेशा मन का रहा। सुदामा हो या उद्धव। कृष्ण ने जिसे अपना मान लिया, उसका साथ जीवन भर दिया। रिश्तों के लिए कृष्ण ने कई लड़ाइयां लड़ीं। और रिश्तों से ही कई लड़ाइयां जीती। उनका सीधा संदेश है सांसारिक इंसान की सबसे बड़ी धरोहर रिश्ते ही हैं। अगर किसी के पास रिश्तों का थाती नहीं है, तो वो इंसान संसार के लिए गैर जरूरी है। इसलिए, अपने रिश्तों को दिल से जीएं, दिमाग से नहीं। 

5. #नारी_का_सम्मान_समाज_के_लिए_जरूरी
राक्षस नरकासुर का आतंक था। करीब 16,100 महिलाओं को उसने अपने महल में कैद किया था। महिलाओं से बलात्कार में उसे सुख मिलता था। कृष्ण ने उसे मारा। सभी महिलाओं को मुक्त कराया। लेकिन सामाजिक कुरुतियां तब भी थीं। उन महिलाओं को अपनाने वाला कोई नहीं था। खुद उनके घरवालों ने उन्हें दुषित मानकर त्याग दिया। ऐसे में कृष्ण आगे आए। सभी 16,100 महिलाओं को अपनी पत्नी का दर्जा दिया। समाज में उन्हें सम्मान के साथ रहने के लिए स्थान दिलाया। कृष्ण ने हमेशा नारी को शक्ति बताया, उसके सम्मान के लिए तत्पर रहे। पूरी महाभारत नारी के सम्मान के लिए ही लड़ी गई। सो, आप कृष्ण भक्त हैं तो अपने आसपास की महिलाओं का पूरा सम्मान करें। कृष्ण की कृपा पाने का ये सरलतम मार्ग है। 

6. आपके मतभेद अगली पीढी के लिए बाधा ना बनें
कम ही लोग जानते हैं कि जिस दुर्योधन के खिलाफ कृष्ण ने आजीवन पांडवों का साथ दिया। उसकी मौत का कारण भी कृष्ण की कूटनीति बनी, वो ही दुर्योधन रिश्ते में कृष्ण का समधी भी था। कृष्ण के पुत्र सांब ने दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा का अपहरण करके उससे विवाह किया था। क्योंकि लक्ष्मणा, सांब से विवाह करना चाहती थी लेकिन दुर्योधन खिलाफ था। सांब को कौरवों ने बंदी भी बनाया था। तब कृष्ण ने दुर्योधन को समझाया था कि हमारे मतभेद अपनी जगह हैं, लेकिन हमारे विचार हमारे बच्चों के भविष्य में बाधा नहीं बनने चाहिए। दो परिवारों के आपसी झगड़े में बच्चों के प्रेम की बलि ना चढ़ाई जाए। कृष्ण ने लक्ष्मणा को पूरे सम्मान के साथ अपने यहां रखा। दुर्योधन से उनका मतभेद हमेशा रहा लेकिन उन्होंने उसका प्रभाव कभी लक्ष्मणा और सांब की गृहस्थी पर नहीं पड़ने दिया। 

7. #शांति_का_मार्ग_ही_विकास_का_रास्ता_है
कृष्ण ने महाभारत युद्ध के पहले शांति से समझौता करने के लिए पांडवों और कौरवों के बीच मध्यस्थता की। हालांकि दोनों ही पक्ष युद्ध लड़ने के लिए आतुर थे लेकिन कृष्ण ने हमेशा चाहा कि कैसे भी युद्ध टल जाए। झगड़ों से कभी समस्याओं का समाधान नहीं होता है। शांति के मार्ग पर चलकर ही हम समाज का रचनात्मक विकास कर सकते हैं। कृष्ण ने समाज की शांति से मन की शांति तक, दुनिया को ये समझाया कि कोई भी परेशानी तब तक मिट नहीं सकती, जब तक वहां शांति ना हो। फिर चाहे वो समाज हो, या हमारा खुद का मन। शांति से ही सुख मिल सकता है, साधनों से नहीं। 

8. #हमेशा_दूरगामी_परिणाम_सोचें
महाभारत में जुए की घटना के बाद पांडवों को वनवास हो गया। कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि ये समय भविष्य के लिए तैयारी करने का है। महादेव शिव, देवराज इंद्र और दुर्गा की तपस्या करने को कहा। कृष्ण जानते थे कि दुर्योधन को कितना भी समझाया जाए, वो पांडवों को कभी उनका राज्य नहीं लौटाएगा। तब शक्ति और सामर्थ्य की जरूरत होगी। कर्ण के कुंडल कवच पांडवों की जीत में आड़े आएंगे ये भी वे जानते थे। उन्होंने हर चीज पर बहुत दूरगामी सोच रखी। कोई भी फैसला तात्कालिक आवेश में नहीं लिया। हर चीज के लिए आने वाली पीढ़ियों तक का सोचा। यही सोच समाज का निर्माण करती है। 

9. #हर_परिस्थिति_में_मन_शांत_और_दिमाग_स्थिर_रहे
पांडवों के राजसूय यज्ञ में शिशुपाल कृष्ण को अपशब्द कहता रहा। छोटा भाई था लेकिन मर्यादाएं तोड़ दीं। पूरी सभा चकित थी, कुछ क्रोधित भी थे लेकिन कृष्ण शांत थे, मुस्कुरा रहे थे। शांति दूत बनकर गए तो दुर्योधन ने अपमान किया। कृष्ण शांत रहे। अगर हमारा दिमाग स्थिर है, मन शांत है तभी हम कोई सही निर्णय ले पाएंगे। आवेश में हमेशा हादसे होते हैं, ये कृष्ण सिखाते हैं। विपरित परिस्थितियों में भी कभी विचलित नहीं होने का गुण कृष्ण से बेहतर कोई नहीं जानता। 

10. #लीडर_बनें, श्रेय लेने की होड़ से बचें

कृष्ण ने दुनियाभर के राजाओं को जीता था। जहां ऐसे राजाओं का राज था, जो भ्रष्ट थे, जैसे जरासंघ। लेकिन कभी किसी राजा का सिंहासन नहीं छीना। कृष्ण के पूरे जीवन में कभी ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने किसी राजा को मारकर उसका शासन खुद लिया हो। जरासंघ को मारकर उसके बेटे को राजा बनाया, जो चरित्र का अच्छा था। सभी जगह ऐसे लोगों को बैठाया, जो धर्म को जानते थे। कभी किंग नहीं बने, हमेशा किंगमेकर की भूमिका में रहे। महाभारत युद्ध में भी खुद हथियार नहीं उठाया। पूरा युद्ध कूटनीति से लड़ा, पांडवों को सलाह देते रहे लेकिन जीतने का श्रेय भीम और अर्जुन को दिया। 

🚩 जय श्री कृष्ण....💞🙏🙇

Wednesday, August 6, 2025

Brahmi and Shankhpushpi.

दुनिया की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में याददाश्त का कमजोर होना और दिमागी थकान आम समस्याएँ बन चुकी हैं। ऐसे में आयुर्वेद सदियों पुरानी उन औषधियों की ओर इशारा करता है, जो मस्तिष्क को पोषण देती हैं और मानसिक स्पष्टता प्रदान करती हैं। ब्राह्मी और शंखपुष्पी ऐसी ही दो प्रमुख जड़ी-बूटियाँ हैं, जिनका प्रयोग प्राचीन समय से स्मृति शक्ति, ध्यान और मानसिक शांति के लिए होता आया है। आइए जानते हैं इनके चमत्कारी लाभ, प्रयोग विधियाँ और रोचक तथ्य।

ब्राह्मी 

बुद्धि और स्मृति की देवी

ब्राह्मी (Bacopa monnieri) का अर्थ ही होता है – "बुद्धि प्रदान करने वाली।" इसे आयुर्वेद में मेधावर्धिनी यानी स्मृति और बुद्धि बढ़ाने वाली जड़ी माना गया है।

लाभ

स्मरण शक्ति में वृद्धि: ब्राह्मी नियमित सेवन से याददाश्त और कॉन्सेंट्रेशन बेहतर होता है।
तनाव और चिंता में राहत: यह मस्तिष्क की नसों को शांत करती है।

मस्तिष्क की कोशिकाओं की मरम्मत: इसमें मौजूद बैकोसाइड मस्तिष्क की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करता है।

प्रयोग विधियाँ

ब्राह्मी पाउडर को घी या दूध के साथ लेना सर्वोत्तम माना जाता है।

ब्राह्मी तेल से सिर की मालिश मानसिक शांति देता है।

शंखपुष्पी

मेधावर्धक औषधि
शंखपुष्पी (Convolvulus pluricaulis) आयुर्वेद में प्रमुख मेधावर्धक औषधि है।

यह मस्तिष्क को ऊर्जा देती है और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है।

लाभ

नींद की गुणवत्ता में सुधार: यह अनिद्रा से परेशान लोगों के लिए लाभकारी है।

चिंता, अवसाद से राहत: मानसिक स्थिरता में मदद करती है।

बच्चों में पढ़ाई की एकाग्रता बढ़ाती है: शंखपुष्पी सिरप बच्चों में लोकप्रिय है।

प्रयोग विधियाँ

शंखपुष्पी सिरप बाजार में आसानी से उपलब्ध है।
आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से पाउडर या अर्क का प्रयोग किया जा सकता है।

ब्राह्मी और शंखपुष्पी का संयोजन

जब ब्राह्मी और शंखपुष्पी को एक साथ लिया जाता है, तो यह एक शक्तिशाली मानसिक टॉनिक का कार्य करता है। यह संयोजन स्कूल जाने वाले बच्चों, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं, और मानसिक श्रम करने वाले वयस्कों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
रोज़ सुबह दूध या गुनगुने पानी के साथ इन दोनों का मिश्रण लेना उत्तम है।
यह संयोजन स्मृति, निर्णय क्षमता और चिंता को नियंत्रित करता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आधुनिक अनुसंधान भी ब्राह्मी और शंखपुष्पी की उपयोगिता को प्रमाणित करते हैं। कई अध्ययन यह दिखाते हैं कि इनमें न्यूरोट्रांसमीटर गतिविधि को बढ़ाने की क्षमता है, जिससे स्मृति और एकाग्रता में सुधार होता है।

सतर्कता

ब्राह्मी और शंखपुष्पी का अधिक मात्रा में सेवन सिरदर्द या पाचन संबंधी परेशानी उत्पन्न कर सकता है।
गर्भवती महिलाएं या विशेष दवाएं ले रहे लोग इन्हें प्रयोग करने से पहले चिकित्सकीय सलाह अवश्य लें।

निष्कर्ष

ब्राह्मी और शंखपुष्पी केवल जड़ी-बूटियाँ नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक ज्ञान की अमूल्य निधियाँ हैं। ये हमारे मस्तिष्क को उसी प्रकार पोषण देती हैं, जैसे पौधे को जल। आज जब मानसिक थकान और तनाव जीवन का हिस्सा बन चुका है, तब इन जड़ी-बूटियों का प्रयोग न केवल याददाश्त सुधारता है, बल्कि जीवन में स्थिरता और स्पष्टता भी लाता है।

Monday, July 7, 2025

क्या इंदिरा गाँधी की मृत्यु श्राप से हुई ?

क्या इंदिरा गाँधी की मृत्यु श्राप से हुई ? - करपात्री महाराज ने इंदिरा गांधी को क्यों श्राप दिया ? - '7 नवम्बर 1966 ' जानिए स्वतन्त्र भारतीय इतिहास का 'काला दिन', जिसे बहुत कम लोग जानते हैं - कांग्रेस आज नहीं, बहुत लम्बे समय से हिन्दू-विरोधी रही है - DID INDIRA GANDHI DIED, DUE TO A CURSE, BY SWAMI KARPATRI JI MAHARAJ ? A DARK DAY OF INDIAN HISTORY : 

उस काले दिन के अगले दिन की कुछ हेडलाइंस :
'भारतीय इतिहास में संसद भवन पर पहला हमला !'
'हमलावर साधु संत ! गौ रक्षक !'
'जिस तरह से तुम ने साधु संतों पर गोलियाँ चलवायी हैं, ठीक इसी तरह से, एक दिन तुम भी मारी जाओगी ! - स्वामी करपात्री द्वारा इंदिरा गांधी को दिया श्राप' 

दिन - 7 नवम्बर 1966
मृतक संख्या - 10? 250? 375? 2500? या ज़्यादा ?
आइए संक्षिप्त में जानते हैं भारतीय इतिहास की इस महत्वपूर्ण तारीख़ का, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है।

करपात्री महाराज : 
स्वामी करपात्री (1907 - 1982) भारत के एक तत्कालीन सन्त, प्रकाण्ड विद्वान्, गोवंश रक्षक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनेता थे। उनका मूल नाम हरि नारायण ओझा था, किन्तु वे "करपात्री" नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे।
धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें 'धर्मसम्राट' की उपाधि प्रदान की गई।

1965 से भारत के लाखों संतों ने गोहत्याबंदी और गोरक्षा पर कानून बनाने के लिए एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया हुआ था। बड़े पैमाने पर हस्ताक्षर अभियान चला कर, सभी वर्गों को के लोगों को इस से जोड़ा गया था। गौवध रोकने के लिए मुहिम तो पंडित जवाहर लाल नेहरु के समय से ही थी। पर नेहरु गौवध रोकने में दिलचस्पी नहीं रखते थे।

इंदिरा गांधी स्वामी करपात्री जी और विनोबा जी को बहुत मानती थीं। इंदिरा गांधी के लिए उस समय कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव सामने थे, क्यूँकि 11 जनवरी 1966 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के बाद वो पद ख़ाली हुआ था और मोररजी देसाई उस पद के प्रबल दावेदार थे।
कहते हैं, कि इंदिरा गांधी ने करपात्री जी महाराज से आशीर्वाद लेने के बाद वादा किया था कि यह चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्लखाने बंद हो जाएंगे, जो अंग्रेजों के समय से चल रहे हैं।

इंदिरा गांधी चुनाव जीत गईं। लेकिन कई दिनों तक इंदिरा गांधी उनकी इस बात को टालती रहीं। ऐसे में करपात्रीजी को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा।

संसद भवन कूच :
करपात्रीजी महाराज शंकराचार्य के समकक्ष देश के मान्य संत थे। हज़ारों साधु-संतों ने उनके साथ कहा, कि यदि सरकार गोरक्षा का कानून पारित करने का कोई ठोस आश्वासन नहीं देती है, तो हम संसद को चारों ओर से घेर लेंगे। फिर न तो कोई अंदर जा पाएगा और न बाहर आ पाएगा।
इसी आशय के साथ, 7 नवम्बर 1966 को प्रमुख संतों की अगुआई में हज़ारों लोगों की भीड़ जमा हुई, जिस में हजारों संत थे और हजारों गौरक्षक थे। सभी संसद की ओर कूच कर रहे थे।
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि दोपहर 1 बजे जुलूस संसद भवन पर पहुंच गया और संत समाज के संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ। करीब 3 बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। स्वामी रामेश्वरानंद ने कहा, कि यह सरकार बहरी है। यह गौहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा। मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से आह्वान करता हूं कि सभी संसद के अंदर घुस जाओ, तभी गौहत्याबंदी कानून बन सकेगा।
पुलिसकर्मी पहले से ही बाहर लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने संतों और गौरक्षकों की भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। माना जाता है कि उस गोलीकांड में सैकड़ों साधु और गौरक्षक मर गए। दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। संचार माध्यमों को सेंसर कर दिया गया और हजारों संतों को तिहाड़ की जेल में ठूंस दिया गया।

तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा का त्यागपत्र :
इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने अपना त्यागपत्र दे दिया और इस कांड के लिए खुद एवं सरकार को जिम्मेदार बताया। आधिकारिक तौर पर यह कहा जाता है की इंदिरा गांधी ने उनकी एक गृहमंत्री के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी में विफल रहने पर उनका इस्तीफ़ा माँगा।
(ध्यान रहे, कि श्री गुलजारीलाल नंदा बहुत ईमानदार थे, एक नहीं, कई बार कुछ-कुछ समय के लिए देश के प्रधान-मंत्री रहे और बहुत लम्बे समय तक केबिनेट मंत्री रहे, पर किराये के मकान में रहते थे. जो लोग समाचारों को पढ़ते रहते हैं, उन्हें ध्यान होगा, कि उनके मालिक माकन ने नंदा जी का सामान उठाकर घर के बाहिर रख दिया था, और समाचार पत्रों में यह खबर देखकर, सरकार ने उनके लिए घर की व्यवस्था की थी). 
देश के इतने बड़े और अचानक घटनाक्रम को किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह खबर सिर्फ मासिक पत्रिका 'आर्यावर्त' और 'केसरी' में छपी थी। कुछ दिन बाद, गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका 'कल्याण' ने, अपने गौ अंक विशेषांक में, विस्तारपूर्वक इस घटना का वर्णन किया था।

करपात्री जी का श्राप :
इस घटना के बाद स्वामी करपात्री जी के शिष्य बताते हैं कि करपात्री जी ने इंदिरा गांधी को श्राप दे दिया कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने संतों और गोरक्षकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करवाकर मारा है, उनका भी हश्र यही होगा। कहते हैं कि संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने रोते हुए ये श्राप दिया था।
इसे करपात्री जी के श्राप से नहीं भी जोड़ें तो भी यह तो सत्य है कि श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी की अकाल मौत ही हुई थी। श्रीमती गांधी जहां अपने ही अंगरक्षकों की गोली से मारी गईं, वहीं संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, जबकि राजीव गांधी लिट्‍टे द्वारा किए गए धमाके में मारे गए थे।

आख़िरी बात :
तीनों ही असामान्य और अचानक मृत्यु को प्राप्त हुए। संजय गांधी के बारे में बता दूँ कि भले ही उनकी मौत एक हादसा थी, पर उनकी हत्या का एक बार पहले प्रयास हो चुका था, जब किसी अज्ञात हमलावर ने उन की जीप पर पाँच गोलियाँ चलायी थी। वो उस में बाल बाल बचे थे।
तो क्या यह माना जाए की इंदिरा गांधी को एक गौरक्षक सन्यासी द्वारा दिया श्राप फलित हुआ या कि ये महज़ एक संजोग है ?

गोपाष्टमी का संजोग ? : 
बहुत जगह लिखा गया कि इस दिन गोपाष्टमी थी। हमने पंचांग देखा, तो गोपाष्टमी 7 नवम्बर 1966 को ना हो कर, 20 नवम्बर 1966 की थी, जिस दिन से देश के प्रमुख संतों द्वारा गौवध को रोकने के लिए और पुलिस द्वारा संतों पर हमले के विरोध के लिए अनशन शुरू किया गया था।
तो जहाँ यह दावा किया जा रहा है कि श्राप गोपाष्टमी के दिन दिया गया वो दिन ग़लत साबित होता है। 7 नवम्बर 1966 को गोपाष्टमी थी ही नहीं।
इसे आप ज़रूर संजोग मान सकते हैं कि इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को हुई और उस दिन सही में गोपाष्टमी थी।

एक संजोग और बताते हैं :
7 नवम्बर 1966 मतलब की 7-11-1966। गौरक्षकों के बर्बर दमन की इस पूरी तारीख़ को आपस में जोड़ें तो कौनसी संख्या आती है ? - 
7+1+1+1+9+6+6 = 31 जी 31 इंदिरा गांधी की हत्या की तारीख़ !

गौ रक्षकों में साल का सबसे पूज्य दिन गोपाष्टमी और संख्या 31 का ये एक दिनी संजोग, क्या अपने आप में एक कहानी नहीं कहता है ?

फ़ैसला आप पर।

कुछ लिंक, जिनसे जानकारी जुताई गयी है : 
[1] Sanjay Gandhi - Wikipedia
[2] Swami Karpatri - Wikipedia
[3] विश्व की महान विरासत : धर्मसम्राट स्वामी करपात्रीजी महाराज - News Chrome
[4] जब संसद से चली थीं संतों और गोरक्षकों पर गोलियां | karpatri maharaj 1966 hindi
[5] The very first attack on Parliament
[6] Karpatri Maharaj
[7] 1966 anti-cow slaughter agitation - Wikipedia
[8] इंदिरा गांधी के 'हिंदू नरसंहार 1966' का सच
[9] Hindu Calendar October, 1984
[10] Google News Archive Search
[11] इंदिरा गांधी और स्वामी करपात्री (फोटो) 
 [12]  करपात्री महाराज

(साभार : मनोज लालवानी (Manoj Lalwani), भारत की बात सुनाता हूँ- Quora) 
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आप का आज का दिन मंगलमयी हो - आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे - इस कामना के साथ।

Saturday, April 26, 2025

सेकुलर हिंदू कौन है ?

जो इस पोस्ट को पढ़कर भी चुप्पी साध कर भाईचारे की पतली गली निकल ले😔😔

अभी भी समय है जात पात छोड़ो नहीं तो निक्कर उतरेगा ,और पड़ेगी माथे में गोली 😡 सब सेकुलर नीति घुश जाएगी !

66 वर्षीय सेकुलर कश्मीरी कवि सर्वानंद कौल ‘कुरान’ साथ रखते थे फिर भी उनके बेटे के साथ उनकी हत्या कर पेड़ से टाँग दिया, जहाँ लगाते थे 'तिलक' वहाँ की चमड़ी छील दी 

‘पहलगाम की घटना ने तमाम भयावह जिहादी यातनाओ को एक बार फिर से स्वर दिया है, जिसे कश्मीर में हिंदुओं ने भोगा था। इनमें से एक कहानी सर्वानंद कौल ‘प्रेमी’ की भी है। 

66 साल के कौल को इस्लामी आतंकियों ने उनके 27 साल के बेटे के साथ मार डाला था। उनकी पेड़ से टँगी लाश मिली थी। तिलक करने की जगह को छील कर चमड़ी हटा दी गई थी।

पूरे शरीर पर सिगरेट से जलाने के निशान थे। 

हड्डियाँ तोड़ दी गई थी। 

पिता-पुत्र की आँखें निकाल ली गई थी। 

दोनों को फँदे से लटकाने के बाद मृत्यु सुनिश्चित करने के लिए गोली भी मारी गई थी। 

पिता-पुत्र की लाश 1 मई 1990 को मिली थी। अब कश्मीरी पंडित इस तारीख को ‘शहीदी दिवस’ या ‘शहादत दिवस’ के रूप में मनाते हैं।

कौन थे सर्वानंद कौल ‘प्रेमी’?

सर्वानंद कौल उन कश्मीरी हिंदुओं में से थे, जिन्हें 19 जनवरी 1990 की तारीख भी नहीं डरा पाई थी। जब सब हिंदू जान बचाकर भाग रहे थे, तब उन्होंने कश्मीर में ही रहने का फैसला किया। 

उन्हें यकीन था कि उनकी समाज में जो ‘साख’ है, उसके कारण कोई भी उनके परिवार को नहीं छू सकता। 

वे कवि थे। 
अनुवादक थे। 
लेखक थे। 

इतने मशहूर थे कि कश्मीरी शायर महजूर ने उन्हें ‘प्रेमी’ उपनाम दिया था। 

दो दर्जन से अधिक किताबें लिखी थी। 

‘भगवद गीता’, ‘रामायण’ और रवींद्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ का कश्मीरी में अनुवाद किया था।

बताते हैं कि संस्कृत, फ़ारसी, हिंदी, अंग्रेजी, कश्मीरी और उर्दू पर उनकी एक जैसी पकड़ थी। 

‘सेकुलर’ इतने थे कि उनके पूजा घर में कुरान भी रखी हुई थी।

जब सर्वानंद कौल के घर पहुँचे ‘सेकुलर’ आतंकी

अप्रैल 1990 खत्म होने को था। 

एक रात तीन ‘सेकुलर’ आतंकियों ने कौल के दरवाजे पर दस्तक दी। परिवार को एक जगह बिठाया और कहा कि सारे गहने-जेवर एक खाली सूटकेस में रख दे। 

कौल से कहा कि वे सूटकेस लेकर उनके साथ आएँ। 

घरवाले जब रोने लगे तो उन्होंने कहा, “अरे! हम प्रेमी जी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाएँगे। हम उन्हें वापस भेज देंगे।” 

27 साल के बेटे वीरेन्द्र ने कहा कि पिता को अँधेरे में वापसी में समस्या होगी, तो वे साथ जाना चाहते हैं। 

आतंकियों ने कहा, “आ जाओ, अगर तुम्हारी भी यही इच्छा है तो!” दो दिन बाद दोनों की लाशें मिलीं थी। किस हालत में मिली थी, यह आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं।

‘हमने कभी नहीं सोचा था कि हमें टारगेट किया जाएगा’

सालों बाद सर्वानन्द कौल के बड़े बेटे राजिंदर कौल ने उस घटना के बारे में इंडिया टुडे को बताया था। जिस रात आतंकी कौल और उनके बेटे को ले गए थे काफी बारिश हो रही थी। राजिंदर ने बताया था, “हमने कभी नहीं सोचा था कि हमें टारगेट किया जाएगा। उम्मीद की थी कि दोनों (पिता और भाई) जल्द ही लौट आएँगे। मगर उनके शव मिले थे। 

मेरा भाई केवल 27 वर्ष का था, हाल ही में उसकी शादी हुई थी और उसका एक छोटा बच्चा था।”

‘मुस्लिम खुद कहते थे- बाल-बाँका नहीं होने देंगे’

राजिंदर के अनुसार जिस दिन उनके पिता और भाई की लाश मिली थी, उस दिन विश्वास और भाईचारे के तमाम पुल बह गए थे। जो भी बचे हुए कश्मीरी पंडित थे उन्होंने भी घाटी छोड़ दिया। 

5 मई को सर्वानंद कौल के परिवार में जो बच गए थे वे भी कश्मीर से निकल गए और फिर लौटकर भी वहाँ न गए।

 राजिंदर ने बताया था, “मेरे पिता और परिवार की क्षेत्र में बहुत ज्यादा इज्जत थी। स्थानीय मुस्लिम खुद कहते थे- वे हमारा बाल-बाँका नहीं होने देंगे।”

लेकिन इन लोगों ने हमारे विश्वास का गला घोंट दिया , मैंने मेरे पिता और भाई को खो दिया , उनको खोने से भी ज्यादा दुःख इस बात का है कि उनको तड़पा तड़पा कर मुस्लिमों ने दर्दनाक मौत दी, यह कहते हुए राजिंदर कौल दहाड़े मार मार कर रोने लगे और पूरी तरह ग़महीन माहौल सन्नाटा छा गया।

सिर्फ आंसू 

ॐ शांति शांति शांति 

पहलगाम की घटना तो 1990 की घटनाओ के समक्ष कुछ भी नहीं लेकिन इन सब घटनाओं के बावजूद भी हिंदुओं के भीतर सेकुरलिज्म का कीड़ा और कांग्रेस का नशा उतरता नहीं है। उन्हें आज भी न आतंकियों का मजहब दिखाई देता है न उनकी मंशा दिखाई देती है आज भी हिन्दू ‘भाईचारे' की अफीम न केवल स्वयं सूंघ रहा है वल्कि अन्य हिन्दुओं 
 भी सुंघाने को तत्पर है।

साभार श्री जितेंद्र सिंह जी
हिंदू हो तो एक रहो. 

Wednesday, April 2, 2025

वक्फ_बोर्ड: सनातन समाज के साथ अन्याय का प्रतीक।

विश्वजीत सिंह अनंत 
राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय सनातन पार्टी

आज हम एक ऐसे षड्यंत्र के विरुद्ध बताने जा रहे है, जिसने हमारे धर्मस्थलों, पवित्र भूमि, सभ्यता और संस्कृति पर आघात किया है। वक्फ बोर्ड – एक ऐसा संस्थान जो हमारे पूर्वजों की मेहनत से अर्जित भूमि को एक विशेष समुदाय के नियंत्रण में देता है। यह कानून 1913 में अंग्रेजों द्वारा लागू किया गया, जिसे नेहरू श्यामाप्रसाद की सरकार ने जारी रखा, और कांग्रेस-भाजपा सरकार ने 7 दशकों में इसकी शक्ति कई गुणी कर दी।

वक्फ बोर्ड के ज़रिए सनातन समाज की भूमि पर कब्ज़ा

गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बताया कि 1913 से 2013 तक वक्फ बोर्ड के पास कुल 18 लाख एकड़ जमीन थी। 2013 से 2025 के बीच, कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने इसमें 21 लाख एकड़ जमीन शामिल करके अल्लाह के नाम पर मुसलमानों को दान कर दी, अब वक्फ बोर्ड के पास 39 लाख एकड जमीन हैं।

भारत में वक्फ संपत्ति का इतिहास 12वीं सदी के अंत में दो गांवों से शुरू हुआ और अब यह 39 लाख एकड़ तक पहुंच गया है. ध्यान रखने वाली बात ये है कि पिछले 12 सालों में भारत में वक्फ बोर्ड के तहत कुल जमीन दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है। आज, वक्फ बोर्ड के पास जितनी भूमि है, उतनी किसी अन्य धार्मिक संस्था या संगठन के पास नहीं है।

क्या है वक्फ बोर्ड का षड्यंत्र?

स्वतंत्र ऑडिट का अभाव: वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का कोई स्वतंत्र ऑडिट नहीं होता, जिससे पारदर्शिता की कमी होती है।

न्यायाधिकरण में पक्षपात: वक्फ ट्रिब्यूनल में मुस्लिम समुदाय के लोग ही न्यायाधीश होते हैं, जिससे निष्पक्ष न्याय में बाधा आती है।

भूमि अधिग्रहण की मनमानी: किसी भी भूमि को वक्फ घोषित कर उस पर स्थायी अधिकार प्राप्त किया जा सकता है, चाहे वह भूमि किसी अन्य समुदाय की ही क्यों न हो।

पुरातात्विक स्थलों पर कब्ज़ा: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थलों पर भी वक्फ बोर्ड ने दावा किया है, जिससे हमारी धरोहरों पर खतरा मंडरा रहा है।

वक्फ संशोधन विधेयक 2024 में क्या परिवर्तन हुए?

हाल ही में प्रस्तुत वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं:

धारा 40 का निष्कासन: इस धारा के तहत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने का अधिकार था। संशोधन में इस धारा को हटाया गया है, जिससे अब बिना प्रमाण के किसी संपत्ति को वक्फ घोषित नहीं किया जा सकेगा।

'वक्फ बाय यूजर' का उन्मूलन: 'वक्फ बाय यूजर' की अवधारणा को समाप्त कर दिया गया है, जिससे अब केवल विधिवत् समर्पित संपत्तियों को ही वक्फ माना जाएगा।

न्यायाधिकरण में सुधार: वक्फ ट्रिब्यूनल में इस्लामिक कानून के विशेषज्ञों को हटाकर निष्पक्षता सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।

संपत्ति पंजीकरण में पारदर्शिता: सभी वक्फ संपत्तियों का डिजिटल पंजीकरण अनिवार्य किया गया है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।

लेकिन यह संशोधन अधूरा है! हिंदू समाज की जो संपत्तियां पहले ही वक्फ के नाम कर दी गई हैं, उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। मंदिरों, ट्रस्टों, और आम जनता की भूमि अभी भी उनके अधीन बनी रहेगी। सरकार ने केवल अपनी सरकारी संपत्तियां सुरक्षित कर लीं, लेकिन सनातनी जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया। यह अस्वीकार्य है!

राष्ट्रीय सनातन पार्टी का संकल्प:

वक्फ बोर्ड का पूर्ण उन्मूलन: वक्फ बोर्ड को पूरी तरह से समाप्त किया जाए, ताकि किसी भी समुदाय को विशेषाधिकार न मिले।

संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण: वक्फ की सभी संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण किया जाए, जिससे उनका उपयोग राष्ट्रहित में हो सके।

मंदिरों और ट्रस्टों की सुरक्षा: मंदिरों और ट्रस्टों की संपत्तियों को वक्फ के दायरे से मुक्त किया जाए और उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए।

भूमि की वापसी: सनातनी जनता की छीनी गई जमीनों को वापस लिया जाए और उन्हें उनके वास्तविक मालिकों को सौंपा जाए।

समान नागरिक संहिता का लागू होना: एक समान नागरिक संहिता लागू कर सभी समुदायों के लिए समान कानून और अधिकार सुनिश्चित किए जाएं।

आज हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने पूर्वजों की भूमि, अपने मंदिरों, अपने आश्रमों और अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करेंगे। यह धर्मयुद्ध है, और इसमें विजय प्राप्त करना हमारा कर्तव्य है। "राष्ट्रहित सर्वोपरि" के मंत्र को आत्मसात करते हुए, हम वक्फ के जड़मूल से उन्मूलन तक संघर्ष करेंगे।

**जय सनातन! जय हिंदू राष्ट्र!**

#राष्ट्रीय_सनातन_पार्टी सनातनियों के लिए सर्वोत्तम राजनीतिक विकल्प है, सनातन धर्म को संवैधानिक संरक्षण दिलाना पार्टी का मूल ध्येय है। राष्ट्रीय सनातन पार्टी से जुड़े और राष्ट्रहित की राजनीति करें।

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