Wednesday, April 2, 2025

वक्फ_बोर्ड: सनातन समाज के साथ अन्याय का प्रतीक।

विश्वजीत सिंह अनंत 
राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय सनातन पार्टी

आज हम एक ऐसे षड्यंत्र के विरुद्ध बताने जा रहे है, जिसने हमारे धर्मस्थलों, पवित्र भूमि, सभ्यता और संस्कृति पर आघात किया है। वक्फ बोर्ड – एक ऐसा संस्थान जो हमारे पूर्वजों की मेहनत से अर्जित भूमि को एक विशेष समुदाय के नियंत्रण में देता है। यह कानून 1913 में अंग्रेजों द्वारा लागू किया गया, जिसे नेहरू श्यामाप्रसाद की सरकार ने जारी रखा, और कांग्रेस-भाजपा सरकार ने 7 दशकों में इसकी शक्ति कई गुणी कर दी।

वक्फ बोर्ड के ज़रिए सनातन समाज की भूमि पर कब्ज़ा

गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बताया कि 1913 से 2013 तक वक्फ बोर्ड के पास कुल 18 लाख एकड़ जमीन थी। 2013 से 2025 के बीच, कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने इसमें 21 लाख एकड़ जमीन शामिल करके अल्लाह के नाम पर मुसलमानों को दान कर दी, अब वक्फ बोर्ड के पास 39 लाख एकड जमीन हैं।

भारत में वक्फ संपत्ति का इतिहास 12वीं सदी के अंत में दो गांवों से शुरू हुआ और अब यह 39 लाख एकड़ तक पहुंच गया है. ध्यान रखने वाली बात ये है कि पिछले 12 सालों में भारत में वक्फ बोर्ड के तहत कुल जमीन दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है। आज, वक्फ बोर्ड के पास जितनी भूमि है, उतनी किसी अन्य धार्मिक संस्था या संगठन के पास नहीं है।

क्या है वक्फ बोर्ड का षड्यंत्र?

स्वतंत्र ऑडिट का अभाव: वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का कोई स्वतंत्र ऑडिट नहीं होता, जिससे पारदर्शिता की कमी होती है।

न्यायाधिकरण में पक्षपात: वक्फ ट्रिब्यूनल में मुस्लिम समुदाय के लोग ही न्यायाधीश होते हैं, जिससे निष्पक्ष न्याय में बाधा आती है।

भूमि अधिग्रहण की मनमानी: किसी भी भूमि को वक्फ घोषित कर उस पर स्थायी अधिकार प्राप्त किया जा सकता है, चाहे वह भूमि किसी अन्य समुदाय की ही क्यों न हो।

पुरातात्विक स्थलों पर कब्ज़ा: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थलों पर भी वक्फ बोर्ड ने दावा किया है, जिससे हमारी धरोहरों पर खतरा मंडरा रहा है।

वक्फ संशोधन विधेयक 2024 में क्या परिवर्तन हुए?

हाल ही में प्रस्तुत वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं:

धारा 40 का निष्कासन: इस धारा के तहत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने का अधिकार था। संशोधन में इस धारा को हटाया गया है, जिससे अब बिना प्रमाण के किसी संपत्ति को वक्फ घोषित नहीं किया जा सकेगा।

'वक्फ बाय यूजर' का उन्मूलन: 'वक्फ बाय यूजर' की अवधारणा को समाप्त कर दिया गया है, जिससे अब केवल विधिवत् समर्पित संपत्तियों को ही वक्फ माना जाएगा।

न्यायाधिकरण में सुधार: वक्फ ट्रिब्यूनल में इस्लामिक कानून के विशेषज्ञों को हटाकर निष्पक्षता सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।

संपत्ति पंजीकरण में पारदर्शिता: सभी वक्फ संपत्तियों का डिजिटल पंजीकरण अनिवार्य किया गया है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।

लेकिन यह संशोधन अधूरा है! हिंदू समाज की जो संपत्तियां पहले ही वक्फ के नाम कर दी गई हैं, उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। मंदिरों, ट्रस्टों, और आम जनता की भूमि अभी भी उनके अधीन बनी रहेगी। सरकार ने केवल अपनी सरकारी संपत्तियां सुरक्षित कर लीं, लेकिन सनातनी जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया। यह अस्वीकार्य है!

राष्ट्रीय सनातन पार्टी का संकल्प:

वक्फ बोर्ड का पूर्ण उन्मूलन: वक्फ बोर्ड को पूरी तरह से समाप्त किया जाए, ताकि किसी भी समुदाय को विशेषाधिकार न मिले।

संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण: वक्फ की सभी संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण किया जाए, जिससे उनका उपयोग राष्ट्रहित में हो सके।

मंदिरों और ट्रस्टों की सुरक्षा: मंदिरों और ट्रस्टों की संपत्तियों को वक्फ के दायरे से मुक्त किया जाए और उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए।

भूमि की वापसी: सनातनी जनता की छीनी गई जमीनों को वापस लिया जाए और उन्हें उनके वास्तविक मालिकों को सौंपा जाए।

समान नागरिक संहिता का लागू होना: एक समान नागरिक संहिता लागू कर सभी समुदायों के लिए समान कानून और अधिकार सुनिश्चित किए जाएं।

आज हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने पूर्वजों की भूमि, अपने मंदिरों, अपने आश्रमों और अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करेंगे। यह धर्मयुद्ध है, और इसमें विजय प्राप्त करना हमारा कर्तव्य है। "राष्ट्रहित सर्वोपरि" के मंत्र को आत्मसात करते हुए, हम वक्फ के जड़मूल से उन्मूलन तक संघर्ष करेंगे।

**जय सनातन! जय हिंदू राष्ट्र!**

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Friday, October 25, 2024

मैंने ईसाई मत क्यों छोड़ा?

मेरा जन्म मुंबई के इसाई परिवार में 8 मई 1964 में हुआ था मेरी माता जी का नाम श्रीमती रोजी डिसूज़ा और मेरे पिताजी का नाम श्री जॉन डिसूजा है । मेरा नाम माता-पिता ने माइकल जान डेसूजा रखा था । मैं अपने माता-पिता का जेष्ठ पुत्र हूं। मेरे अतिरिक्त मेरी एक बहन श्रीमती हिल्डा और एक भाई श्री हेनरी हैं। बचपन से मैं अपने परिवार के साथ हर रविवार को चर्च जाता था। चर्च के पादरी के उपदेश आदि सुनता था। बाइबल का उनके द्वारा निर्देशित स्वाध्याय भी करता था। एक सामान्य इसाई के समान मेरा जीवन था। 12वीं तक पढ़ाई करके मैंने दो वर्ष आईटीआई से तकनीकी शिक्षा ग्रहण की। इसाई त्योहारो आदि में मै सक्रिय रूप से भाग लेता था। पर धीरे-धीरे बाइबल पढ़कर मैं असंतुष्ट रहने लगा। बाइबल में दिए अनेक उपदेशों पर मुझे शंका होने लगी । मैंने अपने चर्च के पादरी से उन सब शंकाओं का समाधान करना चाहा पर वह मुझे संतुष्ट नहीं कर सके। उनकी सलाह से मैं स्थानीय पुस्तकालय से अन्य पुस्तकें लेकर पढ़ना आरंभ किया। इसी प्रक्रिया में मुझे भारत और यूरोप में चर्च के इतिहास की जानकारी मिली। मैं जब अनंत वायरल कर की गोवा इन्कुइसिशन नामक पुस्तक को पढ़ा कि कैसे पुर्तगाल से आकर गोवा में सेंट फ्रांसिस जेवियर ने स्थानीय हिंदुओं पर अनेक अत्याचार कर उन्हें जबरन इसाई बनाया तो मुझे इसाई होते हुए भी अच्छा नहीं लगा। जब मैंने पढ़ा कि वास्कोडिगामा ने व्यापार की आड़ में कैसे भीषण कत्लेआम किया था तो मुझे विदेशियों के व्यवहार पर शंका होने लगी कि क्या एक मानव को दूसरे मानव के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए ? छल , कपट से धर्म परिवर्तन करवाना मुझे महा पाप जैसा लगा । दक्षिण भारत में रॉबर्ट दी नोबेली  ने पंचम वेद का स्वांग कर अपने आप को रोम से आया ब्राह्मण कहकर भोले भाले ग्रामीण लोगों को जिस प्रकार से इसाई बनाया। वह पढ़कर तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि क्या इसाइयत के सिद्धांत अंदर से इतने कमजोर हैं जो उसे सत्य मार्ग के स्थान पर छल, कपट, दबाव, हिंसा, झूठ, धोखा, ढोंग, धन प्रलोभन आदि का सहारा लेना पड़ता है? मेरा ऐसे इसाइयत से विश्वास उठने लगा। मैं सत्य अन्वेषी बनाकर गृह त्याग कर विभिन्न मतों में जाकर उनकी विचारधारा का विश्लेषण करने लगा पर मेरी मंजिल अभी दूर थी।
    पवई, मुंबई में मेरे पड़ोस में आर्यवीर दल का एक कैंप लगा। उस कैंप में छोटे-छोटे बच्चों को वैदिक विचारधारा और शारीरिक श्रम करने की ट्रेनिंग दी जा रहे थी। मैं भी देखने चला गया। वहां मेरा परिचय शिक्षक ब्रह्मचारी सुरेंद्र जी तथा श्री ओम प्रकाश आर्य जी से हुआ। उनके साथ मैंने परस्पर संवाद कर अपनी अनेक संख्याओं का समाधान किया जिससे मुझे अपूर्व संतोष मिला। ऐसा लगा चिरकाल से बहती मेरी नाव को किनारा मिल गया। उनकी प्रेरणा से मैं विधिपूर्वक यज्ञोपवीत धारण किया और आजीवन ब्रह्मचारी रहने का व्रत लिया। उन्होंने मेरा नया नामकरण ब्रह्मचारी अरुण आर्यवीर के नाम से किया और मुझे स्वामी दयानंद लिखित सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने की प्रेरणा दी। सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर मुझे मेरे जीवन का उद्देश्य मिल गया। स्वामी दयानंद के ज्ञान रूपी सागर में डुबकी लगाकर में तृप्त हो गया। आर्य समाज के माध्यम से मेरा वैदिक धर्म में प्रवेश स्वेच्छा से हुआ। मैं जब वैदिक धर्म के सार्वभौमिक सिद्धांतों की तुलना ईसाई आदि मत मदांतर की मान्यताओं से की तो उन्हें सभी के लिए अनुकूल और ग्रहण करने योग्य पाया।  हर मत-मतांतर  की धर्म पुस्तक में आपको कुछ अच्छी बातें मिलती हैं। परंतु जो ज्ञान वैदिक धर्म की पुस्तकों में मिलता है, उसकी कोई तुलना नहीं है। सत्यार्थ प्रकाश के तेरहवें समुल्लास में ईसाई मत समीक्षा पढ़कर मेरे बाइबल संबंधित सभी संशयों की निवृत्ति हो गई।
      इस पुस्तक के प्रशासन में डॉक्टर मदन मोहन जी, रिटायर प्रोफेसर फिजियोलॉजी, मेडिकल कॉलेज पांडिचेरी ने न केवल आर्थिक सहयोग प्रदान किया है अपितु पुस्तक के प्रूफ करने में भी यथोचित सहयोग दिया है। मैं उनका करबद्ध अभारी हूं ।
   मैं इस कृपा के लिए सर्वप्रथम परमपिता परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहूंगा जिनकी मुझ पर यही बड़ी कृपा हुई।  अन्यथा जाने कितने जन्मों तक अविद्या रूपी अंधकार में भटकता रहता। मैं भी संभवतः  ईसाई पादरियों के समान भोले भाले लोगों को ईसा मसीह की भेड़ बनाने के कार्य में लगा रहता । मैंने इन वर्षों में अपने स्वाध्याय से जो बाइबिल का ज्ञान अर्जित किया था उसे निष्पक्ष पाठकों के लिए इस पुस्तक के माध्यम से मैं संकलित कर प्रस्तुत कर रहा हूं इस कार्य में मेरा सहयोग दिल्ली निवासी डॉक्टर विवेक आर्य ने दिया है जिनकी सहायता से यह कार्य मैं पूर्ण कर पाया। वर्तमान में मैं आर्य समाज का प्रचारक हूं और विभिन्न माध्यमों से वैदिक विचारधारा का प्रचार प्रसार करता हूं । इस पुस्तक को पढ़कर लोग इस ईसाईयत के जंजाल से मुक्त होकर वैदिक पथ के पथिक बने, यही ईश्वर से प्रार्थना है।

अरुण आर्यवीर ( पूर्व नाम माइकल जॉन डिसूजा)